रायपुर। नेता जी (Netaji) की एक जमाने में बल्ले-बल्ले थी भैया। बात उन दिनों की है, जब एक रसूखदार नेता जी की ‘पकड़’ संगठन में बड़ी तगड़ी थी, लेकिन बेचारे की जमीनी पकड़ न के बराबर थी। बातें और डींगे हांकने उनकी कोई सानी थी, और तो और विरोधी पार्टियों (Opposition parties) की नींद उड़ाने में भी वे एक नंबर थे। इनके सामने तो मानो कोई टिकता ही नहीं था। क्या मजाल थी कोई विरोधी नेता, उनकी पार्टी के बारे में अनाप-शनाप बक दे। अगर किसी ने हिमाकत की भी तो उसकी खैर नहीं। चुनावी माहौल में उनकी पूछ परख पार्टी में फायर ब्रांड होने के नाते बढ़ जाती थी। वे हमेशा मीडिया में छाए रहने की जुगत भी लगाते रहते थे। उनका पलटवार भी बड़े ही जाेरदार तरीके का था।
इस दर्द के चलते देखिए न जाने कितने साथी दूसरे पार्टी की गोद में बैठ गए और अब जनता से भी कट गए हैं।इससे किसका नुकसान हुआ है, कभी आप लोग सोचते हो। आप तो संगठन में प्रदेश का पद लिए बैठे हो। लेकिन हम लोग तो सिर्फ जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारे ही लगाते रह जाते हैं। अर आंदोलन में भी बढ़चढ़कर भीड़ जाएं, पुलिस की लाठी खाएं। लेकिन इसका हिसाब तो पार्टी के पास नहीं रहता।
भैया सिर्फ पंजा हिलाकर बाय-बाय-टा-टा करके पब्लिक नहीं फंसती है। अब वह भी समझने लगी है, कि आप जनता से वोट लेने के बाद उसे पहचानते तक नहीं, समस्याओं को दूर करना तो दूर की कौड़ी साबित होती है। सिर्फ हो भी काम जनता लेकर आपके पहुंचती थी, सबसे कहते हो जाएगा, क्या कभी जनता के काम कराने और नहीं करा पाने का हिसाब रखा। मैं जनता जानता हूं, आपने कभी नहीं रखा।
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