डीएमएफ घोटाले के जांच की उठीं लपटे, माया-रानू के बाद अब रसूखदार भी जाएंगे जेल
By : hashtagu, Last Updated : October 19, 2024 | 5:20 pm
डीएमएफ घोटाले की जांच कर रही ईडी के हाथ यह भी दस्तावेज लगे है कि प्राइवेट कंपनियों के टेंडर पर 15 से 20 फीसदी अलग-अलग कमीशन सरकारी अधिकारियों ने लिया है। टेंडर करने वाले संजय शिंदे, अशोक कुमार अग्रवाल, मुकेश कुमार अग्रवाल, ऋषभ सोनी और बिचौलिए मनोज कुमार द्विवेदी, रवि शर्मा, पियूष सोनी, पियूष साहू, अब्दुल और शेखर के साथ मिलकर अन्य ने किसी चीज की मूल कीमत से ज्यादा बिल का भुगतान किया था। टेंडर देने के नाम पर अधिकारियों सारे नियमों को दरकिनार कर दिया, जबकि डीएमएफ राज्य के हर जिले में स्थापित एक ट्रस्ट है और खनन गतिविधियों से प्रभावित लोगों के लाभ के लिए खनिकों द्वारा वित्त पोषित है।
टेंडर के लिए रिश्वत लेने का आरोप
ईडी ने इस साल मार्च में आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ में डीएमएफ से जुड़े खनन ठेकेदारों ने आधिकारिक काम के टेंडर पाने के लिए राज्य के अधिकारियों और राजनीतिक कार्यकारियों को भारी मात्रा में अवैध रिश्वत दी है। यह कऱीब 600 करोड़ से उपर का प्रथम घोटाला है। माया वारियर कोरबा में डीएमएफ के तहत स्वीकृत होने वाले काम की प्रमुख कर्ताधर्ता थीं जबकि रानू साहू कलेक्टर थी। विशेष कोर्ट ने दोनों को 22 अक्टूबर तक ईडी की रिमांड पर सौंपा है।
संगठित तरीके से घोटाले को दिया अंजाम
ईडी ने कोर्ट में यह तर्क पेश किया कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में रानू साहू कोयला समृद्ध कोरबा जिले में मई 2021 से जून 2022 तक कलेक्टर थीं। उस समय माया वारियर को आदिवासी विकास विभाग में उन्होंने ही अगस्त 2021 से मार्च 2023 तक तत्कालीन सहायक आयुक्त के पद पर पदस्थापना कराई थी।
इस दौरान दोनों ने संगठित तरीके से डीएमएफ में अनियमितताओं को बढ़ावा देकर घोटाले को अंजाम दिया था। एजेंसी ने इस मामले में एक मार्च को राज्य में 13 स्थानों पर छापेमारी की थी और डिजिटल,कागजी दस्तावेजों के साथ जेवर, 27 लाख रुपए नकदी समेत 2.32 करोड़ रूपये की संपत्ति जब्त किया था।