Chhattisgarh : सबक लो ! नेता जी, अब न ‘समझे’ तो बंटाधार…कार्यकर्ता ही नहीं, ‘जनता जनार्दन’ भी जय-जयकार
By : madhukar dubey, Last Updated : July 9, 2024 | 8:13 pm
जनता की अपेक्षाएं क्या हैं, वे क्या चाहते हैं। शायद हो सकता है कि कुछ पार्टियां ऐसा करती हो, लेकिन उनका वह व्यापक दायरा नहीं होता है कि जिस लेबल तक के क्या कार्यकर्ता चुनाव के वक्त जुड़े थे, क्या ऐसे कार्यकर्ताओं के सुझाव शामिल किए गए हैं। लेकिन कमोवेश तत्काल रणनीति को बनाने की फर्ज अदायगी के चलते मूतरूप देने की कोशिश होती है। ऐसे में एक बड़ी रिक्तता कार्यकर्ताओं के सुझाव की हो जाती है।
- नतीजा, ऐसी उन तमाम योजनाओं को असर जनता के बीच सिर्फ एक प्रचार के अलावा कुछ नहीं होता है। जबकि किसी भी योजना का लोगों के लिए कितना असरकारक होगा और उसका लाभ कितनी सुलभता से मिल पाएगा। इस गहन विचार के बाद ही लागू होना चाहिए , जिस पर ईमानदारी और निष्ठा के साथ वास्तविक प्रयास होने चाहिए। कई बार देखा गया है कि महज कुछ पदाधिकारियों और सत्ता के करीबी लोगों के बीच राय मशविरा कर अंजाम देने की कोशिश होती है। नतीजा जनता के लिए कहने की तमाम बड़ी योजनाएं नाम बड़े और दर्शन छोटी वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है, जिसका चुनाव में बड़ा असर पड़ता है।
नजीर के तौर पर छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती कांग्रेस की सरकार (Previous congress government) में गौठान, नरवा, गुरूवा, बाड़ी की अच्छी परिकल्पना थी। जिसे जमीन पर मूर्तरूप देने में एक हड़बड़ी दिखी, लागू हुई काफी धूमधाम से। लेकिन इसे व्यवहारिक रूप से लाभदायी बनाने की कवायद तो हुई। गौठानों में पशुओं को लिए चारा नहीं, तो कहीं पानी नहीं। लिहाजा, मार्ग से दूर बनाने के बजाए अधिकांश गौठन सड़क के किनारे बने। पहले तो कुछ माह सब कुछ ठीक रहा बाद में गौठान के रूप में सड़कें ही तब्दील हो गई। इधर गौठान में सूखा और विरानी छा गई। जो चुनावी मुद्दा भी बना। गोबर बिक्री की योजना लेकिन जब चारा ही नहीं मवेशी तो आवार बनकर घूमेंगे। इन्हीं हालातों को नियंत्रण में करने के लिए रोका-छेका चला।
- कुछ मिलाजुलाकर कहने तात्पर्य है कि इन्हें मूर्तरूप देने के लिए सरपंच को ग्राम सभा की जमीन के बजाए ग्रामीणों के सुझाव के मांगे गए होते तो बेहतर नतीजा निकलता। क्योंकि हर जिले की अलग-अलग भागौलिक दशा है। कहीं पानी और चारागाह थे, तो कहीं न पानी न चारा। ये कोई कांग्रेस के हार की एक वजह नहीं थी, इसके कई कारण थे। इसमें योजनाओं में धांधली तो भ्रष्टचार के मुद्दे भी थे। हुआ ये कि विधानसभा चुनाव में एक्जिट पोल में 70 पार जाने वाली कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता के बीच पनपे सत्ता विरोधी करंट को नहीं पहचान पाई।
इसके पीछे कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार में योजनाओं को बेहतर बनाने के बजाए 5 सिर्फ उनकी ब्रांडिंग पर ही ध्यान दिया गया। खैर ब्रांडिंग भी हुई लेकिन जनता को कोई खास लाभ नहीं दे पाई। इधर कार्यकर्ताओं की वह मेहनत जो उन्होंने 2018 में चुनाव के दौरान की थी। जिसकी वजह से कांग्रेस ने रिकार्ड जीत हासिल की थी। उन्हें सत्ता पाने के बाद पार्टी के बड़े नेताओं से दूरी हो गई। जिसका दर्द विधानसभा चुनाव के बाद मंच पर कार्यकर्ताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सामने ही कर डाला था। जिसे साजिश करार कर नजरअंदाज कर देना भी भारी पड़ा। वहीं विधानसभा चुनाव आते-आते कांग्रेस कार्यकर्ताओं की नाराजगी और गुटबाजी की गिरफ्त में दम तोड़ने लगी। हजारों की संख्या में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों ने भाजपा का दामन थाम लिया।
हार के बाद पूर्व विधायकों और पूर्व मंत्री तक बयान दे डाले कि अपना-अपना चलाने में सभी निपट गए। इस बहस में फंसी कांग्रेस की वजह से हारी उसकी समीक्षा होते-होते लोकसभा का चुनाव आ गया। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भी बदले सचिन पायलट ने कमान संभाली उन्होंने भरसक कोशिश की सभी एक साथ एकजूट होकर लोकसभा चुनाव में लड़ें। सभी भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) से लेकर सभी बड़े नेता जो लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे, उन्हें भी चुनाव लड़वाया गया। क्योंकि लोकसभा चुनाव से लड़ने वाले नेताओं को मालूम था, कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराजगी अभी गई नहीं है। और मोदी की गांरटी की चल रही लहर में जिसे डैमेज कंट्रोल कर पाना नामुमकिन है। खैर एक सीट कांग्रेस जीत पाई। बाकी सीटों पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, ताम्रध्वज साहू सहित कई बड़े कांग्रेसी नेताओं को मुंह खानी पड़ी।
- इसके बाद फिर एक बार कांग्रेस में शिगूफा उठा कि हार की समीक्षा होगी। लेकिन ये क्या कार्यकर्ताओं से अपनी गलती का अहसास कराने के बजाए खुद के कार्यकर्ताओं को सत्ताभोगी बता दिया गया, इसे कहने वाला व्यक्ति जब प्रदेश अध्यक्ष हो तो चौंकाने वाला ही है। क्याेंकि भारतीय संस्कृति और परिवार की सभ्यता है कि घर का मुखिया अपने परिवार के सदस्यों की मनोदशा और उनके गिले शिकवे को जानता है। जब भी कभी फुर्सत में होता है तो सबको आपसे के गिले शिकवे को सुनकर उन्हें सुलझा कर एक साथ होकर आगे बढ़ने का साहस देता है। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज के इस बयान को लेकर भाजपा ने मुद्दा बना लिया है।
वैसे अब भाजपा ही नहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं और जनता में भी चर्चा है कि कार्यकर्ताओं को सत्ता के करीब करने के बजाए पार्टी में सिर्फ करीबी लोगों को शामिल कर सत्ता का विकेंद्रीयकरण कर दिया गया था। जिसकी वजह से गंभीर आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार हुए। जिसे मुद्दा बनाकर भाजपा ने चुनाव लड़ा अौर मोदी की गारंटी पर जनता को विश्वास जीता और एक आदिवासी समाज के लोकप्रिय बेटे विष्णुदेव साय की सरकार बनाई। आज वैसे भाजपा अपने दो डिप्टी सीएम अरुण साव और विजय शर्मा के साथ-साथ मंत्री-विधायक और कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों के फीड बैक पर तेज गति से योजनाओं को मूर्तरूप दे रही है।
- सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार भरोसे और मोदी जी के गारंटी की डबल इंजन की सरकार है। कम समय में ही मोदी के गारंटी के अधिकांश वादे विष्णुदेव साय की सरकार ने पूरे कर लिए हैं। कोशिश होनी चाहिए हर सरकार सुविधा में पूर्ववर्ती सरकार में पनपी सुविधा शुल्क पर अंकुश लगाने का प्रयास कैसे हो सकती है। क्या-क्या एक ही विभाग में वर्षों से जमे बाबूओं के सिंडिकेट को खत्म किया जाय यह बड़ी चुनौती होगी। इस सच्चाई से नाकारा नहीं जा सकता है। इसमें सभी की ईमानदारी पर प्रश्न चिह्न है लेकिन कुछ लोगों की वजह से जनता अपने हक की सुविधाओं के लिए कार्यालय का चक्कर काटती है। नजीर के तौर पर अभी हाल में एक एसडीएम और उसके बाबू को घूस लेते इंटी करप्शन की टीम ने पकड़ा। वैसे मोदी की गारंटी में भ्रष्टाचार मुक्त करना भी शामिल है। जिसमें विष्णुदेव साय सरकार आगे दिख रही है।
भाजपा ने बनाया मुद्दा
भाजपा प्रदेश महामंत्री संजय श्रीवास्तव ने कहा कि बैज अपने कार्यकर्ताओं को सत्ता-भोगी बताकर काग्रेस छोड़ने की नसीहत दे रहे हैं और इस खुशफहमी में हैं कि संघर्ष के साथी उनके साथ हैं। कांग्रेस के जितने बड़े नेता, जो खुद भी हार गए हैं और जिनकी वजह से कांग्रेस हारी, अब वह रोज कार्यकर्ताओं को कोस रहे हैं, उनको धमकी दे रहे हैं! पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, जिनके कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हारी, लोकसभा चुनाव में 10 सीटें हारी, जिनके खिलाफ कार्यकर्ता लगातार चिठ्ठियाँ लिख रहे हैं, हार की जिम्मेदारी लेने के बजाय कार्यकर्ताओं को ‘स्लीपर सेल’ बता रहे हैं और उन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करवा रहे हैं। श्रीवास्तव ने कहा कि दीपक बैज, जो खुद स्वयं विधानसभा का चुनाव हार गए, उसके बाद उनके नेतृत्व में प्रदेश अध्यक्ष रहते लोकसभा में कांग्रेस की करारी हार हुई है, अपनी खुद की लोकसभा भी वे बचा नहीं पाए और उसके बाद अब कार्यकर्ताओं को धमकी दे रहे हैं, सत्ता भोगी और न जाने क्या-क्या कह रहे हैं!
श्रीवास्तव ने कहा कि जिनकी खुद की वजह से कांग्रेस को विधानसभा और लोकसभा के दो-दो चुनावों में करारी शिकस्त झेलनी पड़ी, उनको हार स्वीकार करके अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए था, लेकिन वे यह न करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को गाली दे रहे हैं। अनर्गल प्रलाप और कार्यकर्ताओं का सरेआम अपमान ही कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति और नियति बनती जा रही है।
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