बंदूक से ‘नमस्ते’ तक: बस्तर के आत्मसमर्पित नक्सली अब सीख रहे अतिथि सत्कार

राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत ये सभी जगदलपुर के पास आड़ावाल स्थित लाइवलीहुड कॉलेज में “गेस्ट सर्विस एसोसिएट” का कोर्स कर रहे हैं।

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  • Updated On - November 9, 2025 / 09:23 PM IST

बीजापुर (छत्तीसगढ़): कभी जंगलों में बंदूक थामने वाले हाथ अब ट्रे और तौलिया थाम रहे हैं। ‘लाल सलाम’ की जगह अब ‘नमस्ते’ ने ले ली है। बस्तर के 30 आत्मसमर्पित माओवादी (surrendered naxals) अब अतिथि सत्कार की कला सीख रहे हैं।

राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के तहत ये सभी जगदलपुर के पास आड़ावाल स्थित लाइवलीहुड कॉलेज में “गेस्ट सर्विस एसोसिएट” का कोर्स कर रहे हैं। तीन महीने के इस प्रशिक्षण में उन्हें ग्राहक संवाद, हाउसकीपिंग और सॉफ्ट स्किल्स सिखाई जा रही हैं, ताकि वे होमस्टे, रिसॉर्ट और पर्यटक स्थलों पर आत्मविश्वास के साथ काम कर सकें।

सरकार का लक्ष्य सिर्फ आत्मसमर्पण कराना नहीं, बल्कि उन्हें मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवन दिलाना है। पुनर्वास केंद्रों में फिलहाल 69 पूर्व माओवादी प्रशिक्षण ले रहे हैं— जिनमें 23 महिलाएं और 12 पुरुष बकरी पालन, फिनाइल व डिटर्जेंट निर्माण सीख रहे हैं, जबकि 34 पुरुष राजमिस्त्री का प्रशिक्षण ले रहे हैं।

बीजापुर के पुनर्वास केंद्र का नाम ‘नवां बाट’ रखा गया है, जिसका मतलब है “नई राह”। यह बस्तर में शांति और विकास की दिशा में उठाया गया नया कदम है।

एक पूर्व नक्सली  ने कहा, “जंगल में हिंसा से सिर्फ दर्द मिला। अब असली आज़ादी मेहनत और शिक्षा से मिल रही है। बंदूक छोड़कर यूनिफॉर्म पहनना अब गर्व की बात है।”

उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की नेतृत्व में राज्य की पुनर्वास नीति असर दिखा रही है। “हमारा लक्ष्य है कि 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को माओवादी हिंसा से मुक्त कर दिया जाए। अब युवा विकास और रोजगार की राह पर लौट रहे हैं,” उन्होंने कहा।

बस्तर के ये पूर्व माओवादी अब नई पहचान के साथ समाज में लौट रहे हैं — बंदूक की जगह मुस्कान, और डर की जगह स्वागत की भावना लेकर।