बेंगलुरु, 2 सितंबर (आईएएनएस)। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सोमवार को मुख्यमंत्री सिद्दारमैया (Chief Minister Siddaramaiah) द्वारा राज्यपाल थावर चंद गहलोत के खिलाफ दायर रिट याचिका पर सुनवाई शुरू की। इस याचिका में मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (मूडा) (Muda scam) मामले में अंतरिम राहत की मांग की गई है। मुख्यमंत्री ने याचिका में उनके खिलाफ अभियोजन की अनुमति देने वाले राज्यपाल के आदेश को रद्द करने की भी मांग की है। राज्य के राजनीतिक हलकों में सभी की निगाहें अदालत में चल रही सुनवाई पर टिकी हैं। सीएम सिद्दारमैया ने शाम तक सभी कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं।
उन्होंने अपने गृह नगर मैसूरु जाने और देवी चामुंडेश्वरी की विशेष पूजा के अपने कार्यक्रम भी रद्द कर दिये। मुख्यमंत्री की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और राज्यपाल का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी अभियोजन की अनुमति देने के राज्यपाल के फैसले के पक्ष में अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। राज्यपाल गहलोत ने कोलार में एक दीक्षांत समारोह कार्यक्रम सहित अपने पिछले कार्यक्रम भी रद्द कर दिए हैं।
राज्यपाल से मुख्यमंत्री के खिलाफ शिकायत करने वाले स्नेहमयी कृष्णा और प्रदीप कुमार की ओर क्रमशः वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह तथा प्रभुलिंग नवदगी पेश हुए। याचिकाकर्ता टी.जे. अब्राहम की ओर से रंगनाथ रेड्डी ने अपनी दलीलें पेश कीं। सिंघवी द्वारा दलीलों का खंडन प्रस्तुत किए जाने की उम्मीद है और मेहता द्वारा भी टिप्पणी किए जाने की संभावना है। कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि उच्च न्यायालय द्वारा निर्णय सुरक्षित रखे जाने की संभावना है, क्योंकि आदेश सुनाए जाने से पहले चार दिन तक तर्कों और प्रतिवादों पर विचार करना होगा।
इससे पहले, न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उसे यह तय करना है कि जांच की मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं। हाई कोर्ट ने निचली अदालत को मामले में आगे कार्यवाही करने से रोकने के लिए अपना अंतरिम आदेश बरकरार रखा। पीठ ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 (ए) के तहत, पुलिस को बिना पूर्व अनुमति के जांच नहीं करनी चाहिए।
हालांकि, पुलिस के लिए स्वयं अनुमति प्राप्त करना आवश्यक नहीं है; कोई भी व्यक्ति ऐसी अनुमति प्राप्त करने के लिए उपयुक्त अधिकारियों से संपर्क कर सकता है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की थी कि मूडा मामले में सीएम सिद्दारमैया द्वारा की गयी विशिष्ट अवैधताओं को आदेश में उजागर नहीं किया गया था। मेहता ने तर्क दिया था कि राज्यपाल इस मामले में कैबिनेट और सीएम सिद्दारमैया द्वारा दिए गए हर स्पष्टीकरण का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हैं।
उन्होंने कहा, “राज्यपाल के आदेश में उनकी स्थिति स्पष्ट रूप से बताई गई है और सबूतों के नष्ट होने की संभावना के कारण इस स्तर पर सब कुछ स्पष्ट नहीं किया जा सकता है।” वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने शिकायतकर्ता स्नेहमयी कृष्णा की ओर से दलीलें पेश करते हुए अदालत से तीन आंकड़े, “3.24 लाख रुपये”, “5.98 लाख रुपये” और “55 करोड़ रुपये” नोट करने का अनुरोध किया। जब जमीन का अधिग्रहण किया गया था, तब जमीन की कीमत 3.24 लाख रुपये थी। इसे 5.98 लाख रुपये में बेचा गया और अब जमीन की कीमत 55 करोड़ रुपये बताई जा रही है। उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच की जरूरत है।
वरिष्ठ वकील प्रभुलिंग नवदगी ने दलील दी कि एक तरफ सीएम दावा करते हैं कि कोई अवैधानिकता नहीं है और दूसरी तरफ उनके द्वारा जांच आयोग गठित किया गया है। राज्यपाल ने इसका उल्लेख किया है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17 (ए) के तहत आरोपी राज्यपाल से सवाल नहीं कर सकते। एक अन्य वरिष्ठ वकील रंगनाथ रेड्डी ने दलील दी कि जब सीएम सिद्दारमैया उपमुख्यमंत्री थे, तब डी-नोटिफिकेशन और भूमि रूपांतरण का काम किया गया था और जब 50:50 के अनुपात में वैकल्पिक भूमि आवंटित करने का फैसला किया गया, तब सिद्दारमैया सीएम थे। वकील रेड्डी ने अदालत के संज्ञान में यह भी लाया कि सीएम सिद्दारमैया दावा कर रहे हैं कि राज्यपाल के समक्ष चार याचिकाएं लंबित हैं।
इनमें से दो मामलों में सहमति दी गई है और अन्य दो को स्पष्टीकरण के लिए वापस भेज दिया गया है। इस बीच, सिंघवी ने दलील दी कि सीएम सिद्दारमैया के खिलाफ जांच की अनुमति देते समय राज्यपाल ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं किया। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि राज्यपाल ने इस मामले में कैबिनेट द्वारा दी गई सलाह पर विचार नहीं किया।