नई दिल्ली: नई दिल्ली में सोमवार को लोकसभा का माहौल इतिहास की महक से भर गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत वंदे मातरम् (Vande Matram) के 150 साल पूरे होने पर विशेष चर्चा की शुरुआत की। पीएम मोदी ने कहा कि इस विषय पर न कोई पक्ष है और न विपक्ष क्योंकि यह मंत्र भारत की आजादी की लड़ाई में सभी को ऊर्जा देने वाला था। उन्होंने इसे त्याग, तपस्या और प्रेरणा का प्रतीक बताया और कहा कि इस अद्भुत पल का साक्षी बनना पूरे सदन के लिए सौभाग्य है।
मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूरे होना सिर्फ एक ऐतिहासिक पड़ाव नहीं बल्कि राष्ट्रीय चेतना को फिर से महसूस करने का अवसर है। उन्होंने याद दिलाया कि यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में लाखों भारतीयों की आवाज बना था।
चर्चा में सरकार की तरफ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित कई केंद्रीय मंत्रियों ने हिस्सा लिया। कांग्रेस की ओर से प्रियंका गांधी, उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई समेत आठ सांसद अपनी राय रख रहे हैं। अन्य दलों के कई सदस्य भी इस चर्चा में शामिल हुए।
वंदे मातरम् के 150 साल पूरे होने पर सरकार पूरे वर्ष देशभर में कार्यक्रम कर रही है। इसी कड़ी में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने 2 दिसंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाकर तय किया था कि 8 दिसंबर को लोकसभा और 9 दिसंबर को राज्यसभा में इस पर विशेष चर्चा होगी।
राष्ट्रगीत का इतिहास भी इस अवसर पर याद किया गया। बंकिम चंद्र चटर्जी ने इसे 7 नवंबर 1875 को अक्षय नवमी पर लिखा था और पहली बार 1882 में उनके उपन्यास आनंदमठ के साथ बंगदर्शन में प्रकाशित किया गया। 1896 में रवींद्रनाथ टैगोर ने कांग्रेस अधिवेशन के मंच से इसे गाया और तब हजारों श्रोताओं की आंखें नम हो गई थीं। यह पहली बार था जब वंदे मातरम् को राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक रूप से गाया गया।
सरकार द्वारा संसद में यह चर्चा कराने के पीछे कई वजहें मानी जा रही हैं। पहली वजह राष्ट्रीय भावना को मजबूत करना है। दूसरी वजह बंगाल चुनाव से पहले इस सांस्कृतिक विरासत को राजनीतिक रूप से सामने लाना बताई जा रही है। तीसरी वजह 1937 में इसके कुछ हिस्सों को हटाए जाने के विवाद को फिर से चर्चा में लाना है। चौथी वजह बंगाल विभाजन और स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े ऐतिहासिक क्षणों को याद कराना है। जबकि पांचवीं वजह यह मानी जा रही है कि संसद में चल रहे तनावपूर्ण माहौल को वंदे मातरम् जैसे सर्वमान्य विषय के जरिए सकारात्मक बनाया जा सके।
लोकसभा की यह चर्चा न सिर्फ इतिहास को याद करने का अवसर बनी बल्कि राष्ट्रगीत की भावनात्मक शक्ति को भी एक बार फिर पूरे देश के सामने रख गई।