“वन की रातों से सीलिंग पंखों तक: आज़ादी की पहली रात बे नींद”

बहुत‑साल जंगल की रातों में रहने, हर समय चौकन्ना रहने, पत्तियों की सिसकी सुनकर भागने के बाद अचानक सीलिंग पंखों के नीचे, ट्रैफिक की आवाज में शांति का नया माहौल उन्हें अजीब‑सा लगा।

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  • Updated On - October 19, 2025 / 11:47 AM IST

जगदलपुर, छत्तीसगढ़ – जंगलों में कई दशक बिताने के बाद जब लगभग 210 पूर्व माओवादी (maoists) जंग से निकलकर शांति की राह पर आए, तो उन्हें अपनी पहली रात आराम से भी नहीं कट सकी। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में शुक्रवार को हथियार डालने के बाद ये पूर्व माओवादी नेता शनिवार को जगदलपुर स्थित पुलिस प्रशिक्षण केंद्र में रह रहे थे।

बहुत‑साल जंगल की रातों में रहने, हर समय चौकन्ना रहने, पत्तियों की सिसकी सुनकर भागने के बाद अचानक सीलिंग पंखों के नीचे, ट्रैफिक की आवाज में शांति का नया माहौल उन्हें अजीब‑सा लगा। “यह अलग तरह का रिहैबिलिटेशन है,” बस्तर रेंज के आईपीजी पी. सुंदरराज ने कहा।

इन्हें कहा गया है कि अब वे ‘साधारण जीवन’ की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये स्कूल की हॉस्टल‑पहली रात जैसे अनुभव कर रहे हैं।

इसी दौरान ग्रामीणों की भी प्रतिक्रिया मिली है। जिन लोगों ने अपनी जानें माओवादी हिंसा में खोई थीं, उनके लिए यह दृश्य भी अविश्वसनीय था — “जो अंदर वाले दादा लोग थे वे अब उजाले में आ गए” जैसे शब्द सुनने को मिले।