पंजाब में सर्वाधिक एमएसपी फिर भी असंतोष! क्या किसान आंदोलन राजनीति से है प्रेरित?
By : dineshakula, Last Updated : February 16, 2024 | 2:04 pm
अब एक बार आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलेगा कि सरकारी रिपोर्ट में जो दिख रहा है उसके मुताबिक पिछले सीज़न में पंजाब में धान की 99 प्रतिशत फसल और गेहूं की 74 प्रतिशत फसल की खरीद एमएसपी पर की गई थी। पिछले सीज़न में पंजाब में चावल की सरकारी खरीद देश के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक 12.3 मिलियन टन थी। यानी देश के सभी राज्यों से चावल की खरीद में सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत की हिस्सेदारी पंजाब की थी जबकि पंजाब का देश में चावल उत्पादन में हिस्सेदारी 10 प्रतिशत है। वहीं 2023-24 पंजाब में एमएसपी पर गेहूं की खरीद देश में सबसे अधिक लगभग 40 प्रतिशत था। इस नए सीजन में पंजाब में गेहूं की खरीद भी 25 प्रतिशत बढ़ी है।
सरकारी रिपोर्ट की मानें तो पंजाब के किसानों के लिए फसलों का एमएसपी रिटर्न देश में सबसे अच्छा है। एमएसपी पर फसलों के रिटर्न की गणना तीन मापदंडों पर की जाती है। एक तो उत्पादन की कुल लागत (जीवीओ), ए2 जो फसल की वृद्धि, उत्पादन और रखरखाव के साथ रसायन, उर्वरक, बीज और श्रमिक के खर्च को दर्शाता है और साथ ही ए2+एफएल में वास्तविक और इसकी ढुलाई से लेकर हर तरह की लागत शामिल होती है। इन तीनों के योग पर एमएसपी की गणना की जाती है।
धान के एमएसपी पर खरीद के मामले में पंजाब इन तीनों मामलों में शीर्ष पर है। ऐसे में धान की खेती में पंजाब के लिए उच्चतम जीवीओ 1,36,636 रुपये प्रति हेक्टेयर। पंजाब में मूंग का जीवीओ सबसे अधिक 1,02,047 रुपये प्रति हेक्टेयर था। कपास में भी जीवीओ पंजाब में 1,42,239 रुपये प्रति हेक्टेयर सबसे अधिक था। वहीं धान की खेती में ए2 और ए2+एफएल प्रति हेक्टेयर की लागत पर रिटर्न पंजाब के लिए सबसे अधिक 88,287 रुपये और 82,037 रुपये था। मूंग में भी यही हाल है जहां ए2 और ए2+एफएल प्रति हेक्टेयर रिटर्न पंजाब के लिए क्रमशः 75,256 रुपये और 72,719 रुपये।
कपास के मामले में ए2 और ए2+एफएल प्रति हेक्टेयर लागत पर रिटर्न पंजाब में 89,474 रुपये और 81,582 रुपये था, जो सबसे अधिक था। एक अन्य एमएसपी पैमाने पर नजर डालें तो अनुमानित सीओपी ए+एफएल पर पंजाब में धान और गेहूं दोनों के लिए एमएसपी मार्जिन सबसे अधिक है।
सरकारी रिपोर्ट की मानें तो पंजाब में अनुमानित सीओपी ए+एफएल की तुलना में सबसे अधिक एमएसपी मार्जिन धान पर (173.5 प्रतिशत) के साथ-साथ गेहूं पर (152.6 प्रतिशत) था। गेहूं के लिए सबसे अधिक जीवीओ हरियाणा के बाद पंजाब में 1,01,905 रुपये प्रति हेक्टेयर है।
देश के शीर्ष पांच गेहूं उत्पादक राज्यों में से, पंजाब और हरियाणा का रिटर्न पूरे देश में औसत से अधिक था। पंजाब में प्रति किसान धान की खरीद का औसत देखा जाए तो यह 11.9 टन है, जो देश में सबसे अधिक है। पिछले सीजन में पंजाब से एमएसपी पर लगभग 184 लाख टन धान की खरीद की गई थी, जो पंजाब में कुल किसानों के अनुपात पर देखा जाए तो इसमें लाभार्थी किसानों की हिस्सेदारी भी 100 प्रतिशत से अधिक थी।
वहीं अभी चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के मुख्य नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को यह कहते भी सुना गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘ग्राफ को नीचे लाने’ के लिए यह विरोध प्रदर्शन हो रहा है। क्योंकि अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद से पीएम मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊपर है।
ऐसे में अब इस किसानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर सवाल उठ रहा है कि क्या मौजूदा विरोध प्रदर्शन को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का मौन राजनीतिक समर्थन प्राप्त है? अभी जो किसान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरे हैं, उनमें मुख्य रूप से पंजाब के किसान शामिल हैं, इसमें हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान संघ शामिल नहीं हैं, जो 2020 में इस विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे। गुरनाम सिंह चारुनी और बलबीर सिंह राजेवाल जैसे किसान संघ के नेता इसमें शामिल नहीं हैं।
पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार प्रदर्शनकारी किसानों के राजधानी में प्रवेश करने और विरोध करने के इरादों का समर्थन कर रही है। लेकिन, प्रदर्शनकारी किसानों को पंजाब में रोकने या बवाना स्टेडियम को अस्थायी जेल में बदलने के केंद्र के अनुरोध को ठुकरा दिया।
भाजपा की तरफ से कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों पंजाब की 13 लोकसभा सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए किसानों के साथ आकर खड़ी हो गई है ताकि लोकसभा चुनाव में उनको इन सीटों पर फायदा मिल सके और यहां पंजाब में अकाली दल और भाजपा को इन 13 सीटों पर नुकसान हो।
आम आदमी पार्टी तो पंजाब में अपनी लोकसभा सीटों को भी बढ़ाने की मंशा के तहत यह कर रही है। आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल को ईडी का समन मिल रहा है और उन्हें अदालत और ईडी दोनों ने तलब किया है। जबकि भाजपा के नेताओं का कहना है कि पंजाब के किसानों के पास इस विरोध प्रदर्शन के लिए कोई वजह नहीं है, जबकि उन्हें स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों से भी बेहतर लाभ मिल रहा है।
ऐसे में क्या इस विरोध प्रदर्शन के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक मायने हैं? सवाल तो यही उठ रहा है।