डैने पसारती क्रिटिकल रेस थ्योरी भारतीय समाज और संस्थाओं पर गंभीर खतरा!

By : hashtagu, Last Updated : June 5, 2023 | 9:15 pm

डेस्क। (Danne passarti critical race theory) सोशल मिडिया के इस दौर में टीवी चैनलों पर होने वाली बहस अक्सर वाइरल होती है और उसके विषय पर होने वाली बहस में आप ये देख कर अचरज में पड़ जाते है कि विरोध करने के नाम पर एक पक्ष विशेष कितना अतार्किक, कुतर्की और असिहष्णु (Intolerant) हो जाता है और अपने पक्ष को साबित करने कि जिद में प्रमाणों, तथ्यों को जो बिलकुल सामने स्वयं सिद्ध होते है उनको सिरे से ख़ारिज करने पर आमादा हो जाता है। उक्त विचार पद्म प्रबोधनी फाउंडेशन के CEO प्रणव पारे के हैं। उन्होंने इस विषय पर विशद रूप से प्रकाश डालते हुए कहते हैं…!

आप सोचते है कि शायद ये सत्ता में न होने कि कुंठा है या न्याय न मिलने से उपजा असंतोष है ? या फिर ये किसी व्यक्ति विरोध से उपजी खीज हो सकती है तो आप “सरासर गलत है, इस विरोध में ग्रेटा थनबर्ग वाली आक्रामकता है “भाव भंगिमा है औरआप टीवी के सामने बैठे बैठे ही रक्षात्मक हो जाते है “तो आपको समझना होगा ये ” केंसिल कल्चर ” की रणनीति का हिस्सा है”।

सत्तर के दशक में जो लोग भी मजदूर आंदोलनों से जुड़े हुए थे उन्हें याद होगा कि भारतीय मजदूर संघ के लिए कार्य करते समय भी इसी प्रकार के केंसिल -कल्चर का सामना करना पड़ता था, तब सरकारी नौकरियों में रिजेक्शन, प्रमोशन और वेतन वृद्धि रोकने के साथ -साथ सामजिक बहिष्कार जैसी स्थिति भी सामान्य थी जो कि इसी कैंसिल -क्लचर का हिस्सा हुआ करती थी।

पिछले पांच से 10 वर्षों में पूरे विश्व मे इस तरह के विरोध प्रदर्शनों का चलन बढ़ रहा है। इसकी तह में जाने पर आपको बहुत चौकाने वाले तथ्य मिल सकते है जो “साम्यवाद के क्रमिक विकास” के भीतर छिपे है और जो खामोशी के साथ अपने डैने पसार रहे है। सोवियत संघ के पतन के बाद वामपंथी बुद्धिजीवियों ने अब अपना नया ठिकाना “संयुक्त राज्य अमेरीका के हावर्ड विश्विद्यालय में बनाया है।

आने वाले दिनों में डेमोग्राफिक चेंज ” संयुक्त राज्य अमेरिका की सबसे बड़ी चुनौती मानी जा सकती है इसका एक अर्थ ये भी है कि जनसांख्यिकीय आंकड़ों और उनके सटीक आंकलन के बाद ही शायद वामपंथियों ने हॉवर्ड विश्विद्यालय को अपना गढ़ बनाने का निर्णय लिया होगा। विभिन्न देशों से आने वाले अप्रवासी अपने साथ अपनी एथेनिक,धार्मिक,रंग और दूसरी मान्यताओं को भी साथ ले कर आ रहे है जैसे भारत से दलित उत्पीड़न और अफ्रीका से अश्वेत उत्पीड़न और रंग भेद ने अब घातक गठजोड़ का स्वरूप ग्रहण लिया है और अब वे जातीय उत्पीड़न को भारत जैसी ही मान्यता दिला कर इंडियन एट्रोसिटी जैसे कानूनों कि मांग कर रहे है।

सिलिकॉन वैली में भी ब्राम्हण बनाम दलित जैसे संघर्षो की पृष्ठ भूमि तैयार की जा रही है जिसके आधार पर मेरिटोक्रेसी को सिरे से ख़ारिज किया जा सके वहीँ हिंदू हेट्रेड कि पराकाष्ठा ये है कि हिन्दुओ को अपनी पहचान और मूल्यों के लिए अपनी हिन्दू पहचान को भविष्य में गुप्त रखने कि आवश्यकता पड़ सकती है। इन सभी के लिए क्रिटिकल रेस थ्योरी और उसके आक्रामक केन्सिल-कल्चर ने अपना रंग दिखाना भी प्रांरभ कर दिया है।

आश्चर्यजनक रूप से अमेरिकन वामपंथ जो कुछ दशक पहले ही हावर्ड विश्विद्यालय से प्रारम्भ हुआ है ने अपनी पुरानी रेस थियोरी (नस्लवादी विभेद)को धार लगाने का काम किया है जिसे “क्रिटीकल रेस थियोरी ” के नाम से जाना जाता है और जिसका जिक्र बहुत से विद्वानों द्वारा हाल ही में किया गया हैं।

कैंसिल -कल्चर इसी क्रिटिकल रेस -थ्योरी का एक मेजर कॉम्पोनेंट है बल्कि इसके ग्राउंड-एक्सिक्यूशन का सबसे धारदार हथियार है। जिसके पैटर्न को समझने के लिए आपको इसके साध्य को समझना बहुत आवश्यक है कि आखिर इससे हांसिल क्या है? इससे किस प्रकार के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है?

क्रिटिकल रेस थ्योरी के अनुसार समाज में ज्यादा से ज्याद असंतुष्ट समूहों के निर्माण के लिए काम करना है, उदहारण के लिए आप संयुक्त राज्य अमेरिका के फेडरल कानून को ही ले ले जिसमे नौ समूहों को विशेष रूप से संरक्षण दिया गया है ताकि उन्हें किसी भी तरह के भेदभाव इत्यादि से बचाया जा सके इसमें सबसे पहले है जेंडर या लिंग, दूसरा है रेस या नस्ल और इसके बाद डिसेबिलिटी,रंग,राष्ट्रीयता,मत पंथ या संप्रदाय,धर्म और अनुवांशिकीय विशेषता और आयु। इन सभी विभिन्नताओं के बीच क्रिटिकल रेस थ्योरी कि रणनीति यह है कि ज्यादा से ज्यादा ऐसे समूहों को चिन्हित किया जाए जिन्हे ये दावा करने के लिए उकसाया जा सके कि इतिहास में उनके साथ भी भेदभाव और दमन किया गया है। इन सभी समूहों को संगठित रूप से वर्तमान शासकीय और लोकतांत्रिक सामाजिक संस्थानों के साथ संघर्ष के लिए तैयार किया जाये। ताकि सामाजिक संस्थाओं के तानेबाने को छिन्न-भिन्न कर एक नए सोशल आर्डर कि स्थापना कि जा सके।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में इस क्रिटिकल रेस थ्योरी का स्थापित करने का पुरजोर प्रयास देखने को मिलता है वही उनके द्वारा पिछले दिनों लंडन और हावर्ड यूनिवर्सिटी की यात्रा भी इसी तारतम्य में देखे जाने की आवश्यकता है और अभी इस लेख को लिखते समय भी वे किसी विदेशी भूमि पर मुस्लिम समुदाय पर हो रहे हमलों का जिक्र करते नज़र आ रहे है। इस रणनीति के तहत भारत देश में इसके लिए अपार सम्भावनाएं विद्यमान है। हाल ही में आपने किसान आंदोलन देखा, शाहीन बाग का धरना भी देखा और आपने बिलकुल अभी जंतर मंतर पर पहलवानों का ड्रामा देखा है। भारतीय संसद के नए भवन के उद्घाटन में महिला आदिवासी राष्ट्रपति को मोहरा बनाकर ” आदिवासी समुदाय को भड़काने का प्रयास भी देखा है।

यही नहीं आप खालिस्थान समर्थकों के विदेशों में होने वाले प्रदर्शन देखिये, भारतीय दूतावास के राट्रीय ध्वज को उतरना आप भूले नहीं होंगे? आप ये भी नहीं भूले होंगे कि पंजाब के तथाकथित सिख संत अमृतपाल को किस प्रकार हिंसा भड़काने के लिए प्रोजेक्ट किया गया था और अमृतपाल द्वारा वॉयलेंस को ट्रिगर करने के लिए प्रदर्शनकरि भीड़ के साथ धर्मग्रंथ को सम्मिलित किया जाना कोई सतही सोच नहीं थी बल्कि ये योजना किसी हार्डकोर प्रशिक्षित काडर की थी जिस पर गंभीरता पूर्वक विचार की आवश्यकता है।

इसके साथ ही आश्चर्यजनक रूप से एक व्यक्ति और साथ में था जिसका नाम “विक्की थॉमस ” है जो मूलतः केरल के रहने वाले है और फिलहाल अमृत छक कर स्वयं को अमृतधारी सिख बताते है इन्होने ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर के सामने गुरु नानक देवजी के एक मंदिर में जाकर एक वीडियो शूट किया और उसे सिख धर्म की बेअदबी बता कर सिखों को भड़काने का प्रयास किया और आ कर देख लेने की धमकी दी और यहां भी वायलेंस को ट्रिगर करने का प्रयास किया।

प्राचीन सनातन संस्थाएं और भाषाएं भी है निशाना

मूल सिद्धांत के अनुसार है कि प्राचीन सिद्धांतों और सामाजिक संस्थाओं को ध्वस्त किया जाए ,तो प्राचीन भारतीय सनातन संस्थाएं भी इनके निशाने पर सबसे पहले है यदि आप संस्कृत भाषा को अन्य भारतीय भाषओं के साथ जोड़ कर इनको जवाब देंगे तो दूसरी तरफ इनका दूसरा इको सिस्टम संस्कृत को दमनकारी ब्राम्हणों की भाषा बता कर “अपनी क्रिटिकल दलित थ्योरी और आर्य-द्रविड़ विभेद के टूलकिट का प्रयोग कर विरोधी को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए विवश कर देगा। हाल ही में पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की वनवासी रामकथा का विरोध और उसके लिए जबलपुर उच्च न्यायालय में लगाई गई याचिका भी इसी CRT यानी क्रिटीकल रेस थ्योरी का हिस्सा है मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग के आदिवासी भील बहुल अंचलो में इस टूलकिट को प्रभावी ढंग से “जयस” नामक संगठन आगे बढ़ा रहा है, इसके तार कहाँ से और किंस प्रकार से हावर्ड तक जुड़े है। इसकी जांच करने की आवश्यकता है।

आधारहीन तर्क और व्याख्या

हावर्ड के वामपंथी विद्वान कार्लिन वेस्ट को सुना जाए तो “अमेरिका के अफ्रीकी अमेरिकी अश्वेत समुदाय “भारतीय दलितों की तरह है और श्वेत अमेरिकन भारत के स्वर्ण समाज की तरह है” उन्होंने अपनी एक किताब “रेस मैटर्स” में इस प्रकार के सिद्धातो की पुरजोर व्याख्या भी की है। इसके साथ ही दशक भर पुराना “BLM” ब्लैक लाइव् मैटर्स” नाम का आंदोलन भी ज्यादा पुराना नही है जिसने अमेरिका की पुलिस को कटघरे में खड़ा कर दिया था और कई पुलिस वालों को विभागीय जांच का सामना करना पड़ा था, इस BLM आंदोलन में बाकायदा हूडी लगाए अश्वेत किशोर (जो पुलिस गोलीबारी में मारा गया था)के पोस्टर्स लगाए गए । इसके अलावा “मी टू ” आंदोलन भी आपको याद ही होगा जिसमे कितने ही ख्याति लब्ध लोगो को अपनी प्रतिष्ठा और पद गंवाने पड़ गए थे,

अप्रवासी भारतीय प्रतिभा को सर्वाधिक खतरा

समान रूप से समाज में सभी वर्गों को उन्नति के समान अवसरों के स्थान पर अब समान भागीदारी की वकालत हिंसक हो सकती है और इसके साथ ही मेरिट के आधार पर आने वाले परिणामो के स्थान पर समान परिणामो पर बल देने के कारण आने वाले समय मे भारत की उच्च तकनीकी संस्थाओं को निशाना बनाया जा सकता है जैसे आईआईटी, आई आई एम जैसे उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय संस्थानों से निकले “टेक्नोक्रेट्स और प्रबंधक” जिनकी अमेरिका के सिलीकॉन वैली और अन्य व्यापारिक प्रतिष्ठानों में बड़ी मांग है, या जो अभी वहां बड़ी तादाद में कार्यरत है पर भविष्य में बड़े खतरे उत्पन्न हो सकते है, उन पर हमले , और कैंसिल कल्चर के अटैक(CCA)बढ़ेंगे।

विवाह और परिवार जैसी संस्थाओं पर भी खतरा

सबसे ताजा उदहारण विवाह नाम की संस्था जो कि विश्व मे सर्वत्र मान्य और प्रत्येक धर्म मे स्वीकार्य संस्था है इसे नष्ट करने के लिए ” सेम सेक्स मैरिज” की जबदस्त वकालत देखने को मिली है” चूंकि विवाह भी एक प्राचीन संस्था है तो इसे भी नष्ट किया जाना चाहिए तो लेस्बियन,गे,बाइसेक्सुअल,ट्रांसजेंडर,क्वीयर(LGBTQ+) के डिस्कोर्स में ये देखने को मिला और भारत मे भी इसकी स्थापना के लिए अभी भी प्रयास किये जा रहे है।इस सिद्धांत में ” जीवंत अनुभव ” को अंतिम निर्णय माना गया है जबकि स्त्री पुरुष के वैज्ञानिक और जैविक अंतर को, यंहा तक कि वैज्ञानिक प्रमाणों को भी खारिज किया जा रहा है और जब इसके खिलाफ कोई आवाज उठती है तो इसको ” पितृसत्तात्मक ” सोच से ग्रसित बताकर केंसिल कल्चर के टूलकिट से चुप कराने का प्रयास किया जाता है।

CRT में कट्टरपंथी इस्लामिक विचार धारा को मौन समर्थन

जिसे आप तुष्टिकरण कहते है यह एक विशेष समझौता है कट्टरपंथी इस्लामिक विचार धारा के साथ CRT का विशेष कर भारतीय उपमहाद्वीप में सहज और स्वाभाविक गठजोड़ है क्योंकि ” अमेरिकी वामपंथियों ने हावर्ड विश्वविद्यालय में CRT में यह प्रतिपादित किया है कि भारत मे वनवासियों और दलित समुदायों के साथ मुस्लिम समुदाय भी विक्टिम है। CRT के अनुसार मुस्लिम समुदाय भी “बाह्य कालोनाइजर” इनवेडर न होकर अन्य दमित और दलित समुदायों से ही आता है इसके अलावा विश्व समुदाय में ” इस्लामोफोबिया” जैसे शब्दों को गढ़ कर ” रेडिकल इस्लाम ” को कवर फायर देने का काम भी किया गया है।

प्रवासी हिन्दू स्कूली बच्चो के साथ बढ़ सकती है हिंसा

अमेरिका की कुछ खबरों पर भरोसा किया जाए तो अमरिकी हिन्दू समुदाय के स्कूली बच्चों के साथ रिलिजियस बुलिंग” की घटनाओं में इजाफा हो रहा है जो बेहद चिंताजनक है। इस प्रकार की घटनाएं भी इन्ही रणनीतियों का सोचा समझा हिस्सा है और वैसे भी भारतीय हिन्दू बच्चों की मेधा-प्रतिभा को अजीब सी नजरो से देखा जाता है तो केंसिल कल्चर को इसके खिलाफ हिंसा,बुलिंग को फ्यूल करने में कोई खासी दिक्कत नही आएगी।

कम से कम भारत-सरकार एक राष्ट्रीय आयोग गठित करें जो राष्ट्रीय और अंतरार्ष्ट्रीय घटनाओं पर पैनी नजर रख कर इसे साक्ष्यों के साथ डॉक्यूमेंट करे साथ ही भारत की संसद में इसके विरुद्ध कानून बनाया जाए। इसके अलावा इस आयोग द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में एक श्वेत पत्र जैसी कोई प्रक्रिया भी प्रस्तुत की जानी चाहिए ताकि ” विभिन्न राष्ट्रों की पुलिस एजेंसियां इसे भली भांति समझ सके और इन घटनाओं को किसी सामान्य लॉ एंड आर्डर की समस्या की तरह न देख कर उसके निहितार्थों को समझ कर कानूनी कारवाई कर सके। अन्यथा पलायन करने के कोई दूसरा विकल्प नही होगा और ठौर तो मिलना असम्भव है “विकल्प “केवल दृढ़ता के साथ इसका सामना करना ही है।

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