PM मोदी के मिशन पर थरूर और ओवैसी! जानें क्यों चुना गया दोनों को और क्या है प्लान ‘पाक बेनकाब’

By : ira saxena, Last Updated : May 17, 2025 | 1:38 pm

नई दिल्ली: ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान (Pakistan) में छिपे आतंकवादी ठिकानों पर कड़ा प्रहार करने के बाद अब भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एक बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल को विभिन्न देशों में भेजा जा रहा है, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का पर्दाफाश करेगा। इस मिशन की खास बात यह है कि इसमें सिर्फ बीजेपी के सांसद ही नहीं, बल्कि कट्टर विपक्षी माने जाने वाले शशि थरूर और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता भी शामिल हैं।

पीएम मोदी द्वारा शशि थरूर को इस प्रतिनिधिमंडल में शामिल करना कई मायनों में अहम और चौंकाने वाला कदम है। थरूर संयुक्त राष्ट्र में दो दशकों से अधिक समय तक काम कर चुके हैं और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के जानकार माने जाते हैं। 2006 में वह संयुक्त राष्ट्र महासचिव पद के दावेदार भी रहे थे और अंतिम दौर तक पहुंचे थे। भारत की विदेश नीति पर उनकी पकड़ मजबूत मानी जाती है। थरूर पहले भी प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी को ‘रणनीतिक कूटनीति’ बताकर समर्थन कर चुके हैं, खासकर अमेरिका और रूस-यूक्रेन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर।

शशि थरूर ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत से ही इसके समर्थन में मीडिया के माध्यम से मुखर रहे हैं। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भारत का पक्ष मजबूती से रखा और आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की पोल खोलने में आगे रहे। ऐसे में मोदी सरकार ने उन्हें प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर इस मिशन की गंभीरता और व्यापकता का संकेत दिया है।

असदुद्दीन ओवैसी का चयन भी उतना ही रणनीतिक है। ओवैसी, जो आमतौर पर सरकार के आलोचक माने जाते हैं, उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को जिस अंदाज में लताड़ा, वह कई लोगों के लिए अप्रत्याशित था। उन्होंने खुले मंचों पर पाकिस्तान को खरी-खरी सुनाई और भारतीय सेना की कार्रवाई का समर्थन किया। यहां तक कि टीवी डिबेट्स में पाकिस्तानी प्रवक्ताओं से भी दो-दो हाथ किए।

ओवैसी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि वह एक मुस्लिम चेहरा हैं, और मुस्लिम देशों के बीच उनकी बात को वजन मिलता है। माना जा रहा है कि उन्हें खासतौर पर मुस्लिम बहुल देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए शामिल किया गया है, ताकि पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे झूठ को उन्हीं की भाषा में, तार्किक तरीके से काटा जा सके। ओवैसी एक प्रशिक्षित वकील भी हैं, जिन्होंने लंदन से कानून की पढ़ाई की है और अक्सर अपनी बात तर्कों के साथ रखते हैं, जिससे उन्हें चुनौती देना मुश्किल हो जाता है।

इस बहुदलीय प्रतिनिधिमंडल की संरचना ने 1994 की याद दिला दी है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने के लिए भेजा था। उस समय भी पाकिस्तान हैरान रह गया था और भारत की एकजुटता ने उसे वैश्विक मंच पर घेर लिया था।

अब, एक बार फिर भारत उसी राह पर है — राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देने की राह। पीएम मोदी का यह कदम स्पष्ट संदेश देता है कि पाकिस्तान के खिलाफ यह लड़ाई केवल बीजेपी या सरकार की नहीं, बल्कि पूरे देश की है। ‘पाक बेनकाब’ मिशन के तहत दुनिया को यह दिखाना है कि आतंकवाद को प्रश्रय देने वाला असली चेहरा कौन है — और यह काम भारत के हर राजनीतिक वर्ग की सामूहिक आवाज से ही संभव है।