खैरागढ़। प्राकृतिक की सुंदर और विहंगम भागौलिकता को समेटे हुए छत्तीसगढ़ की धरा पर दक्षिण पूर्व एशिया के दुर्लभ पक्षी दिखा है। लेसर एडजूटेंट स्ट्रॉक (Lesser Adjutant Stork) पक्षी है। यह दुर्लभ प्रजाति के पक्षी होते हैं, जो प्राकृतिक कचरे को साफ करने का काम करते हैं। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर ज़िले के नवापारा खुर्द गांव के किसान ठाकुर सिंह का आंगन इन दिनों इस दुर्लभ लेसर एडजूटेंट स्ट्रॉक का प्रिय ठिकाना बना हुआ है।
बता दें पक्षी मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के दलदली क्षेत्रों और आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं। ये मछलियों के साथ मरे हुए छोटे जानवरों को खाकर पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं, इसलिए इन्हें प्राकृतिक “कचरा-सफाई पक्षी” भी कहा जाता है. घटती संख्या के कारण इसे IUCN का मतलब असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है, और इसके संरक्षण के लिए प्रयास जारी हैं।
पिछले 15 साल से ये संरक्षित पक्षी ठाकुर सिंह के आंगन में लगे पेड़ों पर अपना घोंसला बना रहे हैं। ठाकुर सिंह और गांव के लोग न केवल इनका ख्याल रखते हैं, बल्कि शिकारियों से भी इनका बचाव करते हैं. सेमर के फल से मिलने वाले हजारों का लाभ भी ठाकुर सिंह खुशी-खुशी इन पक्षियों के लिए छोड़ देते हैं,पर्यावरण के लिए इनका ये प्रेम बहुत ही सराहनीय है।
छत्तीसगढ़ में पहली बार 2018 में ए एम के भरोस और डी. दीवान ने इस दुर्लभ पक्षी के इस गांव में निवास पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें पाया गया कि ठाकुर सिंह के आंगन के बरगद के पेड़ पर चार घोंसले बने थे। अब 2024 में एक नई रिपोर्ट, जो कि एंबिएंट साइंस में प्रतीक ठाकुर, रवि नायडू, डॉ. हिमांशु गुप्ता और ए एम के भरोस द्वारा प्रकाशित हुई, इसमें एक और चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया है. अब ये स्ट्रॉक पक्षी और चमगादड़ (Indian Flying Fox) एक ही पेड़ पर बसेरा कर रहे हैं. पेड़ के ऊपरी हिस्से में स्ट्रॉक ने अपना घोंसला बना रखा है, और नीचे की ओर चमगादड़ों का निवास है. यह दृश्य पक्षी प्रेमियों और वैज्ञानिकों को बेहद रोमांचित कर रहा है।
रिसर्च करने वाले लेखकों का मानना है कि इन दोनों प्रजातियों का एक ही पेड़ पर रहवास दोनों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रभाव डाल सकता है. इस स्थिति के गहरे वैज्ञानिक अध्ययन की आवश्यकता है ताकि इस असामान्य मेलजोल के कारण और प्रभाव समझे जा सकें।
इस क्षेत्र में लेसर एडजूटेंट स्ट्रॉक के घोंसलों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है. जहां 2017 में इनकी संख्या 5 थी, वहीं 2022 से 2024 तक यह घटकर दो पर आ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि ये पक्षी हर कुछ वर्षों में अपने घोंसले की जगह बदल लेते हैं, इसलिए आसपास के क्षेत्रों में सर्वेक्षण की आवश्यकता है ताकि इन संरक्षित पक्षियों को ट्रैक कर उनकी देखभाल की जा सके।
छत्तीसगढ़ का यह छोटा गाँव आज एक बड़ा संदेश दे रहा है. प्राकृतिक संसाधनों को त्याग कर इन अनमोल पक्षियों को सुरक्षित ठिकाना देना, इंसान और प्रकृति के बीच की मजबूत साझेदारी का प्रतीक बन गया है. इस अध्ययन में छत्तीसगढ़ में एक अनोखा दृश्य देखा गया, दुर्लभ लेसर एडजूटेंट स्टॉर्क और चमगादड़(Indian Flying Fox) एक ही पेड़ पर रह रहे हैं. पिछले 15 सालों से ठाकुर सिंह के आँगन में ही ये पक्षी अपना घोंसला बना रहे हैं, और हाल ही में इस आँगन में 250 से ज्यादा चमगादड़ भी रहने लगे हैं. यह रहवास खास है, क्योंकि ये दोनों प्रजातियां आमतौर पर अलग-अलग रहती हैं. चमगादड़ की नियमित उड़ान व्यवहार इन पक्षियों के घोंसले की सुरक्षा में मददगार हो सकता है. शोधकर्ता मानते हैं कि इनके साथ रहने के फायदे और नुकसान को समझने के लिए आगे और अध्ययन करना जरूरी है।
यह भी पढ़ें : CM विष्णु देव साय ने सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती के अवसर पर उन्हें नमन किया