नई दिल्ली: अगर कभी क्रिकेट मैच देखते हुए आपको अचानक चॉकलेट खाने की इच्छा हुई हो, या किसी छोटी-सी खुशी पर मुस्कुराहट खुद-ब-खुद चेहरे पर आ गई हो — तो उसके पीछे किसी न किसी रूप में पियूष पांडे (Piyush Pandey) का हाथ है।
विज्ञापन की दुनिया के इस महानायक का शुक्रवार को मुंबई में 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लेकिन उनके बनाए ऐड्स ने जो असर भारत के दिलों में छोड़ा, वह आने वाले कई दशकों तक ज़िंदा रहेगा।
“फेवीकोल का जोड़ लगा के हइशा” से लेकर “एशियन पेंट्स – हर घर कुछ कहता है” तक, हर ओर उनका जादू था। पर जिसने भारत के दिल और ज़ुबान दोनों पर सबसे गहरा असर छोड़ा, वह था काडबरी डेयरी मिल्क का 1990 के दशक का “असली स्वाद जिंदगी का” अभियान।
जब चॉकलेट सिर्फ बच्चों के लिए थी…
1993-94 का भारत बदल रहा था। उदारीकरण (Liberalisation) के दौर में नई अर्थव्यवस्था, केबल टीवी और आधुनिक उपभोक्ता संस्कृति का उदय हो रहा था।
लेकिन चॉकलेट अब भी “बच्चों की चीज़” मानी जाती थी। बड़े लोग उसे बस गिफ्ट या बच्चों के रिवॉर्ड के रूप में खरीदते थे। तब पियूष पांडे ने सोचा — क्यों न बड़ों को याद दिलाया जाए कि उनके भीतर का बच्चा अभी जिंदा है?
इसी सोच से जन्म हुआ स्लोगन का:
“असली स्वाद जिंदगी का।”
इस कैंपेन में चॉकलेट सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं, बल्कि “खुशी का ज़रिया” थी। ऐड्स में आम लोग — कभी पिता फुटबॉल खेलते हुए, कभी माँ साड़ी में उछलते हुए, कभी कोई लड़की बस में जाते हुए — सबमें वही बालसुलभ आनंद झलकता था।
एक फ्लाइट टिकट, एक धुन और एक जादू
1994 में जब Cadbury ने Ogilvy से कहा कि चॉकलेट को बड़ों के बीच लोकप्रिय बनाना है, तब पियूष पांडे अमेरिका में छुट्टी पर थे। उन्होंने वहीं से नोटबुक के बजाय अपने बोर्डिंग पास पर गाने की शुरुआती पंक्तियाँ लिखीं —
“There’s something so real… in everyone.”
भारत लौटकर उन्होंने जाज़ म्यूज़िक लीजेंड Louis Banks को फोन किया। धुन तैयार होने में सिर्फ 15 मिनट लगे।
इसके बाद पियूष ने इसे भारतीय अहसास देने के लिए गीत को हिंदी में ढाला, और शंकर महादेवन की आवाज़ में “कुछ स्वाद है…” की कोमल झंकार ने इसे भारतीय दिलों में बसाया।
वह लड़की जिसने मैदान पर नाचकर इतिहास रच दिया
फिल्म निर्देशक महेश माथाई ने इस ऐड को मुंबई के ब्रेबॉर्न स्टेडियम में एक ही टेक में शूट किया।
मुख्य किरदार थीं शिमोना राशी, जो प्रोफेशनल डांसर नहीं थीं। यही उनकी खासियत थी — उनका नाचना, हँसना, भागना — सबकुछ सहज और सच्चा था।
वह सिक्योरिटी गार्ड्स को पार करती हुई मैदान में दौड़ती है, हाथ में चॉकलेट है और चेहरा खुशी से दमक रहा है। यह दृश्य भारत के विज्ञापन इतिहास की सबसे प्यारी यादों में से एक बन गया।
क्यों यह ऐड आज भी प्रासंगिक है
Cadbury का यह अभियान सिर्फ एक ब्रांड की सफलता नहीं था — यह भारत की सोच में बदलाव का प्रतीक था।
अब चॉकलेट सिर्फ बच्चों की चीज़ नहीं रही; यह हर उम्र के लिए “छोटी खुशी” का प्रतीक बन गई।
प्रकाश नायर, ओगिल्वी एंड माथर के ब्रांड लीडर, ने कहा —
“यह ऐड बच्चों के लिए नहीं, बल्कि हर इंसान के भीतर के बच्चे के लिए बनाया गया था।”
इस विज्ञापन के बाद Cadbury के कई मशहूर अभियान — “खुश है ज़माना”, “आज पहली तारीख है” और “कुछ मीठा हो जाए” — उसी भावनात्मक परंपरा के उत्तराधिकारी बने।
25 साल बाद भी, जब भी कोई छोटी-सी खुशी मनानी होती है, हम अब भी कहते हैं —
“कुछ मीठा हो जाए।”
