ईओडब्ल्यू ने विशेष अदालत में 29 बंडलों में यह चालान पेश किया, जिसमें यह जानकारी दी गई कि किस तरह से इन अधिकारियों ने नेताओं के निर्देश पर शराब घोटाले में अपना योगदान दिया। यह मामले 2019 से 2023 तक के हैं, जिनमें अवैध शराब के निर्माण और वितरण में अधिकारियों की मिलीभगत का पर्दाफाश हुआ है।
अवैध शराब का वितरण और घोटाले का खुलासा
ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का दावा है कि इस घोटाले के दौरान डिस्टलरी से आबकारी अधिकारियों की निगरानी में अवैध शराब सीधे दुकानों तक पहुंचती थी। खासतौर पर तत्कालीन सहायक आयुक्त जनार्दन कौरव की निगरानी में डुप्लीकेट होलोग्राम प्रिंट किए गए, जिनके माध्यम से शराब की तस्करी और बिक्री की जाती थी। इस घोटाले में प्रमुख रूप से अमित सिंह, दीपक दुआरी, और प्रकाश शर्मा का नाम सामने आया है, जो तीनों डिस्टलरी में अवैध शराब की सप्लाई में शामिल थे।
जांच एजेंसी का कहना है कि इस घोटाले के जरिए अरुणपति त्रिपाठी को 20 करोड़ रुपये का कमीशन प्राप्त हुआ। इसके अलावा, जांच एजेंसी ने यह भी बताया कि फरवरी 2019 से शराब विभाग में भ्रष्टाचार की शुरुआत हुई, जब हर महीने 800 पेटी शराब की सप्लाई होती थी। समय के साथ यह आंकड़ा बढ़कर हर महीने 400 ट्रक शराब की सप्लाई तक पहुंच गया।
घोटाले से करोड़ों की वसूली, 60 लाख शराब पेटियों की अवैध बिक्री
ईओडब्ल्यू की प्रारंभिक जांच में यह खुलासा हुआ है कि 2019 से 2023 के बीच करीब 60 लाख पेटियां अवैध रूप से बेची गईं। इन पेटियों की बिक्री से कुल 319 करोड़ रुपये की वसूली की गई, जिसे सिंडिकेट तक पहुंचाया गया। विशेष रूप से अप्रैल 2019 से जून 2022 के बीच अवैध शराब बेचने से 280 करोड़ रुपये की वसूली की गई। इस दौरान हर साल 70 करोड़ रुपये की वसूली का लक्ष्य रखा गया था।
जिला आबकारी अधिकारियों ने इस घोटाले के दौरान करीब 2174.60 करोड़ रुपये की 60 लाख पेटी अवैध शराब बेची। इन पेटियों को 3880 रुपये प्रति पेटी के हिसाब से बेचा गया। इससे स्पष्ट होता है कि किस तरह से आबकारी विभाग में अधिकारियों और नेताओं की मिलीभगत से शराब के व्यापार में भ्रष्टाचार ने आकार लिया।
यह चालान इस बात का स्पष्ट संकेत है कि शराब घोटाले में कई बड़े अफसरों और नेताओं की संलिप्तता रही है और अब तक की जांच से यह मामला एक बड़ा भ्रष्टाचार कांड साबित हो सकता है।