छत्तीसगढ़। (high Court) उच्च न्यायालय के आदेश से आरक्षण (Reservation) के अनुपात पर घमासान जारी है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 3 जनवरी को जन अधिकार महारैली में कहा था कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद छत्तीसगढ़ में आरक्षण शून्य हो गया है। यानी किसी वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सकता। ठीक उसी दिन छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक प्रशासनिक आदेश में शुद्धिपत्र जारी किया। इसके जरिए हाईकोर्ट में ११४ पदों पर भर्ती के लिए अनुसूचित जाति को १६ प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को २० प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग को १४ प्रतिशत आरक्षण का फॉर्मूला लागू कर दिया।
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने जुलाई २०२१ में एक विज्ञापन प्रकाशित किया था। इसके जरिए कार ड्राइवर, लिफ्ट मैन और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों की भर्ती की जानी थी। यह विज्ञापन निकालते समय हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि इसमें आरक्षित पदों पर नियुक्ति आरक्षण मामले पर विचाराधीन याचिका ५९१/२०१२ के फैसले के अधीन होगी। उच्च न्यायालय ने १९ सितम्बर को इस मामले में फैसला सुनाते हुए ५८ प्रतिशत आरक्षण को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया।
अब उच्च न्यायालय कह रहा है, अब उस आदेश के परिपालन में २०१२ में आरक्षण के प्रावधानों में संशोधन के पूर्व लागू ५० प्रतिशत की सीमा वाले आरक्षण प्रावधानों से यह अनुपात लागू होगा। इस फॉर्मुले से अनुसूचित जाति को १६ प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को २० प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग को १४ प्रतिशत आरक्षण मिलना है। चिकित्सा शिक्षा विभाग ने इसी फॉर्मूले के आधार पर एमबीएस और एमडी-एमएस की कक्षाओं में प्रवेश दिया है। हाईकोर्ट के इस प्रशासनिक आदेश ने राज्य सरकार की भर्तियों और स्कूल-कॉलेज में दाखिले में सरकार के रुख को उलझा दिया है।
१९ सितम्बर को उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सरकार का स्टैंड बदलता रहा है। महाधिवक्ता ने आदेश के बाद की स्थिति को स्पष्ट नहीं किया। विशेषज्ञों का कहना था, इस आदेश के प्रभाव से प्रदेश में किसी वर्ग के लिए कोई आरक्षण नहीं बचा है। सामान्य प्रशासन विभाग ने सितम्बर के आखिर में एक जवाब में बताया कि प्रदेश में कोई आरक्षण रोस्टर प्रभावी नहीं है।
दो दिसम्बर को आरक्षण विधेयक पेश करते समय विधानसभा में कहा गया, हाईकोर्ट के आदेश से २०१२ से पहले के आरक्षण की स्थिति प्रभावी हो गई है। तीन जनवरी को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहली बार सार्वजनिक तौर पर कहा कि प्रदेश में आरक्षण शून्यता की स्थिति है।
राज्य सरकार ने आरक्षण विवाद के विधायी समाधान के लिए छत्तीसगढ़ लोक सेवाओं में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने का फैसला किया। शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश के लिए भी आरक्षण अधिनियम को भी संशोधित किया गया। इसमें अनुसूचित जाति को १३ प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को ३२ प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को २७ प्रतिशतऔर सामान्य वर्ग के गरीबों को ४ प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया। तर्क था कि अनुसूचित जाति-जनजाति को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दिया गया है।
आरक्षण मंडल आयोग की सिफारिशों पर आधारित है। आरक्षण संसद के कानून के तहत है। इस व्यवस्था से आरक्षण की सीमा ७६ प्रतिशत तक पहुंच गई। विधेयक राज्यपाल अनुसूईया उइके तक पहुंचा तो उन्होंने सलाह लेने के नाम पर इसे रोक लिया। बाद में सरकार से सवाल किया। एक महीने बाद भी उन विधेयकों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर नहीं हुए हैं। ऐसे में उनको लागू नहीं किया जा सकेगा।