बात सौ टके की : भाई साहब, ये ‘नाली’ की गुस्ताखी! …घर में ‘घुसपैठिया’…?

क्या बताएं भाई साहब, हर बार मानसूनी बारिश (Monsoon rain) में नालियां उफान में आ जाती हैं। बस थोड़ी बारिश और शहर में चारों ओर पानी ही पानी।

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  • Updated On - August 6, 2024 / 06:42 PM IST

रायपुर। क्या बताएं भाई साहब, हर बार मानसूनी बारिश (Monsoon rain) में नालियां उफान में आ जाती हैं। बस थोड़ी बारिश और शहर में चारों ओर पानी ही पानी। कहीं नाली का पानी तो कहीं ड्रेनेज का पानी। ये पानी-पानी का प्रेम इतना की नालियों (Drains)के सहारे घरों में घुस जाती है। वैसे इनका सम्मान भी करना ही पड़ता है। घर में घुसे नाली के गंदे पानी के ‘घुसपैठिए’ को भगाने के लिए लाठी नहीं, सप्रेम पूर्वक दोनों हाथों से उठाए और मन में जो आए इसके लिए जिम्मेदारों को मौन भाव कोसते हुए टब और बाल्टी से निकालें।

इससे आपकी सेहत भी बनी रहेगी और बारिश के बहाने कुछ काम शारीरिक व्यायाम भी हो जाएगा। इसी में भलाई है, क्याेंकि जब तक सिस्टम को दुश्वारियां बताएंगे, तब तक सब कुछ बेड़ागर्क हो जाएगा। अगर आपको लगे कि भारी तादात में पानी के घुसपैठिए आने वाले हैं तो दूसरी मंजिल पर चले जाए या तो कहीं अन्यंत्र स्थान पर। कुछ इसी अंदाज में एक कालोनी के एक मानिंद वासी बयां कर रहे थे। कहते हैं कि नालियों के ओवरफ्लो होने पर न रो सकते हैं और न ही हंस सकते हैं।

  • इनकी इस व्यथा को सुनते ही दूसरे रहवासी ने दुखड़ा सुनाते हुए कहते हैं कि भाई साहब प्रापर्टी टैक्स, पानी टैक्स और न जाने कितने टैक्स निगम को सब देते हैं। लेकिन मूलभूत सुविधाओं को बनाने में हमारे टैक्स का पैसा है। अब तो लगता है कि टैक्स की राशि में समायोजित विकास के नाम जारी हाेने काम के बहाने सिर्फ कमीशनखारी होती है। ये क्या नालियों की सफाई के नाम पर लाखों के टेंडर सफेदपोश ठेकेदारों को मिलता है। वे पूरे साल सिर्फ कागजों पर नाली सफाई की ऐसी कहानी लिखते हैं कि सूखे के समय शहर को स्मार्ट ही नहीं जापान देश के टोक्यो जैसी व्यवस्था देने की डींगे हांकने में कोई कसर नहीं छोड़ते। लेकिन महज कुछ घंटों की बारिश में ही शहर की सामान्य नालियों के दम फूल जाते हैं। और शहर की सड़कों पर ताल तलैया जैसा नजारा दिखने लगता है। यानी कंक्रीट के शहर में आपको प्राकृतिक सुंदरता जैसा नजारा लगता है। बस फर्क है कि कूल्लू मनाली जाने में आपको पैसे खर्च करने पड़ेंगे। लेकिन यहां तो सिर्फ दुश्वारियों को झेलना पड़ेगा।

इस बात को सुनकर तीसरे रहवासी तो फट पड़ा। कहा, भाई साहब, सिर्फ चुनावी मौसम में पार्षद और दावेदार घर-घर आ जाते हैं। कहते हैं कि मेरा वादा है कि कभी नाली और ड्रेनेज ओवरफ्लो नहीं हो पाएगा। लेकिन चुनाव बीतने के बाद कहां वे दिखाई देंगे, हां, ये है कि अखबार में फोटो कभी कभार देने के लिए निकल पड़ेंगे, एक मिनट में थोड़ा एक्शन मारकर फोटो खींचाने के बाद ऐसे गायब होंगे, जैसे ईद के चांद। क्योंकि नेता जी चुनाव के घर-घर लोगों के पैर छू रहे थे। लेकिन अब उनके पैर जनता को छूने की नौबत आ जाती है। यानी पूरे पांच साल खेल ठेका और कमीशन के खेल में बीत जाता है।

  • कुछ ही वार्ड होते हैं जो बचे रहते हैं लेकिन बारिश के समय वह भी उसकी चपेट में आ ही जाते हैं। इसकी तस्वीर क्या जरूरत है, जनाब बारिश में शहर की एक घूम लीजिए। लेकिन इसकी नौबत भी नहीं आएगी, क्योंकि आपके कालोनी में पानी-पानी का नजारा ही काफी है। जिम्मेदार अधिकारी तो जानते हैं कि यह सब चकल्लस सिर्फ बारिश के दाैरान ही झेलना है। बाकी समय तो सिर्फ रंग-रोगन से ही चमका देंगे। लेकिन बारिश आते सब धुल जाता है। इसके लिए कौन जिम्मेदार है यह तय नहीं हो पाता है। बरहाल, ये पब्लिक है सब जानती है।

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