कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को नजरअंदाज कर रहा घरेलू शेयर बाजार
By : hashtagu, Last Updated : September 13, 2023 | 4:28 pm
- उन्होंने बताया कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें तेल निर्यातकों पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और भारत जैसे तेल आयातक देशों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं। नतीजतन, इससे भारतीय रुपये का अवमूल्यन होता है और आयातित मुद्रास्फीति बढ़ती है। साथ ही कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें उन कंपनियों के लाभ प्रतिशत पर असर डालती हैं जो तेल को कच्चे माल के रूप में उपयोग करती हैं। इससे भारतीय शेयर बाजार पर नकारात्मक असर होगा। उन्होंने कहा, लेकिन अब भारत में बाजार कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों को नजरअंदाज कर रहा है।
इसका कारण यह है कि अच्छी जीडीपी वृद्धि, अच्छी कॉर्पोरेट आय और बाजार में निरंतर फंड प्रवाह का सकारात्मक प्रभाव बढ़ते कच्चे तेल के नकारात्मक प्रभाव को बेअसर कर रहा है। उन्होंने कहा, अगर ब्रेंट क्रूड 100 डॉलर तक बढ़ जाता है तो स्थिति बदल सकती है। केयरएज रेटिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा कि कच्चे तेल की कीमतों में हालिया उछाल मुख्य रूप से रूस और सऊदी अरब जैसे प्रमुख तेल उत्पादक देशों की आपूर्ति में कटौती की घोषणाओं के कारण है।
फिर भी, सुस्त वैश्विक उपभोग मांग से 2024 से शुरू होने वाले इस आपूर्ति-मांग अंतर का प्रतिकार होने की उम्मीद है। खुदरा कीमतें बढ़ने की संभावना नहीं है क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) पर खुदरा पेट्रोल/डीजल की कीमतें नहीं बढ़ाने का दबाव होगा। ऐसे में महंगाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
राजकोषीय संतुलन पर प्रभाव भी न्यूनतम होने की उम्मीद है क्योंकि उच्च ईंधन कीमतों का अधिकांश बोझ तेल विपणण कंपनियां उठाएंगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि शेष वित्तीय वर्ष के लिए भारतीय कच्चे तेल के बास्केट का औसत 90 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल रहता है, तो पूरे साल का चालू खाता घाटा (सीएडी) 20 आधार अंक (बीपीएस) यानी 0.20 प्रतिशत बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 1.8 प्रतिशत हो जाएगा।