नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)। 2014 और 2019 के लोक सभा चुनाव में भाजपा (BJP) की जीत में एक बड़ी भूमिका निभाने वाले देश के ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए इस बार सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही गठबंधनों में होड़ मची हुई है।
कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल जातीय जनगणना का कार्ड खेलकर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। इन दलों की कोशिश खासतौर से समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों की कोशिश एक तरफ जहां अपने ओबीसी वोट बैंक को भाजपा के पाले में जाने से रोकना है तो वहीं दूसरी तरफ भाजपा के पाले में जा चुके ओबीसी मतदाताओं को अपने साथ लाना है।
विपक्षी दलों की रणनीति को देखते हुए भाजपा ने भी काउंटर रणनीति तैयार कर ली है। भाजपा न केवल देश के ओबीसी वोटरों को यह बार-बार याद दिला रही है कि देश को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री भाजपा ने दिया बल्कि यह भी याद दिला रही है कि ओबीसी समाज से जुड़े सबसे ज्यादा सांसद और विधायक भी भाजपा से ही है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तो शुक्रवार को तेलंगाना के सूर्यापेट में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए यह वायदा तक कर दिया कि राज्य में भाजपा की सरकार बनने पर पार्टी ओबीसी समाज के नेता को ही राज्य का मुख्यमंत्री बनाएगी। बयान जरूर तेलंगाना विधान सभा चुनाव के मद्देनजर तेलंगाना में दिया गया था लेकिन अमित शाह जैसे कद के नेता के यह कहने से देश भर के ओबीसी वोटरों को मैसेज चला जाता है।
राहुल गांधी और विपक्षी दलों के अन्य नेताओं द्वारा ओबीसी वोटरों को साधने की कोशिश को विफल करने के लिए भाजपा देश भर में अभियान भी चला रही है।
भाजपा संसदीय बोर्ड के सदस्य एवं पार्टी के ओबीसी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ के. लक्ष्मण राहुल गांधी की मांग पर पलटवार करते हुए कहते हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस को ओबीसी के बारे में बात करने का कोई हक नहीं है।
जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी से लेकर मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार तक ने ओबीसी समाज के लिए कुछ नहीं किया। यहां तक कि मोदी सरकार ने जब पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का प्रस्ताव रखा तब भी कांग्रेस, वामपंथी और क्षेत्रीय दलों ने संसद में इसका विरोध किया था।
के. लक्ष्मण ने बताया कि भाजपा देश के ओबीसी वोटरों के बीच जाकर आउटरीच कार्यक्रम और ओबीसी समाज के बुद्धिजीवियों के साथ सम्मेलन कर लगातार कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय दलों के झूठ का पर्दाफाश कर रही हैं। उन्हें तथ्यों और आंकड़ों के साथ यह बता रही है कि पिछले 9 सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओबीसी समाज के लिए ऐसे कई अनगिनत ऐतिहासिक फैसले किए हैं जो इससे पहले की सरकारों ने सोचा तक नहीं था।
भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह से लेकर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और डॉ के लक्ष्मण सहित सरकार के अनेक मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अपने कार्यक्रमों, सम्मेलनों और चुनावी रैलियों में एक सुर में यह गिनाते नजर आते हैं कि भारत को पहला ओबीसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा ने दिया, भाजपा के 85 लोक सभा सांसद ओबीसी समाज से है।
ओबीसी समाज के सबसे ज्यादा विधायक और एमएलसी भी भाजपा के ही हैं। ओबीसी समाज के 27 नेताओं को केंद्र में मंत्री बनाकर प्रधानमंत्री ने ओबीसी समुदाय का मान, सम्मान और गौरव बढ़ाया है। मोदी सरकार ने केंद्रीय शिक्षण संस्थानों और नीट में 27 प्रतिशत आरक्षण दिया और ओबीसी समाज में पिछड़ गए तबकों के लिए सबसे बड़ी विश्वकर्मा योजना को भी लॉन्च किया।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा ने यह तय कर लिया है कि पार्टी विपक्षी दलों की जातीय जनगणना की मांग का विरोध नहीं करेगी बल्कि इसकी बजाय पार्टी सिर्फ ओबीसी समाज के लिए किए गए कामों को गिनाने के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गरीब परिवार से आने और ओबीसी समुदाय से जुड़े होने पर ज्यादा फोकस करेगी। इसके साथ ही पार्टी ने विश्वकर्मा योजना का लाभ ओबीसी समाज के बड़े तबके तक पहुंचाने और फिर इन लाभार्थियों से संपर्क बनाए रखने की भी एक महत्वपूर्ण योजना बड़े पैमाने पर बनाई है।
इसी महीने 9 अक्टूबर को जब चुनाव आयोग पांच राज्यों – मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ , राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर रहा था, उसी समय भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भाजपा मुख्यालय के केंद्रीय कार्यालय विस्तार में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम, राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग, विनोद तावड़े, भाजपा ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. लक्ष्मण, त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लब देब, केंद्रीय मंत्री बी एल वर्मा, यूपी के पूर्व मंत्री श्रीकांत शर्मा सहित देश भर से बुलाए गए विभिन्न राज्यों के चुनिंदा मंत्रियों, सांसदों और विधायकों के साथ बैठक कर विश्वकर्मा योजना के सफल क्रियान्वयन, प्रचार-प्रसार, निगरानी और लोगों तक पहुंचने की रणनीति तैयार कर रहे थे।
हालांकि पार्टी के हाथ में रोहिणी कमीशन की सिफारिशों का एक बड़ा ट्रम्प कार्ड भी है लेकिन इसे लेकर सरकार ने अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अगर विपक्षी दल जातीय जनगणना के नाम पर ओबीसी वोटरों को साधने में कामयाब होते नजर आते हैं तो भाजपा रोहिणी कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की दिशा में भी आगे कदम बढ़ा सकती है।