भोपाल, 22 सितंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने संसद में पारित महिला आरक्षण विधेयक के बीच अपने शासनकाल (1993-2003) में महिलाओं की स्थिति में आए बदलाव का ब्यौरा जारी किया।
पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा जारी किए गए ब्यौरे के अनुसार, राज्य में वर्ष 1993-2003 के बीच हमारी सरकार ने सबसे पहले पंचायती राज व्यवस्था लागू की, जिसके तहत हमने त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनावों में महिलाओं को आरक्षण दिया था।
साथ ही सरकारी, अर्द्ध सरकारी, पंचायत, स्थानीय और सहकारी संस्था की नौकरियों में 30 प्रतिशत पदों को महिलाओं लिए आरक्षित किया था। अकेले स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षकों के 30 प्रतिशत पदों पर महिलाओं की नियुक्ति हुई।
प्रदेश में उस वक्त कुल 1 लाख 47 हजार शिक्षकों में से 1 लाख 31 हजार 103 महिला शिक्षक कार्यरत थीं। उन्होंने अपने शासनकाल का विवरण देते हुए बताया कि 10 वर्ष के कार्यकाल में 13 महिला सहकारी बैंकों को संचालित किया गया था। प्रत्येक नवगठित सहकारी संस्था में कम से कम एक तिहाई महिला सदस्य होना अनिवार्य किया था।
सहकारी संस्था के संचालक मंडल में भी महिलाओं को आरक्षण दिया था।
पूर्व मुख्यमंत्री ने बताया है कि कांग्रेस के 10 वर्षों के कार्यकाल में तेंदु पत्ता मुंशियों के 50 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए सुरक्षित किए। वनोपज संग्राहकों के कार्ड में पति-पत्नी दोनों के नाम दर्ज करना अनिवार्य बनाया। राजीव गांधी जल ग्रहण क्षेत्र विकास मिशन के तहत 7500 से अधिक महिला अल्प बचत और साख समूह गठित किए थे।
महिला स्वयं सहायता समूहों के गठन को प्राथमिकता दी तथा उस दौरान डेढ़ लाख से अधिक समूह गठित किए गए, जिसमें 15 लाख महिलाएं सहभागी बनीं। कृषि विस्तार सेवाओं में भी महिलाओं की तादाद बढ़ाई जिसमें सीधी भर्ती के सभी पदों पर महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया गया।
पूर्व मुख्यमंत्री के अनुसार उनके शासनकाल में कांग्रेस सरकार ने पुलिस मुख्यालय में राज्य स्तरीय महिला प्रकोष्ठ स्थापित किया और उस दौरान देश में उप पुलिस अधीक्षक और उप निरीक्षकों के 30 प्रतिशत तथा आरक्षकों के 10 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए गए थे।
पटवारी के 30 प्रतिशत पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर जमीन जायदाद के मामलों में इनके अधिकार सुनिश्चित किए थे। राजीव गांधी आश्रय योजना के पट्टों सहित सरकारी जमीन के सभी तरह के पट्टे पति-पत्नी के संयुक्त नाम से दिए।
पुनर्वासित परिवार की बालिग लड़कियों को भी स्वतंत्र इकाई मानकर अलग जमीन देने की व्यवस्था भी मध्यप्रदेश में हमने लागू की। निराश्रित पेंशन सेवा में विधवा, परित्यकता महिलाओं के लिए उम्र के बंधन को समाप्त कर दिया था।
पूर्व मुख्यमंत्री का दावा है कि राज्य में कांग्रेस शासनकाल में महिला साक्षरता वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत वृद्धि दर से अधिक रही। वर्ष 1991 से 2001 के बीच महिला साक्षरता की राष्ट्रीय दर में जहां 14.87 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई। मध्यप्रदेश में महिला साक्षरता दर में 20.93 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की गई।