छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की कमर टूटी, बस्तर में 437 माओवादी ढेर, संगठन हुआ नेतृत्वविहीन

बस्तर क्षेत्र के आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि सुरक्षा बल लगातार अभियान चला रहे हैं, जिससे माओवादियों के छिपने के ठिकाने और उनका नेटवर्क नष्ट हो चुका है। अबूझमाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी फोर्स की गहरी पैठ बन चुकी है।

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  • Publish Date - September 24, 2025 / 01:11 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में चल रहे एंटी नक्सल अभियान (naxal campaign) ने नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। खासकर बस्तर क्षेत्र में, जहां पिछले नौ महीनों में 437 कुख्यात माओवादी मारे जा चुके हैं, वहीं संगठन का नेतृत्व भी लगभग खत्म हो चुका है।

नारायणपुर जिले में सोमवार को हुई मुठभेड़ में दो सबसे वरिष्ठ नक्सली नेता — राजू दादा और कोसा दादा मारे गए, जो माओवादी संगठन की केंद्रीय समिति के सदस्य थे। इन दोनों की मौत से नक्सल संगठन पूरी तरह नेतृत्वविहीन और दिशाहीन हो गया है।

राजू दादा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी और कोसा दादा उर्फ कदारी सत्यनारायण रेड्डी पर 1.8 करोड़ रुपए का इनाम था। ये दोनों माओवादी कई बड़े हमलों के मास्टरमाइंड रहे हैं, जिनमें महारबेड़ा (2009), जोनागुडेम (2020), और टेकलगुडा (2022) जैसे हमले शामिल हैं। इन घटनाओं में दर्जनों जवान और आम नागरिक मारे गए थे।

बस्तर क्षेत्र के आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि सुरक्षा बल लगातार अभियान चला रहे हैं, जिससे माओवादियों के छिपने के ठिकाने और उनका नेटवर्क नष्ट हो चुका है। अबूझमाड़ जैसे दुर्गम क्षेत्रों में भी फोर्स की गहरी पैठ बन चुकी है।

कोसा दादा नक्सल संगठन का बहुत पुराना सदस्य था और साल 1980 से सक्रिय था। वह डीकेएसजेडसी का सचिव रह चुका था और कई राज्यों में 62 नक्सली घटनाओं में शामिल था। वह 2009 में एसपी विनोद चौबे की शहादत वाले मदनवाड़ा हमले और 2012 में सुकमा कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के अपहरण में भी शामिल था।

पुलिस अधिकारियों ने कहा कि 2024 में जो ऑपरेशन तेज़ हुआ था, वह 2025 में भी पूरे जोर से जारी रहेगा। राज्य सरकार और सुरक्षा एजेंसियों का लक्ष्य है कि अगले 6 महीनों में नक्सलवाद को पूरी तरह खत्म कर दिया जाए।

आईजी सुंदरराज ने माओवादियों से अपील की है कि वे हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण करें और मुख्यधारा में लौट आएं, वरना उन्हें कड़ी कार्रवाई का सामना करना होगा।

यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि अबूझमाड़, जो कभी माओवादियों की सुरक्षित पनाहगाह मानी जाती थी, अब पूरी तरह से सुरक्षा बलों के नियंत्रण में आ रही है।

इस तरह, छत्तीसगढ़ में नक्सलियों का एक बड़ा अध्याय अब अपने अंत की ओर बढ़ रहा है, और राज्य तेज़ी से शांति और विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।