रायपुर। उत्तर विधानसभा के विधायक एवं जगन्नाथ मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष पुरन्दर मिश्रा (Purandar Mishra) ने आज एक पत्रकार वार्ता में जानकारी देते हुए बताया कि रक्षाबंधन का त्यौहार भगवान जगन्नाथ (Rakshabandhan festival Lord Jagannath) से किस तरह से जुड़ा हुआ है। उन्होने ने कहा कि पूरे ब्रम्हाण्ड में भगवान जगन्नाथ जी का एक मात्र मंदिर है जहां भाई-बहन के मूर्ति की पूजा की जाती है। इसी उपलक्ष्य में इस वर्ष रक्षाबंधन के अवसर पर परंपरागत रूप से रक्षाबंधन के त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाने जगन्नाथ मंदिर में कल 18 अगस्त को विशेष आयोजन रखा गया है। जहां क्षेत्र के समस्त बहनों द्वारा 2100 राखियां भगवान जगन्नाथ को बांधी जायेंगी।
पुरन्दर मिश्रा ने रक्षाबंधन के त्यौहार का भगवान जगन्नाथ से संबंध को विस्तारपूर्वक उल्लेख करते हुए बताया कि रक्षाबंधन न सिर्फ एक त्यौहार है बल्कि भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक भी है। रक्षाबंधन के अवसर पर ही आज हम आपको भगवान जगन्नाथ से जुड़ी रक्षाबंधन की एक ऐसी ही परंपरा के बारे में बता रहे हैं। हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हीं चारों धामों में से एक है उड़ीसा के समुद्र तट पर स्थित पुरी का जगन्नाथ मंदिर। यह मंदिर आश्चर्यजनक रहस्यों से भरा हुआ है। यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार कृष्ण को समर्पित है। सावन माह की पूर्णिमा के दिन समग्र भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है, परंतु उड़ीसा में पूर्णिमा को “गम्हा पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।
उन्होने कहा कि इस दिन जगन्नाथ जी के बड़े भाई बलभद्र जी का जन्म दिवस मनाया जाता है। बलभद्र जी ने श्रवण नक्षत्र की मकर लग्न पर गम्हा पूर्णिमा को जन्म लिया था। यहां माना जाता है कि भगवान बलभद्र कृषक समुदाय के देवता हैं। इसलिए किसान परिवार के लोग परंपरा के रूप इनके हथियार, लकड़ी के हल की भी पूजा करते हैं। गम्हा शब्द संभव गौ और माता नामक दो शब्दों से मिलकर बना है। इस दिन देवी सुभद्रा अपने भाईयों, भगवान बलभद्र और भगवान जगन्नाथ की कलाई में राखी बांधती हैं। पतारा बिसोई सेवकों के सदस्य इस अवसर पर चार राखियां बनाते हैं। भगवान जगन्नाथ की राखी को लाल और पीले रंग से रंगा जाता है, वहीं भगवान बलभद्र की राखी नीले और बैंगनी रंग की होती है। गम्हा पूर्णिमा के दिन, मंदिर में भगवान बलभद्र का जन्म समारोह मनाया जाता है।
आज इस अवसर पर देवताओं के पास ‘भोग मंडप’ की समाप्ति के बाद श्री सुदर्शन एक पालकी पर चढ़कर मार्कंडा तालाब तक जाते हैं। मार्कंडा तालाब में सेवक भगवान बलभद्र की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं। सेवक मंत्रों का जाप करते हैं और मूर्ति में प्राण फूंकते हैं। तत्पश्चात, तालाब में विसर्जित करने से पहले मूर्ति को भोग चढ़ाया जाता है। पंडित मंत्र पढ़ कर मूर्ति की प्रतिष्ठा कर देता है और मूर्ति को भोग निदान किया जाता है। फिर मूर्ति को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के बाद भगवान सुदर्शन अन्य तीन आश्रमों के लिए रवाना हो जाते हैं। जगन्नाथ पुरी में रक्षाबंधन को मनाने का यह तरीका बेहद खास है।
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