नई दिल्ली, 12 फरवरी (आईएएनएस)| हिंदुत्व (hindutva) की राजनीति का मुकाबला करने के लिए जातिगत जनगणना एक हथियार के रूप में सामने आई है। यह मंडल बनाम कमंडल की राजनीति होगी, जो पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय वीपी सिंह द्वारा मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के बाद सबसे आगे रही है और भाजपा अपनी मंदिर की राजनीति के साथ आगे बढ़ी है। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली, लेकिन बिहार में गिरफ्तार हुए और भाजपा ने सरकार गिरा दी। अगला दशक मंडल युग था और ओबीसी नेता स्थानीय क्षत्रप बन गए।
कांग्रेस के एक नेता ने बताया कि देश में कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्रियों में से दो ओबीसी समुदाय से हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और छत्तीसगढ़ के भूपेश बघेल ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, लेकिन सवर्ण वोटों के नुकसान के डर से पार्टी उनका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं कर पा रही है।
मंडल रिपोर्ट के कार्यान्वयन में कांग्रेस नेता और तत्कालीन प्रधान मंत्री नरसिम्हा राव का महत्वपूर्ण योगदान था, लेकिन कांग्रेस राजनीतिक रूप से एक स्टैंड नहीं ले सकी और ओबीसी वोट खो दिया, जो धीरे-धीरे क्षेत्रीय दलों और बाद में भाजपा में स्थानांतरित हो गया।
कांग्रेस ने अपने उदयपुर अधिवेशन में 2011 की जातिगत जनगणना के आंकड़ों को सार्वजनिक करने का प्रस्ताव पारित किया।
कांग्रेस के प्रस्ताव में समाज के सभी वर्गों के लिए लड़ाई और विशेष रूप से जातिगत जनगणना के बारे में भी उल्लेख किया गया है। कांग्रेस नेता बताते हैं कि यह कई राज्यों में, खासकर चुनाव वाले राज्यों में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को प्रभावित कर सकता है।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी कहा था कि वह उदयपुर घोषणा को लागू करेंगे। पार्टी ने पिछले साल मई में अपने चिंतन शिविर के दौरान इसे अपनाया था।
राजनीतिक प्रस्ताव में पार्टी ने कहा था कि वह समाज के सभी वर्गों को पार्टी में शामिल करेगी और संविधान के मूल मूल्यों पर हमले के खिलाफ लड़ाई लड़ेगी।
कांग्रेस के प्रभारी महासचिव संचार जयराम रमेश ने कहा था कि कांग्रेस जातिगत जनगणना के पक्ष में है और इसे कराना जरूरी है।
भाजपा का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय दलों ने जातिगत जनगणना की मांग शुरू कर दी है। भाजपा ने 2024 के चुनाव में राम मंदिर को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की योजना बनाई है। उत्तरप्रदेश में 67 लोकसभा सदस्यों के साथ पार्टी मजबूत है और बिहार में भी इसके सांसदों की संख्या अच्छी खासी है। हालांकि समाजवादी पार्टी ने हिंदू महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ में दलितों के कथित अपमान का मुद्दा उठाकर स्वामी प्रसाद मौर्य को पिछड़ों और दलितों से जोड़ने के लिए आगे बढ़ाया है और साथ ही साथ जातिगत जनगणना की मांग भी उठाई है।
जातियों की वैज्ञानिक गणना अंतिम बार 1931 में की गई थी (जाति की गणना 2011 में भी की गई थी लेकिन इसका डेटा साझा नहीं किया गया था)। इस गणना का आधार यह है कि इससे सरकार को सामाजिक न्याय के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी।
बिहार के ओबीसी दलों जनता दल (यू) और राष्ट्रीय जनता दल द्वारा जातिगत जनगणना के कदम ने भाजपा को परेशान कर दिया है और वह इसका विरोध करते हुए नहीं दिखना चाहती है। आम चुनाव से पहले वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस को अब अपने ओबीसी नेताओं को बढ़ावा देना होगा।