लेटरल एंट्री पर कांग्रेस का विरोध पाखंड : अश्विनी वैष्णव

केंद्रीय मंत्री ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, "लेटरल एंट्री मामले में कांग्रेस का पाखंड स्पष्ट है।

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  • Publish Date - August 19, 2024 / 11:15 AM IST

नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। लेटरल एंट्री (lateral entry) के माध्यम से प्रशासनिक सेवाओं में अधिकारियों की सीधी भर्ती को लेकर विपक्ष की आलोचनाओं के बीच रेलवे तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रविवार को कहा कि इस मामले में कांग्रेस का विरोध पाखंड के अलावा कुछ नहीं है क्योंकि इसकी अवधारणा यूपीए सरकार के समय ही तैयार हुई थी।

केंद्रीय मंत्री ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा, “लेटरल एंट्री मामले में कांग्रेस का पाखंड स्पष्ट है। लेटरल एंट्री की अवधारणा को यूपीए सरकार ने ही तैयार की थी।”

उन्होंने लिखा कि दूसरा प्रशासनिक सुधार आयोग (एआरसी) 2005 में यूपीए सरकार के दौरान गठित किया गया था जिसके अध्यक्ष वीरप्पा मोइली थे। आयोग ने विशेष ज्ञान की आवश्यकता वाले पदों में रिक्तियों को भरने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती की सिफारिश की थी।

वैष्णव ने कहा, “एनडीए सरकार ने इस सिफारिश को लागू करने के लिए एक पारदर्शी तरीका बनाया है। यूपीएससी के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्ती की जाएगी। इस सुधार से शासन में सुधार होगा।”

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने शनिवार को 45 पदों के लिए विज्ञापन दिया, जिनमें 10 संयुक्त सचिव और 35 निदेशक/उप सचिव के पद शामिल हैं। ये पद अनुबंध के आधार पर ‘लेटरल एंट्री’ के जरिए भरे जाने हैं।

दूसरे एआरसी को भारतीय प्रशासनिक प्रणाली को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए सुधारों की सिफारिश की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। आयोग ने सिविल सेवाओं के भीतर कार्मिक प्रबंधन में सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया। इसकी एक प्रमुख सिफारिश यह थी कि ऐसे उच्च सरकारी पदों पर लेटरल एंट्री शुरू की जाए, जिसके लिए विशेष ज्ञान और कौशल की आवश्यकता होती है।

एआरसी ने पेशेवरों के एक प्रतिभा पूल के निर्माण का भी प्रस्ताव दिया था जिन्हें अल्पकालिक या संविदा के आधार पर सरकार में शामिल किया जा सके। उसने सुझाव दिया था कि मौजूदा सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री से प्रवेश पाने वाले अधिकारियों को इस तरह से एकीकृत किया जाना चाहिए कि सिविल सेवा की अखंडता और लोकाचार को बनाए रखा जा सके और साथ ही उनके विशेष कौशल का लाभ उठाया जा सके।

इससे पहले मोरारजी देसाई (और उनके बाद के. हनुमंतैया) की अध्यक्षता में 1966 में गठित प्रथम एआरसी ने भी सिविल सेवाओं के भीतर विशेष कौशल की आवश्यकता पर बल देते हुए भविष्य की में इस पर चर्चा के लिए आधार तैयार किया था। हालांकि उसने सीधे-सीधे लेटरल एंट्री की वकालत नहीं की थी।

सरकार का मुख्य आर्थिक सलाहकार पारंपरिक रूप से एक लेटरल एंट्री से शामिल अधिकारी होता है, जो नियमों के अनुसार, 45 वर्ष से कम आयु का होता है और हमेशा एक प्रख्यात अर्थशास्त्री होता है।

मोदी सरकार ने 2018 में संयुक्त सचिवों और निदेशकों जैसे वरिष्ठ पदों के लिए लेटरल एंट्री के जरिये पहली बार भर्ती की थी। अब दूसरी बार इस तरह की पहल की जा रही है।