नक्सल-हिंसा की अंधेरी गलियां छोड़ नेक मकसद से रोशन कर रहे जिंदगियां

By : hashtagu, Last Updated : February 12, 2023 | 11:53 am

रांची, 12 फरवरी (आईएएनएस)| बम-बारूद-बंदूकों के बीच नक्सलवाद (Naxal) और हिंसा की अंधेरी गलियों में सालों-साल भटकने के बाद सामान्य जिंदगी में लौटना कोई सामान्य बात नहीं। जब कोई ऐसा शख्स हथियार डालने, सजा काटने और जेल में लंबा वक्त गुजारने के बाद आगे की जिंदगी को किसी नेक मकसद से जोड़ ले तो वह कम से कम उन लोगों के लिए उदाहरण बन जाता है, जिनके भीतर जुर्म की काली दुनिया से निकलने की कोई तड़प या ख्वाहिश बाकी है। आईएएनएस ने बदनामियों की दुनिया से निकल नई लकीर खींच रहे कुछ ऐसी ही शख्सियतों की जिंदगी में झांकने की कोशिश की।

झारखंड के धनबाद जिला अंतर्गत टुंडी इलाके के चुनुकडीहा गांव निवासी रामचंद्र राणा की पहचान इलाके में आम के सबसे बड़े उत्पादक किसान के रूप में है। वह अपने उस अतीत से निकल चुके हैं, जब कंधे पर बंदूक लेकर जंगलों में भटकते थे। उनकी उम्र 19 साल थी।

विकास से दूर गांव में न तो रोजगार का साधन था और न भविष्य का कोई रास्ता दिखता था। माओवादी नक्सलियों से प्रभावित होकर उनके संगठन में शामिल हो गए। पुलिस को सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे।

1993 में इलाके के मुखिया टिकैत सिंह चौधरी की हत्या और पुलिस पर हमले के दो केस में नाम आया। 2001 में धनबाद के तोपचांची प्रखंड कार्यालय परिसर में पुलिस के 13 जवानों की हत्या, हथियार लूट, पुलिस पार्टी को उड़ाने समेत आठ नक्सल वारदात में भी राणा नामजद रहे। एक दिन वह अपने गांव आए थे, तब धनबाद के तत्कालीन एसपी अब्दुल गनी मीर ने पांच सौ पुलिसकर्मियों के साथ घेराबंदी कर गिरफ्तार कर लिया। घर भी तोड़ डाला गया।

वर्ष 2008 में मुकदमों से बरी होने के बाद जेल से बाहर आने पर राणा ने संकल्प लिया कि उसकी वजह से गांव की जो बदनामी हुई है, उसका दाग धोना है। खुद को खेती-बाड़ी से जोड़ा। गांव के लोगों के साथ जिले के आला अफसरों से मिलकर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने और गांव में सरकारी स्कूल खोलने की गुहार लगाई।

सड़क के लिए अपनी रैयती जमीन तो दी ही, गांव के लोगों को भी इसके लिए राजी कराया। पांच साल पहले गांव सड़क से जुड़ गया। गांव में स्कूल भी शुरू हो गया। इस बीच राणा ने अपनी जमीन पर आम के 100 से भी ज्यादा पेड़ लगाए। बीते साल उन्होंने 100 क्विंटल आम बेचे।

पलामू जिले के ऊंटारी रोड ब्लॉक के रहने वाले विजय सिंह का घर 1990 के दशक में माओवादी नक्सलियों ने विस्फोट के जरिए उड़ा दिया था। इससे बौखलाकर वह सनलाइट सेना नामक प्रतिबंधित संगठन में शामिल हो गए। संगठन ने उन्हें एरिया कमांडर बना दिया। उन दिनों प्रखंड के मलवलिया गांव में हुए नरसंहार में डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोग मारे गए।

इसमें सनलाइट सेना का नाम सामने आया। विजय सिंह इस केस में आरोपी थे। इसके अलावा तकरीबन चार दर्जन केस में भी वह नामजद रहे। लगभग दस साल बम-बंदूक, टकराव-हिंसा की दुनिया से वास्ता रहा। झारखंड पुलिस ने उनपर 25 हजार का इनाम घोषित कर रखा था। 2003 में उन्होंने पलामू कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया। 5 साल जेल में रहे।

2007 में मुकदमों से बरी होकर बाहर निकले। जेल में रहते हुए ही अध्यात्म की ओर झुकाव हुआ। अपने गांव सिलदिली लौटे। गांव में एक महावीर मंदिर मठ है, जिसे अंग्रेजी हुकूमत के वक्त जमींदार तारक नाथ सरकार ने बनाया था और इसके लिए 14 एकड़ जमीन दी थी।

इसकी जमीन को लेकर इलाके में इतना विवाद था कि कोई पुजारी मंदिर में पूजा करने को तैयार नही था। गांव वालों ने इसे लेकर बैठक की और तय हुआ कि इसे किसी ट्रस्ट को सौंप दिया जाए। फिर लोग बिहार में गया पीठाधीश्वर जगद्गुरु स्वामी वेंकटेश प्रपन्नाचार्य के पास गए तो उन्होंने महावीर मंदिर को अपने अधीन ले लिया, लेकिन कोई महंत बनने को तैयार नहीं था।

स्वामी प्रपन्नाचार्य ने ग्रामीणों की बैठक में उन्हें माला पहना दिया और आदेश दिया कि हनुमान जी की सेवा करो। विजय सिंह ने उनसे दीक्षा ली और उनका आध्यात्मिक नाम बलभद्राचार्य तय हुआ। तब से उन्होंने पूरी जिंदगी भगवान की सेवा में लगाने का संकल्प ले लिया। अब पूरा वक्त पूजा-पाठ, अध्यात्म और मंदिर की व्यवस्था में गुजरता है।

लोहरदगा जिले के भंडरा प्रखंड के धनामुंजी गांव निवासी दानियल लकड़ा ने माओवादी नक्सली संगठन के लिए लगभग सात साल तक बंदूक ढोने के बाद पत्नी और घरवालों के समझाने पर मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया। वर्ष 2013 में उसने झारखंड पुलिस के सामने हथियार डाल दिया। लगभग नौ महीने जेल में रहने के बाद वह जमानत पर छूटा तो उसने हल-कुदाल से दोस्ती कर ली।

सरेंडर करने पर सरकार की पॉलिसी के अनुसार उसे ढाई लाख रुपए की मदद मिली। उसने अपनी पत्नी के साथ मिलकर खेती-बागवानी में मेहनत की और आज वह इलाके के बेहद सफल किसान के रूप में जाना जाता है। मनरेगा योजना के तहत करीब दो एकड़ पुश्तैनी भूमि पर उसने आम्रपाली, हिमसागर, मालदा, जदार्लू, सोनपरी जैसी कई वेरायटी आम के पौधे लगाए।

बागवानी के जरिए हर साल डेढ़-दो लाख रुपए की आमदनी होती है। वह तीन एकड़ जमीन लीज पर लेकर मिर्च और दूसरी सब्जियों की खेती भी कर रहा है।

पिछले साल मार्च महीने में माओवादी नक्सली संगठन के जोनल कमांडर 10 लाख के इनामी नक्सली सुरेश सिंह मुंडा ने रांची में पुलिस के सामने सरेंडर किया था। लगभग 25 साल बम-बारूद-बंदूक की दुनिया में गुजारने के बाद उसे सामान्य जिंदगी में लौटने की प्रेरणा किसी और ने नहीं, स्कूल में पढ़ने वाली उसकी बेटी ने दी। बेटी ने पिता को एक भावुक चिट्ठी भेजी थी।

उसका दिल पसीज उठा और उसने तय किया कि वह हथियार डाल देगा। पुलिस के सामने हथियार डालते वक्त सुरेश सिंह मुंडा ने कहा था कि उसे उम्मीद है कि वह जेल से निकल जाएगा और इसके बाद बाकी समय समाज के जरूरतमंद लोगों की मदद में गुजारेगा। उसने कहा था कि बेटी की चिट्ठी पढ़कर उसे इस बात का एहसास है कि हिंसा के रास्ते से समाज में कभी बदलाव नहीं आ सकता।

लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड का रहने वाला साधु किसान नामक शख्स का भी माओवादी नक्सल संगठन से एक दशक तक नाता रहा। संगठन में उसका ओहदा एरिया कमांडर का था। लगभग एक दशक पहले उसने जंगल की दुनिया को अलविदा कह मुख्यधारा में लौटने का फैसला किया।

जेल से आने के बाद सामाजिक कार्यों में सक्रिय भागीदारी निभाने लगा। पिछले साल जून महीने में पंचायत चुनाव में उसे गांव के लोगों ने नेतरहाट पंचायत में वार्ड नंबर 10 का सदस्य चुना। अब वह वार्ड सदस्य की हैसियत से पंचायत में चलने वाली विकास योजनाओं में हिस्सेदार है।

रांची की न्यू पुलिस लाइन में राम पोद्दो टेलरिंग का काम करते हैं। वह पुलिस वालों की वर्दी सिलते हैं। इतनी कमाई कर लेते हैं कि अपनी और परिवार की जरूरतें पूरी हो जाती हैं। लेकिन वर्ष 2013 के पहले उनकी जिंदगी ऐसी नहीं थी।

वह नक्सली संगठन का हिस्सा हुआ करते थे। जंगल-जंगल बंदूक लेकर भटकते थे। फिर तय किया कि इससे कुछ भी हासिल नहीं होना है। पुलिस के सामने हथियार डाला। कुछ वक्त जेल में रहे और फिर बाहर निकलकर खुद को टेलरिंग के रोजगार से जोड़ लिया।