नई दिल्ली, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)। जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव (Jammu and Kashmir assembly elections) के नतीजों से तस्वीर करीब साफ हो चुकी है। घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) और कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। रुझानों में एनसी-कांग्रेस गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिल चुका है। वहीं, विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। गौरतलब है कि 10 साल पहले और 5 अगस्त 2019 में आर्टिकल-370 निरस्त किए जाने के बाद राज्य में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में लंबे वक्त से गठबंधन की सरकारें रही हैं। फारूक अब्दुल्ला ने घाटी में कांग्रेस के सपोर्ट से सरकार भी बनाई।
लेकिन, बाद में उन्होंने पाला बदल लिया। 1999 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी, तो नेशनल कांफ्रेंस-भाजपा के साथ आ गई थी। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला के बेटे उमर अब्दुल्ला को वाजपेयी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में मंत्री भी बनाया गया। हालांकि, बाद में दोनों के रिश्तों में खटास आ गई थी। ऐसे में कहा जा सकता है कि अब्दुल्ला परिवार और भारतीय जनता पार्टी के बीच रिश्ते कभी अछूते नहीं रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ऐसी पार्टी है, जिसके कांग्रेस और भाजपा दोनों के संग रिश्ता रहे हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने मोदी सरकार की प्रशंसा भी की। हाल ही में जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एससीओ समिट के लिए पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान जाने का फैसला किया, तो एनसी प्रमुख फारूक अब्दुला ने इसकी जमकर सराहना भी की थी। वहीं, सोशल मीडिया में कयास लगाए जा रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में खेला हो सकता है। इसके पीछे की वजह है कि अगर जम्मू-कश्मीर में अब्दुल्ला की पार्टी भाजपा के साथ जाती है, तो घाटी में उन्हें काफी हद तक फायदा होगा। जम्मू-कश्मीर में एनसी गठबंधन की सरकार बनती है तो राज्य सरकार की कई मुख्य शक्तियां उपराज्यपाल के अधीन रहेगी। जिसमें पुलिस से लेकर सिविल सेवा अधिकारियों की नियुक्ति से लेकर ट्रांसफर तक के निर्णय एलजी के हाथ में ही रहेंगे। इसके साथ ही मंत्रियों के कार्यक्रम और बैठकों के एजेंडे पहले से उपराज्यपाल कार्यालय को सौंपने होंगे। यानी साफ है कि सरकार किसी की भी बने, लेकिन पावर एलजी के पास ही रहेगी। हर चीज के लिए उन्हें उपराज्यपाल के पास ही जाना पड़ेगा। जिसके चलते केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। लिहाजा वे केंद्र सरकार के साथ रहेंगे, तो उन्हें कई फैसले लेने में सहूलियत मिलेगी। इसके अलावा, केंद्र में भी नेशनल कांफ्रेंस को फायदा मिल सकता है। एनसी प्रमुख और पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला अक्सर जम्मू-कश्मीर के विकास की वकालत करते हैं। ऐसे में मोदी सरकार राज्य के लिए मौजूदा बजट दे सकती है।
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