मनरेगा के तहत काम की मांग में गिरावट क्यों आ रही है?

मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 1.6 करोड़ परिवार शामिल थे। इस साल आंकड़ों में करीब 16 प्रतिशत की कमी हुई है।

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  • Publish Date - September 18, 2024 / 06:52 PM IST

नई दिल्ली,18 सितंबर (आईएएनएस)। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (MNREGA) योजना के तहत इस साल अगस्त के महीने में रोजगार मांगने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है। इस साल अगस्त के महीने में पूरे देश में 1.6 करोड़ लोगों को रोजगार मिला।

यह आंकड़ा अक्टूबर 2022 के बाद मासिक आधार पर सबसे कम है। इसके अलावा पिछले साल अगर इसी समयावधि की बात करें तो 2023 के अगस्त के महीने में 2 करोड़ 20 लाख लोगों ने काम किया था। इस साल मनरेगा के तहत केवल 1 करोड़ 90 लाख लोगों ने काम किया है। मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 1.6 करोड़ परिवार शामिल थे। इस साल आंकड़ों में करीब 16 प्रतिशत की कमी हुई है।

ऐसे में यह सवाल उठता है कि ऐसी क्या वजहें रही हैं, जिससे मनरेगा में काम करने वाले लोगों में संख्या में कमी आई है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि जुलाई-अगस्त का महीना बारिश के बाद खरीफ की बुआई का महीना होता है। इस सीजन में बारिश अच्छी होने की वजह से इस बार गांवों और खेतों में मजदूरों की ज्यादा जरूरत पड़ रही है। इसकी वजह से इस महीने मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों की संख्या में कमी आई है। मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूकरों की संख्या में गिरावट वाले राज्यों में झारखंड सबसे ऊपर है। झारखंड में इस महीने करीब 79 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 41 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में भी मनरेगा योजना के तहत काम मांगने वाले मजदूरों की संख्या में 39 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

इस विषय पर इस साल संसद में रखी गई आर्थिक समीक्षा रिपोर्ट 2024 ने भी बहुत कुछ कह दिया है। इस रिपोर्ट में मनरेगा के तहत काम की मांग करने वाले लोगों और ग्रामीण संकट के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा गया है कि देश में गरीबी और अधिक बेरोजगारी दर वाले राज्य मनरेगा फंड का इस्तेमाल अधिक करते हैं। इस सर्वे में वित्त वर्ष 2024 के बारे में बताया गया है कि पिछले वित्त वर्ष में अधिक गरीबी घनत्व वाले राज्यों ने मनरेगा के फंड का अधिक इस्तेमाल किया है। जबकि कम गरीबी वाले राज्यों ने इस फंड का कम इस्तेमाल किया है। यह स्थिति मनरेगा में पिछड़े राज्यों की स्थिति को दर्शाती है।

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की जनसंख्या में करीब-करीब 25 फीसदी लोग गरीब हैं लेकिन उत्तर प्रदेश ने मनरेगा फंड से केवल 11 फीसदी राशि ही खर्च की है। इसके अलावा बिहार की जनसंख्या में 20 फीसदी लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं लेकिन, बिहार ने मनरेगा फंड से केवल 6 फीसदी रकम का इस्तेमाल किया है। इसके विपरीत तमिलनाडु की जनसंख्या में 0.1 ही लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं लेकिन तमिलनाडु ने मनरेगा राशि का 4 फीसदी इस्तेमाल किया है।

इसके अलावा मनरेगा के तहत काम मांगने वाले लोगों की संख्या में कमी का सबसे बड़ा कारण पश्चिम बंगाल राज्य का मनरेगा में शामिल नहीं होना है। इसी साल जुलाई के महीने में संसद भवन में ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से एक सवाल के जवाब में बताया गया था कि मनरेगा की धारा 27 का पालन न करने की वजह से पश्चिम बंगाल राज्य को इस योजना के तहत मिलने वाली राशि का आवंटन नहीं किया गया था। जिसकी वजह से मनरेगा में काम मांगने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आई है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य में मनरेगा के तहत लाभर्थियों की संख्या एक से डेढ़ करोड़ के बीच है।