वरूण के टिकट पर संशय, क्या पीलीभीत में टूटेगा उनके परिवार का तीन दशक पुराना वर्चस्व ?

अमेठी और रायबरेली की तरह पीलीभीत को भी दूसरे गांधी परिवार का गढ़ कहा जाता है। इस सीट पर पिछले तीस वर्षों से कभी मेनका तो कभी वरुण

  • Written By:
  • Updated On - March 19, 2024 / 07:35 PM IST

पीलीभीत, 19 मार्च (आईएएनएस)। अमेठी और रायबरेली की तरह पीलीभीत को भी दूसरे गांधी परिवार का गढ़ कहा जाता है। इस सीट पर पिछले तीस वर्षों से कभी मेनका तो कभी वरुण गांधी सांसद (Varun Gandhi MP) रहे हैं। हालांकि इस चुनाव में क्या होगा, इसको लेकर काफी उहापोह की स्थिति है। अभी इस सीट पर न तो सत्ता पक्ष न ही विपक्ष ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। अब देखना है कि इस लोकसभा चुनाव में इस विरासत का फैसला क्या होगा।

राजनीतिक जानकर बताते हैं कि पीलीभीत लोकसभा सीट (Pilibhit Lok Sabha seat) से वरुण गांधी फिलहाल सांसद हैं। इस सीट की पहचान भी मेनका गांधी और वरुण गांधी के नाम से ही होती है। वरुण गांधी आए दिन जिले में गांवों का भ्रमण कर जनसंवाद करते रहते हैं। इधर करीब दो वर्ष से वह सरकार की विभिन्न नीतियों और महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी आवाज उठाते रहे हैं। इसको लेकर राजनीतिक गलियारे में उनके टिकट को लेकर कयास भी लगाए जा रहे हैं।

बीसलपुर के रहने वाले किसान राकेश कहते हैं कि यहां के सांसद हमेशा सुख दुख में खड़े रहते हैं। फसलों के नुकसान की बात हो या कोई अन्य समस्या, लेकिन वो हर पल साथ खड़े रहे। सरकार में राशन भी खूब मिल रहा है। यहां से मां लड़े या बेटा, वो हर कीमत पर जीतेंगे।

बिलसंडा के रहने वाले नारायण पाण्डेय का मनाना है कि चुनाव में काम की परीक्षा होती है। इसमें स्थानीय सांसद पास हो गए हैं, लेकिन उन्होंने पार्टी लेवल पर कई मुद्दों पर सवाल उठाए, जिनसे विपक्षी दलों को बल मिला है। लेकिन यह सब राजनीतिक बातें हैं, इनसे हमें क्या मतलब है। चाहे मां को मिले या बेटे को, जीत ही जायेंगे। इ

सी तहसील के पकड़िया गांव के रहने वाले रामदीन कहते हैं कि राशन से सिर्फ काम नहीं चलेगा, बच्चों के रोजगार की समस्या बड़ी है। इस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया है। इस बार आशा है कि इस सेक्टर में सरकार ध्यान देगी जिससे क्षेत्र के नौजवानों को काम मिल सकेगा।

बड़ा गांव की रहने वाली रामकली कहती हैं कि जिले के आस पास के इलाके में जंगली जानवरों से बच्चों को हमेशा खतरा बना रहता है। इसका निराकरण होना चाहिए। यहां पर जलभराव की समस्या से निजात दिलाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि उत्तर प्रदेश की तमाम सीटें, जिन्हें कांग्रेस ने आखिरी बार 1984 में जीती थी, उनमें से एक है पीलीभीत। यह सीट बीते तीन दशकों से मां और बेटे के पास रही है। यहां के सांसद बीते दो सालों से कई अहम मुद्दों पर सरकार को घेरते आ रहे हैं। लेकिन वरुण गांधी क्षेत्र में लगातर एक्टिव रहे हैं। उन्होंने यहां पर फसल नुकसान पर किसानों को मुआवजा भी दिलवाया था। जिसको लेकर उनकी सरहाना भी खूब हुई।

उन्होंने कहा कि अगर राजनीतिक दलों के आंकड़ों की मानें तो यहां 25 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं। करीब 17 लाख से ज्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र में अनुसूचित जाति की आबादी भी करीब 17 प्रतिशत है। पीलीभीत में होने वाले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम और दलित वोटर ही उम्मीदवारों का खेल बनाते और बिगाड़ते हैं। इसके अलावा राजपूत और किसानों की संख्या ठीक ठाक है। अब टिकट किसे मिलता है, यह देखना है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी पीलीभीत सीट से छह बार सांसद रह चुकी हैं। मेनका गांधी ने 1989 में पहली बार जनता दल के टिकट पर पीलीभीत लोकसभा सीट जीती। उसके बाद 1996 से 2014 के बीच पांच बार इसी सीट से सांसद चुनी गईं। उन्होंने 2009 में बेटे वरुण गांधी के लिए सीट खाली कर दी और सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा, लेकिन 2014 में वो वापस पीलीभीत लोकसभा पर आईं और चुनाव लड़कर जीत हासिल की। वो छठी बार सांसद बनीं। 2019 में एक बार फिर से मेनका ने वरुण गांधी के साथ सीटों की अदला-बदली की। वरुण गांधी पीलीभीत से और मेनका सुल्तानपुर से संसद पहुंचे।

यह भी पढ़ें : झामुमो को झटका देकर भाजपा में आईं सीता सोरेन का सब्र ऐसे ही नहीं टूटा