मनेंद्रगढ़। छत्तीसगढ़ के मनेंद्रगढ़ से खबर भले ही दुखद है, लेकिन इसने समाज को नई दिशा दिखाई है. अब तक जो समाज सोचता था कि बेटे के बिना घर का कोई काम नहीं हो सकता, उसके विचार बदले हैं. जो समाज सोचता था कि केवल बेटा ही पिता का अंतिम संस्कार(father’s funeral) कर सकता, उसने सामने बदलाव की नई मिसाल आई है। दरअसल, मनेंद्रगढ़ के इलाके में एक पिता की मृत्यु हो गई. उनका कोई बेटा नहीं था. ऐसे में बेटियों ने सारे सामाजिक बंधन तोड़ते हुए क्रांति लाने की फैसला किया. उन्होंने न केवल पूरे विधि-विधान से पिता की अंतिम यात्रा निकाली, बल्कि उन्हें कंधा भी दिया, मुखाग्नि (face fire)भी दी.
गौरतलब है कि, मनेन्द्रगढ़ शहर के नदीपार स्थित सुरभि पार्क के पास 50 साल के मनीष रैकवार रहते थे. उनका 3 नवंबर दोपहर को निधन हो गया. जब उनका निधन हुआ उस वक्त उनकी पत्नी गायत्री रैकवार और बड़ी बेटी मनस्वी रैकवार घर पर थीं. उनकी छोटी बेटी मान्यता रैकवार एग्रीकल्चर की पढ़ाई करती है. वह बेमेतरा रहती है। उसके रविवार दोपहर पिता के निधन की सूचना मिली। उसके बाद 4 नवंबर को वह घर पहुंची। उसके बाद दोनों बेटियों ने पिता को कंधा देना शुरू किया। उन्होंने पिता की अंतिम यात्रा निकाली, थोड़ी देर बाद सब श्मशान घाट पहुंच गए।
यहां पंडित ने अंतिम संस्कार की तैयारी की. दोनों बेटियों ने पिता मुखाग्नि दी. इस दौरान मान्यता और मनस्वी आंसू रोके नहीं रुक रहे थे. उन्होंने दुखी मन से पिता को अंतिम विदाई दी. इस दौरान श्मशान घाट में भारी भीड़ थी. जिसने भी ये नजारा देखा, वह रो दिया।
मान्यता और ममता ने कहा कि पिता जी कहा करते थे कि मेरा अंतिम संस्कार बेटियां ही करेंगी. हमने उनकी अंतिम इच्छा पूरी की। हम चाहते हैं कि लड़कियां इस रूढ़ीवादी विचारधारा से बाहर निकले। अब बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं, क्यों एक बेटी को पिता के अंतिम क्षणों से दूर रखा जाता है। इस बात को बदलने की जरूरत है।
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