कौन थे वो हिंदू राजा, जिन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए दी अपनी जमीन?

सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखा है। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने साल 1967 के

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  • Updated On - November 10, 2024 / 06:37 PM IST

दिल्ली एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्थान(Minority Institute of Aligarh Muslim University) के दर्जे को बरकरार रखा है। उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने साल 1967 के अपने ही फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा था कि  अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं मिल सकता क्योंकि इसकी स्थापना कानून के जरिए की गई थी. एएमयू पहली बार चर्चा में नहीं है। पहले भी इस यूनिवर्सिटी को लेकर विवाद होते रहे हैं. यहां तक कि यूनिवर्सिटी बनाने के लिए जमीन देने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह के वंशज लीज खत्म होने के बाद जमीन वापस मांग चुके हैं. यूपी के विधानसभा चुनाव में भी यह मुद्दा बना।

कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह?

राजा महेंद्र प्रताप सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी, लेखक और समाज सुधारक थे. उन्होंने 1957 में मथुरा से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा और जीतकर संसद में पहुंचे. राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 1915 में काबुल में भारत की अस्थायी सरकार की स्थापना की. ब्रिटिश सरकार ने उनकी गतिविधियों के कारण उन्हें निशाना बनाया. जिसके बाद वे जापान में बस गए. 1932 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था।

राजा महेंद्र प्रताप सिंह स्वतंत्रता से एक साल पहले भारत लौटे और तुरंत महात्मा गांधी के साथ काम करना शुरू कर दिया. स्वतंत्र भारत में उन्होंने पंचायती राज के अपने आदर्श को पूरी निष्ठा से आगे बढ़ाया.शुरुआती जीवन और विवाह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह का जन्म साल 1886 में हाथरस के मुरसान एस्टेट के शासक जाट परिवार में हुआ था. साल 1902 में उनका विवाह बलवीर कौर से हुआ था जो जिन्द रियासत के सिख परिवार की थीं. शादी के बाद साल 1907 में वे अपनी सिख पत्नी के साथ विश्व यात्रा पर निकले. वापस लौटने के बाद उन्होंने मथुरा में अपने निवास को एक स्कूल में बदलने को दे दिया, जिसे 1909 में प्रेम महाविद्यालय नाम दिया गया. इसे देश का पहला पॉलिटेक्निक कॉलेज माना जाता है।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से संबंध

राजा महेंद्र प्रताप सिंह की शुरुआती पढ़ाई अलीगढ़ के सरकारी स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज में दाखिला लिया, जिसे बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से जाना गया. हालांकि वे इस संस्थान से अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी नहीं कर सके लेकिन उनकी गिनती यूनिवर्सिटी के प्रमुख पूर्व छात्रों में होती है.इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक महेंद्र प्रताप के पिता और दादा शिक्षा सुधारक और एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के करीबी थे।

जब एएमयू की नींव रखने की बात चली तो राजा महेंद्र प्रताप के परिवार ने जमीन देने का फैसला किया. राजा के परिवार ने एएमयू को कुछ जमीन दान के तौर पर दी और साल 1929 में खुद राजा महेंद्र प्रताप ने 3.09 एकड़ जमीन पट्टे पर दी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

राजा महेंद्र प्रताप सिंह की गिनती देश के चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों में होती है. उन्होंने 1 दिसंबर 1915 को उन्होंने काबुल के ऐतिहासिक बाग-ए-बाबर में भारत के पहले अस्थायी सरकार की घोषणा की। उन्होंने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया और भोपाल के उनके साथी क्रांतिकारी मौलाना बरकतुल्लाह को प्रधानमंत्री बनाया। महेंद्र प्रताप ने इसके बाद विभिन्न देशों की यात्रा की ताकि भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे क्रांतिकारियों के लिए समर्थन जुटा सकें। वे जर्मनी, जापान और रूस गए और वहां के राजनीतिक नेताओं से मिले. कहा जाता है कि उन्होंने 1919 में व्लादिमीर लेनिन से मुलाकात की, जो बोल्शेविक क्रांति के दो साल बाद की बात है।

नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन

राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने 1929 में बर्लिन में वल्र्ड फेडरेशन की स्थापना की।. उन्हें 1932 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए स्वीडिश डॉक्टर एन ए निल्सन द्वारा नामांकित किया गया, जो स्थायी अंतर्राष्ट्रीय शांति ब्यूरो के आयोग के सदस्य थे. नॉमिनेशन में उन्हें हिंदू देशभक्त वल्र्ड फेडरेशन के संपादक और अफगानिस्तान के अनौपचारिक दूत के रूप में वर्णित किया गया।

देश वापसी और राजनीतिक करियर

लगभग 32 साल के निर्वासन के बाद राज महेंद्र प्रताप सिंह आखिरकार 1946 में भारत लौट आए.सरदार पटेल की बेटी मणिबेन खुद उनको लेने कलकत्ता हवाई अड्डे गईं। आजादी के बाद उन्होंने सियासत में उतरकर तमाम बदलाव लाने की कोशिश की. 26 अप्रैल 1979 में उनका निधन हो गया. मार्च 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके नाम पर अलीगढ़ में एक विश्वविद्यालय स्थापित करने की घोषणा की।

 

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