रायपुर। ये तो सच चाहे कोई भी चुनाव हो, पार्टियां वक्त की नजाकत को पकड़ने की कोशिश करती हैं। यानी चुनावी माहौल बनाने में सहायक वो बिंदु या तत्व है। इनकी पहचान होने के बाद ही पार्टियां अपने-अपने संगठन के दिशा-निर्देश पर रणनीतियां तैयार करती हैं। लेकिन जो पार्टी वर्तमान माहौल या जनता की सही नब्ज पकड़ने में नाकामयाब होती है तो उनके हाथ से सत्ता निकल जाती हैं। क्योंकि एक बात तो तय है कि वक्त के माहौल के मुताबिक संगठन में सामांजस्य बैठाना भी बड़ी चुनौती होती है। अगर इसे ईमानदारी से लागू करने में जो पार्टी कामयाब होती है, उनके सिर जीत का सेहरा बंधता है। इसमें चाहे सत्ताधारी हो या विपक्ष।
अगर सत्ताधारी पार्टी यानी विधानसभा के अलावा लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में उतरती है, तो उसके सामने चुनौती होती है कि अपने सरकार के कामकाज का जनता के बीच ले जाना। लेकिन विपक्ष द्वारा मुद्दों की आवाज की गूंज में सत्ता पक्ष की पार्टी के कामकाज गुम हो जाता है। फिर लहर सत्ता विरोधी भी हो सकती है या विपक्ष विरोधी। ये दोनों चीजे होती है। जिसे नाकारा नहीं जा सकता है। अगर इसे छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीते विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो कुछ ऐसा ही हुआ।
गौरतलब है कि कांग्रेस जहां विधानसभा चुनाव में 75 प्लस सीटों के दावों की उड़ान इतनी ऊंची थी, कि संगठन में सामांजस्य और गुटबाजी को भांप नहीं पाई, जो चुनाव में बीजेपी के पक्ष में लहर बनने का मौका दे दिया है। ऐसा इसलिए भी हुआ कि कांग्रेस की धान के समर्थन मूल्य सहित नरवा गुरवा बाड़ी के अलावा योजनाओं के चलते विश्वास था कि ग्रामीण अंचल की जनता कांग्रेस के साथ है। लेकिन इधर बीजेपी की आक्रामक चुनावी रणनीति के आगे उसके दोबारा सत्ता पाने के सपने चकनाचूर हो गए। इसके कारण थे, भ्रष्टाचार के बड़े आरोप। इनमें कुछ जांच भी ईडी द्वारा चल रही थी। वहीं गरीबों को पीएम आवास नहीं मिल पाना भी एक कारण था, क्योंकि विपक्ष के इस मुद्दे पर कांग्रेस बैकफुट पर हो गई। क्योंकि कांग्रेस के ही कद्दावार मंत्री टीएस सिंहदेव द्वारा पंचायत विभाग से इस्तीफा देते हुए 18 गरीबों के आवास नहीं मिल पाने का दर्द सार्वजनिक होना। मिलाजुलाकर कांग्रेस अंदरुनी गुटबाजी को भांप नहीं पाई, नतीजा सत्ता छिनी।
इसका पूरा फायदा बीजेपी ने उठाया। बीजेपी की चुनावी रणनीति के आगे कांग्रेस अपने टारगेट पाना तो दूर सत्ता से ही दूर हो गई। चुनावी हार के बाद तो कुछ दिन के लिए कांग्रेस के अंदर पूर्व विधायकों ने बगावती तेवर भी दिखाए। लेकिन अब लोकसभा चुनाव के वक्त को देखते हुए जानकारों को लगता नहीं है कि कांग्रेस इतनी जल्दी उबर पाएगी। बहरहाल, इन सबके बीच कांग्रेस ने अब छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी की जिम्मेदारी सचिन पायलट को सौंपा है। एग्रेसिव नेता की छवि वाले पायलट संगठन की सर्जरी को करने से बिना हिचकिचाए परिवर्तन कर सकते हैं। उन्होंने पूर्व में ही कह दिया है कि अब कांग्रेस में मेरा आदमी-तेरा आदमी नहीं चलेगा। यानी साफ संदेश है कि कांग्रेस को फिर से चार्ज करना है। कांग्रेस की कोशिश है कि 4 से 5 सीट हासिल करने की। लेकिन यह भी लक्ष्य अभी कांग्रेस के लिए दुरूह लग रहा है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 2 सीटें ही मिल पाई थी। जबकि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली थी लेकिन मोदी की लहर में बीजेपी ने विधानसभा चुनावी हार के बावजूद 9 सीटें जीती थीं। वैसे इस तो अगर कांग्रेस 2 सीटें भी कायम रख पाए तो बड़ी सियासी बात होगी।
इधर बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद ही लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते ही हुए ही पूरी सरकार का गठन कर डाला। इसमें बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ ही नहीं मध्यप्रदेश में भी सबको चौंका दिया। जहां छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेता विष्णुदेव साय को सीएम तो मध्यप्रदेश में मोहन यादव की ताजपोशी की। इसके अलावा छत्तीसगढ़ में दो डिप्टी सीएम अरूण साव और विजय शर्मा बने। इसके अलावा युवा और पहली बार विधायक बने नेताओं को मंत्री पद। यानी अगर देखा जाए तो क्षेत्रीय और जातीय संतुलन को बैठाया। युवाओं में लोकप्रिय पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी को मंत्री बनाना भी लोकसभा चुनाव के रणनीति का हिस्सा है। अब बीजेपी लोकसभा में वरिष्ठ नेताओं को संगठन के काम में उतारेगी। लेकिन इस वक्त देखा जाए तो बीजेपी कांग्रेस से कई कदम आगे दिख रही है। जहां कांग्रेस को खुद के डैमेज को कंट्रोल करना है। वहीं बीजेपी को सिर्फ मोदी की गारंटी का प्रचार।
वैसे बीजेपी की सरकार बनते ही मोदी की गारंटी पर विष्णुदेव की सरकार तेजी काम कर रही है। ऐसे में बीजेपी 11 की 11 लोकसभा की सीटें हथिया ले तो कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी। क्योंकि मोदी के गारंटी का जादू छत्तीसगढ़ में अभी कायम है।
प्रदेश में 7 लाख 23 हजार 711 यूथ वोटर्स हैं। इनकी उम्र 18-19 वर्ष के बीच है। इन वोटर्स को साधने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियां यूथ को टारगेट कर प्रत्याशी उतारेंगी। यूथ के साथ ही ग्रामीण मतदाताओं को भी इस बार पार्टियों ने अपने टारगेट पर रखा है। ग्रामीण मतदाता और यूथ ही पार्टियों के लिए जीत के रास्ते खोलते हैं। इन दोनों को साधने के लिए कांग्रेस-बीजेपी के नेता अपनी-अपनी रणनीति तैयार कर रहे हैं।
गांवों चलो अभियान चलाया जाएगा। इस अभियान के तहत प्रदेश 11,664 ग्राम पंचायतों को फोकस में रखकर पूरी योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत बड़े नेता पंचायतों तक पहुंचेंगे और पार्टी की योजनाओं के बारे में लोगों को जानकारी देंगे। इसके साथ ही बीजेपी के नेता रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा कैंपेन का प्रचार-प्रसार भी करेंगे। विधानसभा में हारे हुए बूथ और सीटों पर प्रभारियों को तैनात किया जाएगा और वहां पहले प्रचार-प्रसार शुरू होगा। बड़े नेताओं को अंचल और मंत्रियों को जिले-सीट की जिम्मेदारी दी जाएगी। बीजेपी के नेता जांजगीर-चांपा, कोरबा, महासमुंद और कांकेर के प्रत्याशियों का नाम पहले सार्वजनिक कर सकते हैं।
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