21 साल पुराने चर्चित ‘जग्गी हत्याकांड’ में 28 दोषियों की उम्रकैद की ‘सजा’ बरकरार, होईकोर्ट का फैसला

By : hashtagu, Last Updated : April 4, 2024 | 2:23 pm

बिलासपुर। 21 साल पहले एनसीपी नेता रामावतार जग्गी मर्डर केस (Ramavatar Jaggi Murder Case) में बिलासपुर हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 28 दोषियों को हत्या के आरोप में मिली उम्रकैद की सजा (Life imprisonment to 28 culprits) को बरकरार रखा है। रायपुर में 4 जून 2003 को हुई इस हत्या के केस में आरोपियों को सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इस केस का फैसला आने के बाद सजा काट रहे दोषियाों की तरफ से हाईकोर्ट में सजा के खिलाफ 22 अपील दायर की थी।

इस अपील की सुनवाई लंबी चली, जिसमें हाईकोर्ट ने बहस के बाद 29 फरवरी को रामावतार जग्गी हत्याकांड के दोषियों की अपील पर अंतिम सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था। इस फैसले का आदेश गुरुवार को जारी किया गया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस अरविंद वर्मा की डिवीजन बेंच ने आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। बेंच ने फैसले में कहा है कि सभी दोषियों को एक हफ्ते में ट्रायल कोर्ट में सरेंडर करना होगा। सेशन कोर्ट में स्पेशल जज एस्ट्रोसिटी बीएल तिड़के ने सभी दोषियों को सजा सुनाई थी।

  • आजीवन कारावास की सजा पाने वालों में तीन पुलिस अफसर वीके पांडे, अमरीक सिंह गिल और आरसी त्रिवेदी के अलावा महापौर एजाज ढेबर के भाई याहया ढेबर, कारोबारी अभय गोयल, फिरोज सिद्दीकी और शूटर चिमन सिंह शामिल हैं। इस मामले में 31 अभियुक्त बनाए गए थे। अमित जोगी बरी कर दिए गए थे। बाकी बचे 30 आरोपियों में से दो बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिंह सरकारी गवाह बन गए थे। बाकी 28 लोगों को सजा दी गई थी, जिसके बाद आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी। वहीं अमित जोगी को बरी करने के खिलाफ रामअवतार जग्गी के बेटे सतीश जग्गी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिस पर अमित के पक्ष में स्टे है। अब एक बार फिर अमित के मामले की सुनवाई तेज हो सकती है, जिससे अमित जोगी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

अमित जोगी को जांच एजेंसी ने बताया था मास्टरमाइंड, 31 में से दो बन गए थे सरकारी गवाह

4 जून 2003 को एनसीपी नेता रामावतार जग्गी की मौदहापारा इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसे सुपारी किलिंग बताया गया था। 2003 विधानसभा चुनाव के पहले इस वारदात को अंजाम दिया गया था। इसके लिए दूसरे राज्य से शूटर बुलाए गए थे। सीबीआई को इसकी जांच सौंपी गई थी। लंबी जांच के बाद सीबीआई ने इस मामले में 31 बनाए गए थे। इसमें अमित जोगी को मास्टरमाइंड बताया गया था। अमित जोगी के अलावा अभय गोयल, याहया ढेबर, वीके पांडे, फिरोज सिद्दीकी, राकेश चंद्र त्रिवेदी, अवनीश सिंह लल्लन, सूर्यकांत तिवारी, अमरीक सिंह गिल, चिमन सिंह, सुनील गुप्ता, राजू भदौरिया, अनिल पचौरी, रविंद्र सिंह, रवि सिंह, लल्ला भदौरिया, धर्मेंद्र, सत्येंद्र सिंह, शिवेंद्र सिंह परिहार, विनोद सिंह राठौर, संजय सिंह कुशवाहा, राकेश कुमार शर्मा, (मृत) विक्रम शर्मा, जबवंत, विश्वनाथ राजभर, बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिंह को आरोपी बनाया गया था। बुल्टू पाठक और सुरेंद्र सिहं सरकारी गवाह बन गए थे।

राज्य सरकार ने हत्या की थी प्रायोजित – अपील

  • हाईकोर्ट के फैसले के बाद रामावतार जग्गी के बेटे सतीश जग्गी ने कहा कि भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है। उन्होंने कहा कि उनके पिता की आत्मा और जग्गी परिवार को सुकून मिला है। सतीश जग्गी ने कहा कि अमित को सजा दिलवाने के लिए कानूनी लड़ाई जारी रहेगी। पहले जांच एजेंसियों ने अमित को मुख्य साजिशकर्ता बताया था। बाद में उनके बरी होने के बाद हाईकोर्ट में अपील पर रामावतार जग्गी के बेटे सतीश जग्गी के अमित जोगी की दोषमुक्ति के खिलाफ पेश क्रिमिनल अपील पर उनके अधिवक्ता बीपी शर्मा ने तर्क दिया और बताया कि हत्याकांड की साजिश तत्कालीन राज्य सरकार की ओर से प्रायोजित थी। जब CBI की जांच शुरू हुई, तब सरकार के प्रभाव में सारे सबूतों को मिटा दिया गया था। ऐसे केस में सबूत अहम नहीं हैं, बल्कि षड्यंत्र का पर्दाफाश जरूरी है। लिहाजा, इस केस के आरोपियों को सबूतों के अभाव में दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।

कौन थे रामावतार जग्गी

कारोबारी बैकग्राउंड वाले रामावतार जग्गी देश के बड़े नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के बेहद करीबी थी। शुक्ल जब कांग्रेस छोड़कर NCP में शामिल हुए तो जग्गी भी उनके साथ-साथ गए। विद्याचरण ने जग्गी को छत्तीसगढ़ में NCP का कोषाध्यक्ष बना दिया।

Ramavatar Jaggi 1

जग्गी के हत्या से पहले प्रदेश के सियासी हालात

छत्तीसगढ़ अलग प्रदेश बना तब विधानसभा में कांग्रेस का बहुमत था। कांग्रेस की ओर से सीएम पद की रेस में विद्याचरण शुक्ल का नाम सबसे आगे चल रहा था, लेकिन आलाकमान ने अचानक अजीत जोगी को मुख्यमंत्री बना दिया। इस वजह से पहले नाराज चल रहे विद्याचरण पार्टी में अपनी अनदेखी से और ज्यादा नाराज हो गए।

  • नवंबर 2003 में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही उन्होंने कांग्रेस छोड़कर NCP जॉइन कर ली। NCP के बढ़ते दायरे से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होने का डर सताने लगा। जग्गी की हत्या से कुछ दिन पहले ही NCP की बड़ी रैली होने वाली थी, जिसमें शरद पवार समेत पार्टी के कई बड़े नेता आने वाले थे।

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