Bastar Story : दुनिया के सबसे बड़े ‘गुरिल्ला युद्ध’ के महारथी DRG के जवान, …तोड़ रहे नक्सलियों की कमर

रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि डीआरजी गुरिल्ला युद्ध में दुनिया का सबसे खतरनाक बल है। स्थानीय बोली-भाषा के जानकार होने के साथ ही क्षेत्र के

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  • Updated On - January 24, 2025 / 12:02 AM IST

  • स्थानीय बोली-भाषा के साथ ही क्षेत्र के भूगोल की अच्छी समझ
    बल ने नक्सलियों पर पूरी तरह नकेल कस दी

जगदलपुर। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि डीआरजी गुरिल्ला युद्ध (Drg guerrilla warfare) में दुनिया का सबसे खतरनाक बल है। स्थानीय बोली-भाषा के जानकार होने के साथ ही क्षेत्र के भूगोल की अच्छी समझ होने से इस बल ने नक्सलियों (Naxalites) पर पूरी तरह नकेल कस दी है। बल में सम्मिलित पूर्व नक्सली और महिला कमांडो इसकी सबसे बड़ी ताकत हैं। बल की अगुवाई महिला कमांडो करती हैं। समर्पण कर चुके नक्सलियों को विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बनाकर नक्सलियों के विरुद्ध उतारने की जो रणनीति बनाई गई थी। वहीं, 2008 में आधार बनी जिला रिजर्व गार्ड (डीआरजी) बल की। महिलाओं को इस बल में शामिल करने से अब नक्सलियों को जवानों पर शोषण का झूठा आरोप लगाने का भी मौका नहीं मिलता। डीआरजी ने एक दशक में पांच हजार से अधिक सफल अभियान और 800 से अधिक नक्सलियों को ढेर किया है।

एक साल में 273 नक्सली किए ढेर

पिछले एक वर्ष में बस्तर में 273 नक्सलियों को मार गिराया गया है, जिसमें सबसे बड़ा योगदान डीआरजी बल का रहा है। इस समय बस्तर में 50 हजार से अधिक सुरक्षा बल तैनात हैं, जिसमें लगभग 4,000 डीआरजी के जवान हैं। इसके बाद भी बस्तर में नक्सल अभियान की अगुवाई डीआरजी करता है।
नक्सल संगठन छोड़कर 2014 में डीआरजी में भर्ती होकर इंस्पेक्टर रैंक तक पहुंचे एक अधिकारी कहते हैं कि नक्सल संगठन में रहने के कारण हमें नक्सलियों की रणनीति के बारे में जानकारी रहती है। इसका हमें रणनीतिक लाभ मिलता है। स्थानीय गोंडी-हल्बी बोली बोलते हैं, जिससे खुफिया सूचना भी हमें ग्रामीणों से मिल जाती है।

कई राज्यों में प्रशिक्षण, 12 घंटे रोजाना एक्सरसाइज

नक्सल मोर्चे पर डीआरजी जवानों की सफलता तो दिखाई देती है, लेकिन इसके पीछे कड़ा अभ्यास भी है। डीआरजी ने असम, तेलंगाना से लेकर कई राज्यों में गुरिल्ला युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लिया है। यहां तक कि श्रीलंका से भी विशेषज्ञ बुलाकर जवानों को प्रशिक्षण दिया गया है।
दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक गौरव राय कहते हैं कि डीआरजी के जवान या तो अभियान पर होते हैं, या फिर मैदान में। प्रतिदिन 12 घंटे कड़ा अभ्यास सत्र होता है, ताकि लंबे अभियान में वे थके नहीं। घने जंगल के भीतर तीन से चार दिन तक बिना खाए-पिए और सोए 70 किलो से अधिक वजन लेकर यह बल 100 किमी तक पैदल अभियान करने में सक्षम है।

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