लखनऊ, 17 दिसंबर (आईएएनएस)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) (BJP) को तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली सफलता के बाद उसने सभी जगहों पर नए चेहरे को मौका दिया है। बताया जा रहा है कि भाजपा ने इसके जरिए दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे लाने का सियासी प्रयोग किया है। इसके साथ भाजपा ने एक मजबूत प्रतीकात्मक आधार भी तैयार किया है और नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ कर नया संदेश देने की कोशिश की है।
सियासी जानकारों की मानें तो छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुखमंत्री के तौर पर आदिवासी, दलित, ब्राह्मण और राजपूत चेहरों को उतार कर भाजपा ने एक संदेश दिया। पार्टी ने इसके साथ ही तीनों राज्यों में नए नेतृत्व को लेकर भी नई पॉलिटिकल पिच तैयार कर सबको चौंका दिया।
जानकार बताते हैं कि संघ और भाजपा आलाकमान ने इन फैसलों से के पीछे कई संदेश दिए हैं। पार्टी से बड़ा कोई नहीं है। मातृ संगठन आरएसएस अभी उतना ही ताकतवर है। वो जिसे चाहे फर्श से अर्श तक पहुंचा सकता है। आने वाले सालों में भाजपा की दूसरी और नई लीडरशिप तैयार हो गई है। इसका असर आगामी लोकसभा में भी देखने को मिल सकता है।
सियासी जानकर कहते हैं कि ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कही जाने वाली भाजपा ने तीन राज्यों में शीर्ष नेतृत्व के चयन में नए चेहरों को लाकर ना सिर्फ अपनी पुरानी छवि से बाहर आने की कोशिश की है, बल्कि पिछड़े, दलित-एसटी वर्ग को लुभाने और विपक्ष की जातीय जनगणना की मांग की धार को कुंद करने का प्रयास किया है। इसके साथ ही भाजपा ने नए और युवा चेहरों को शीर्ष पदों पर बैठाकर पार्टी के नए काडरों को भी साधने की कोशिश की है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि यह बदलाव सिर्फ भाजपा का अकेले का फैसला नहीं है। आरएसएस के बड़े नेता मंथन करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि अब दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। इसकी शुरुआत उत्तर प्रदेश से हो गई थी। 2014 में वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को कानपुर से चुनाव लड़वाया गया। 2019 में उनकी जगह किसी और को मौका दिया गया। उत्तर प्रदेश की राजनीति में स्थापित नेता कलराज मिश्र हों, केशरी नाथ त्रिपाठी, ओमप्रकाश सिंह हों, इनकी जगह दूसरे नेताओं को मौका दिया गया। कुछ नेताओं को राज्यपाल बनाकर सम्मानित भी किया गया। इनकी जगह दूसरी पंक्ति के नेताओं को मौका दिया गया। योगी, केशव मौर्या, दिनेश शर्मा, स्वतंत्र देव और ब्रजेश पाठक जैसे नेताओं 50 से 60 साल की उम्र वालों को आगे लाया गया।
यह प्रयोग सफल हुआ। यह पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर यूपी में लिया गया। इसके बाद इसे आगे बढ़ाते हुए अन्य राज्यों में लागू किया जा रहा है। भाजपा और संघ आज की नहीं आगे की दस सालों के बाद क्या होना है, इस पर काम करती है।
उन्होंने कहा की जब अटल की सरकार में भी संघ युवाओं को आगे लाने की बात करता था, जो अब जमीन पर लागू हो रहा है। यह सिर्फ भाजपा की नहीं संघ की पूरी सोच है कि दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाया जाया। संघ और भाजपा आगे की दस पंद्रह सालों की राजनीति पर फोकस कर रहे हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे बढ़ाने में भाजपा ने यह प्रयोग बहुत पहले शुरू कर दिया था। हरियाणा में जहां चौटाला, फिर देवी लाल, भजन लाल या अन्य जाट, गुर्जर नेताओं का बोलबाला हुआ करता था। वहां पर भाजपा ने अचानक मनोहर लाल खट्टर पंजाबी खत्री को आगे लाकर सबको चौंका दिया था। उत्तराखंड में भगत सिंह कोश्यारी, खंडूरी, रावत और निशंक जैसे नेताओं को हटाकर छात्र राजनीति से आए पुष्कर सिंह धामी को अवसर दिया।
ऐसे ही गुजरात में स्थापित नेता नितिन पटेल और रुपाणी को हटाकर वहां भूपेंद्र पटेल को स्थापित कर दिया है। यह लंबे समय की राजनीति के संकेत हैं। यह संघ की सोच और मोदी-शाह की सहमति के बाद उठाया गया कदम है। इस प्रयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि स्थापित क्षत्रपों के महत्व को कम किया और नए व्यक्ति को भी मौका मिला।
संघ और भाजपा की रणनीति के अनुसार, ये लोग नए लोगों को मौका देंगे। किसी को क्षत्रप बनने का मौका नहीं देंगे।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे ने कहा कि भाजपा एक काडर बेस पार्टी है। यहां पर हर छोटे बड़े कार्यकर्ता को अवसर मिलता है। पार्टी की असल पूंजी कार्यकर्ता होते हैं। इसका भाजपा हमेशा ख्याल रखती है। युवा जोश और अनुभव के मिश्रण का कैसे इस्तेमाल हो यह पार्टी को पता है। भाजपा ज्यादा से ज्यादा कार्यकर्ताओ को अवसर देने में सबसे आगे है।