चाचा-भतीजे की वो जोड़ी जिसमें नहीं हुई ‘बगावत, दोनों ही बने मुख्यमंत्री, 4 बार ली शपथ

By : hashtagu, Last Updated : November 7, 2024 | 8:53 pm

दिल्ली। देश की सियासत में चाचा-भतीजे की जोड़ी(uncle-nephew duo) हमेशा में चर्चा में रही है। कभी अदावत की वजह से कभी आपसी बढिय़ा ट्यूनिंग की वजह से उत्तर प्रदेश में चाचा-भतीजे (शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव) के बीच प्यार, फिर तकरार और फिर नई जुगलबंदी की खूब चर्चा हुई। इसी के उलट महाराष्ट्र में चाचा-भतीजे (शरद पवार और अजीत पवार) की 4 दशक पुरानी जोड़ी के बीच प्यार-दुलार(Love and affection between a 4 decade old couple) और बगावत को भी सभी ने देखा. लेकिन इसी राज्य में चाचा-भतीजे की एक जोड़ी ऐसी भी रही जो सत्ता के शीर्ष यानी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंची।

देश की सियासत में चाचा-भतीजे की अकेली यह जोड़ी है जिसमें दोनों ही मुख्यमंत्री बने. यह कारनामा शरद पवार और अजीत पवार की चाचा-भतीजे की नई जोड़ी के शुरुआती दौर में हुआ था. खास बात यह है कि इस भतीजे को सीएम पद से इस्तीफा शरद पवार की वजह से ही देना पड़ा था। उनके इस्तीफे के बाद शरद पवार तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे।

यवतमाल से शुरू हुई चाचा-भतीजे की कहानी

चाचा शरद भी 3 बार मुख्यमंत्री बने लेकिन उनके भतीजे अजीत पवार 5 बार उपमुख्यमंत्री बने लेकिन अभी तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज नहीं हो सके. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में अपनी अनदेखी से खफा अजीत ने साल 2022 में चाचा शरद से बगावत कर लिया और पार्टी तोड़ डाली. साथ ही उनकी पार्टी का चुनाव चिन्ह भी झटक लिया. यवतमाल जिले को महाराष्ट्र के बाहर ज्यादा नहीं जाना जाता होगा. लेकिन यह जिले प्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखती है। जिले के तहत आने वाली पुसाद विधानसभा सीट शुरू से ही हाई प्रोफाइल सीट रही है और यहां पर एक ही परिवार का ऐसा दबदबा है जिसे अब तक तोड़ा नहीं जा सका है।

पुसाद सीट: पहले चाचा फिर भतीजा

रसूखदार नाइक परिवार का पुसाद सीट ऐसा जोरदार दबदबा है, जिसे 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 2019 के चुनाव तक तोड़ा नहीं जा सका है. नाइक परिवार के राजनीतिक सफर की शुरुआत वसंतराव नाइक से होती है. कानून की पढ़ाई कर राजनीति में आए वसंतराव ने 1952 में पहली बार इसी सीट से चुनाव में जीत हासिल की।

तब वह पहली बार विधायक बने और तत्कालीन मध्य प्रदेश में राजस्व उप मंत्री भी बनाए गए. तब इसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। हालांकि 1960 में महाराष्ट्र के नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने के बाद वह पहले राजस्व मंत्री बनाए गए।

कांग्रेस के टिकट पर वसंतराव नाइक पुसाद सीट से 1952 से लेकर 1972 तक (5 बार) विधायक चुने जाते रहे. 1962 के चुनाव के बाद वसंतराव को नवगठित मारोतराव कन्नमवार सरकार में राजस्व विभाग की जिम्मेदारी मिली. लेकिन नवंबर 1963 में उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद वसंतराव प्रदेश के नए और तीसरे मुख्यमंत्री बने. इसके बाद से वह लगातार 1975 तक मुख्यमंत्री बने रहे।

सबसे लंबे समय तक रहने का रिकॉर्ड

वसंतराव के नाम प्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड आज तक बरकरार है. वह लगातार और कुल 3 बार (11 साल, 78 दिन) मुख्यमंत्री रहे. हालांकि लंबे समय से मुख्यमंत्री बने रहने के दौरान पार्टी के अंदर ही उनके खिलाफ लामबंदी शुरू हो गई।

उनको पार्टी से ही लगातार चुनौती मिलती रही और बाद में मुख्यमंत्री के रूप में उनके शानदार करियर पर विराम लग गया. हालांकि इस बीच वसंतराव के मुख्यमंत्रीत्व काल के दौरान ही उनके भतीजे सुधाकरराव नाइक की राजनीति में एंट्री हो गई थी

चाचा से राजनीति सीख मैदान में उतरे सुधाकर

चाचा वसंतराव के साथ अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करते हुए उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा. धीरे-धीरे वह राजनीति में जमते चले गए और अपने चाचा की राजनीतिक विरासत को कामयाबी के साथ संभाल लिया.

दिलचस्प बात यह रही कि सुधाकरराव ने भी चुनाव लडऩे के लिए पुसाद सीट को ही चुना. वह पहली बार 1978 में इस सीट पर चुने गए. वह 1978 से लेकर 1990 तक लगातार 4 चुनावों में विजयी भी रहे।

चाचा 3 बार तो भतीजा 1 बार बना सीएम

कांग्रेस के टिकट पर चौथी बार 1990 में विधायक बनने वाले सुधाकरराव नाइक 25 जून 1991 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी बने. हालांकि वह अपने चाचा की तरह बतौर सीएम अपनी लंबी पारी नहीं खेल सके और उनका कार्यकाल छोटा ही रहा.

सीएम पद की शपथ लेने के साथ ही वह देश की चाचा-भतीजे की पहली ऐसी जोड़ी बन गई जो मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचने में कामयाब रही. सुधाकरराव एक साल 254 दिन तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि इनके ही दौर में दिसंबर 1992 में मुंबई में भीषण दंगा हो गया, इसके कुछ महीने बाद मार्च 1993 में पद से इस्तीफा देना पड़ गया।

शरद पवार के साथ मतभेद फिर दोस्ती

सुधाकरराव जब मुख्यमंत्री थे तब उनकी पार्टी के अन्य दिग्गज नेता और पूर्व सीएम शरद पवार के साथ राजनीतिक मतभेद बढ़ते चले गए और उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ गया. उनके इस्तीफे के बाद शरद पवार ने तीसरी और आखिरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. वह इस बार पद पर 2 साल से अधिक समय तक रहे. कुछ साल बाद प्रदेश की सियासत में बड़ा बदलाव आया।

साल 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मुद्दे पर शरद पवार ने कांग्रेस छोड़ दी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया. तो सुधाकरराव नाइक ने पुराने मतभेदों को भुलाते हुए शरद पवार के साथ जाने का फैसला किया. फिर नई पार्टी के टिकट पर चुनाव भी लड़ा।

हालांकि चाचा-भतीजे की यह जोड़ी मुख्यमंत्री बनने में जरूर कामयाब रही हो, लेकिन चाचा वसंतराव नाइक के निधन के करीब 12 साल बाद भतीजे सुधाकरराव नाइक मुख्यमंत्री बने थे. सुधाकरराव को पानी के संरक्षण से जुड़े अभियान की वजह से जाना जाता है. उन्होंने महाराष्ट्र में सिंचाई क्रांति की शुरुआत की, जिसके लिए उन्हें जलक्रांति का नायक भी कहा जाता है।

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