विपक्ष की गोलबंदी में अरविंद केजरीवाल का भागीरथी प्रयास!

वर्तमान में चल रहे सियासी घटनाक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) क्या मुरझाए हुए विपक्ष को......

दिल्ली। वर्तमान में चल रहे सियासी घटनाक्रम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Chief Minister Arvind Kejriwal) क्या मुरझाए हुए विपक्ष को संजीवनी दे पाएंगे। बहरहाल, इस समय अरविंद केजरीवाल के इर्द गिर्द विपक्षी पार्टियां घूम रही हैं। मतलब साफ है कि केजरीवाल की साफ सुथरी छवि इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है। भले ही इस समय वे ईडी और सीबीआई के जांच के दायरे में उनके पार्टी के शीर्ष नेता घेरे में हो। लेकिन जैसे उन्होंने दलील जनता के सामने रखी हैं कि यह सब एक प्रायोजित प्रोपोगंडा है।

विपक्षी पार्टियां भी जानती हैं कि यही एक शख्स है जिस पर पीएम मोदी के तोड़ के रूप में 2024 के लोकसभा चुनाव (2024 Lok Sabha Elections) में खड़ा किया जा सकता है। राजनीतिज्ञ के जानकारों का दावा भी है अगर विपक्ष अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर लोकसभा के चुनाव में उतरता है तो जाहिर तौर पर ये प्रधानमंत्री बनने की होड़ में शामिल हो जाएंगे। यानी जनता में मोदी के जादू को हवा-हवाई करने का दम अगर किसी में है तो वह अरविंद केजरीवाल ही है। वैसे ये दावे राजनीतिक जानकारों के हैं।

आप का कहना है, यही वजह है कि दिल्ली सरकार को घेरने में केंद्र की बीजेपी सरकार कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है। आप का अरोप है, कि अरविंद केजरीवाल के दिल्ली मॉडल को पूरे देश की जनता चाहने लगी है। इसके चलते मोदी सरकार केजरीवाल से डरी है। क्योंकि अब वो पहले वाली आप पार्टी नहीं रह गई है क्योंकि इसने अपने संगठन को बूथ स्तर पर कई राज्यों में मजबूत कर लिया है।

अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में आप ने अप्रत्याशित नतीजे सामने लाए। कई स्थानों पर इसके निकायों के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। भारी संख्या में आप समर्थित पार्षद जीते। इस निकाय चुनाव ने यह संदेश पूरे देश दे दिया कि आप का विस्तार दिल्ली, पंजाब, गुजरात के बाद मजबूती के साथ यूपी में हो चुका है। जिसे भांपकर विपक्षी दल अब अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में 2024 के लोकसभा के चुनाव में उतरने के लिए बेताब हैं।

अब विपक्ष अरविंद केजरीवाल की वजह से एक होता दिख रहा है। इसके पीछे कारण है अरविंद केजरीवाल का तेवर। क्योंकि परंपरागत राजनीति का विरोध करने वाले अरविंद केजरीवाल भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, भय और भूख से निजात दिलाने के संकल्प को लिया है। दिल्ली के बहुचर्चित धरना स्थल जंतर-मंतर से निकलने वाला एक जादूगर ने आज पूरे विपक्ष को एकजूट करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। हालांकि बार-बार भाजपा और कांग्रेस के चिकोटी काटने के बावजूद अरविंद केजरीवाल के ही फार्मेूले पर चलने को मजबूर हैं। वर्तमान राजनीति में ब्रह्म वाक्य बन चुके अरविंद केजरीवाल भाजपा और कांग्रेस के लिए चुनौती बन चुके हैं। ऐसे में विपक्ष को मोदी की काट के लिए अरविंद केजरीवाल ही उपयुक्त साबित हो रहे हैं।

क्षेत्रीय पार्टियों के सभी प्रमुख अरविंद केजरीवाल से मिल चुके हैं

अभी तक सभी क्षेत्रीय पार्टियों के प्रमुख अरिवंद केजरीवाल से मिल चुके हैं। जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार व उपमुख्यमंत्री तेजप्रताप यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, तेलंगाना के मुख्यमंत्री, राष्ट्रवादी कांग्रेस के मुखिया शरद पवार, तमिलनाडु के सीएम स्टालिन, तेलंगाना के चंद्रशेखर राव सहित अन्य हैं। रही बात कांग्रेस की तो इससे सभी क्षेत्रीय पार्टियां डरी है। इधर, अरविंद केजरीवाल से बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों को डर है। क्योंकि अरविंद केजरीवाल की सार्वभौमिकता अब पूरे देश में बन चुकी है।

अध्यादेश के जरिए केजरीवाली की दिल्ली में ताकत को कम करने की साजिश

दिल्ली में अध्यादेश के जरिए अरविंद केजरीवाल की ताकत को कम करने के लिए बीजेपी ने साजिश रची है। जैसा की आप का आरोप है, अरविंद केजरीवाल की व्यापक छवि बन चुकी है। पंजाब में प्रचंड बहुमत की सरकार के अलावा गोवा, गुजरात सहित सभी राज्यों में बढ़ रही अरविंद केजरीवाल की पैठ से भाजपा घबराई हुई है। इसी कारण सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद रातोरात अध्यादेश लाया गया है। इससे अरविंद केजरीवाल की नुकसान होने के बजाए बीजेपी को ही होने वाला है। क्योंकि दिल्ली में यूपी, बिहार सहित सभी राज्यों के लोग रोजी रोजगार करते हैं। जो अरविंद केजरीवाल के चाहने वाले है। बीजेपी के इस कदम में उसे अन्य राज्यों में अपने परंपरागत वोटों की क्षति उठानी पड़ेगी। गौरतलब है कि लोकसभा के पहले अध्यक्ष जी वी मावलंकर इस बारे में नेहरू जी को पत्र लिखा था कि “अगर अध्यादेशों को इसी तरह से जारी किया जाता रहा तो संसद अप्रासंगिक हो जाएगी।

जब ईडी को आप नेता संजय सिंह का नाम घसीटने पर मांगनी पड़ी माफी

आप के वरिष्ठ नेता संजय सिंह का कथाकथित शराब घोटाले की चार्जशीट में ईडी ने नाम डाल दिया है। लेकिन संजय सिंह की आपत्ति के बाद ईडी को माफी मांगनी पड़ी गई थी। इसके बदले की भावान को लेकर ईडी ने उनके करीबियों से पूछताछ करना शुरू कर दिया। उनके यहां छापेमारी की गई। लेकिन उन्होंने अपनी दलीलों और तर्कों से ईडी के अलावा पीएम मोदी की सरकार के इशारे पर ईडी की द्वेषपूर्ण कार्रवाई को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। आरोप है, पूर्व मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के मामले में ईडी की साजिश के तहत उन्हें फंसाया जा रहा है। संजय सिंह का कहना है कि मोदी सरकार ईडी और सीबीआई को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है। जिसे देश की जनता देख और समझ रही है। इसका जवाब आने वाले लोकसभा के चुनाव में देगी।

एकजूट मुहिम की कुछ झलकियां

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