Political Story : मध्यप्रदेश ‘कांग्रेस’ में गुटबाजी!..छत्तीसगढ़ में भी ‘एकजूटता’ की जद्दोजहद

By : madhukar dubey, Last Updated : August 9, 2024 | 8:47 pm

भोपाल (आईएएनएस)/ रायपुर डेस्क। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस संगठन (Congress organization) अंदरूनी झंझावतों से जूझती नजर आ रही है। ये हालात मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बने हुए हैं। इन राज्यों में कांग्रेस के अंदरखाने जैसे शीतयुद्ध (Indoor cold war) जैसे हालात है। ये दीगर बात है कि जिस तरीके से विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की भूमिका पर कांग्रेस के कार्यकर्ता और टिकट नहीं पाने वाले पूर्व विधायकों ने सवाल उठाए थे। उसके बाद छत्तीसगढ़ कांग्रेस में एक गुट बराबर भूपेश के विरोध में आज भी खड़ा है। अभी तक इस्तीफे और कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने की सियासी घटनाएं हुई हैं।

रह-रहकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पक्षपात पूर्ण रवैये को लेकर पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं में विवादित बयान भी आते रहे हैं। कुल मिलाजुलाकर कांग्रेस में भूपेश के विरोध में चले अंदरूनी अभियान के बावजूद उनकी पार्टी में आज भी महत्वपूर्ण भूमिका बनी हुई है।

ऐसे में अब माना जा रहा है कि भूपेश की पोजिशन आज भी छत्तीसगढ़ संगठन में मजबूत है। लेकिन सवाल उठता है कि रूठे और असंतोष का किस तरह से कांग्रेस भविष्य में डैमेज कंट्रोल करती है। यह अभी देखने वाली बात होगी। फिलहाल, कांग्रेस नगरीय निकाय और पंचायतों चुनावों में दमदारी से लड़ने की तैयारी में जुटी है। वहीं, यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज को इसके लिए वाक ओवर दिया गया है कि कम से कम नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में पार्टी की दमदार मौजूदगी का अहसास शीर्ष नेतृत्व को कराएं। दूसरी ओर देखा जाए तो कांग्रेस के कद्दवार सरगुजा संभाग के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव सहित कई नेताओं की सक्रियता नाम मात्र की रह गई है। इसके अलावा भाजपा की विष्णुदेव साय सरकार की कार्यशैली के प्रति जनता में अभी विश्वास और लोकप्रियता बनी हुई है। ऐसे में भाजपा के खिलाफ नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों में संतोषजनक सफलता हासिल कर पाना कठिन हो सकता है।

इधर, मध्य प्रदेश में विधानसभा और उसके बाद लोकसभा चुनाव (Lok Sabha) में मिली करारी हार के बाद कांग्रेस एकजुट होने की कोशिश में लगी है। मगर कांग्रेस की इन कोशिशों को विवाद और गुटबाजी कमजोर करने में लगी है।

कांग्रेस के लिए गुटबाजी और विवाद सुलझाना मुश्किल होता जा रहा है। राज्य में कांग्रेस अपनी ताकत दिखाने के लिए अलग-अलग इलाकों में विरोध प्रदर्शन कर रही है। इंदौर नगर निगम में हुए घोटाले को लेकर कांग्रेस ने जोरदार प्रदर्शन किया। वहीं दतिया सहित अन्य स्थानों पर भी पार्टी ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की।

  • एक तरफ जहां पार्टी अपनी एकजुटता के साथ ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पार्टी के भीतर चल रही खींचतान भी उभर कर सामने आ रही है। इंदौर में एक पेड़ मां के नाम अभियान की शुरुआत हुई और राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय इस अभियान में सहयोग मांगने के लिए कांग्रेस के दफ्तर पहुंच गए।

कैलाश विजयवर्गीय का कांग्रेस के शहर अध्यक्ष सुरजीत सिंह चड्ढा और ग्रामीण अध्यक्ष सदाशिव यादव ने स्वागत किया। इस मामले ने तूल पकड़ा और पार्टी की ओर से निलंबन का नोटिस जारी कर दिया गया। इस पर भी कांग्रेस दो फाड़ हो गई।

  • यह मामला थमा नहीं था कि प्रदेश कार्यालय में ऐसे बोर्ड लगा दिए गए जिसने विवाद को जन्म दे दिया। पार्टी ने कार्यालय का समय भी तय कर दिया था। विवाद बढ़ा तो पार्टी की ओर से सफाई दी गई कि यह समय कार्यालय में कर्मचारियों के लिए तय किया गया है।

इन दो विवादों के बाद ताजा मामला दतिया जिले का है, जहां पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया। इस आयोजन के बाद कांग्रेस के दो गुट आपस में भिड़ गए और गोली तक चल गई।

  • राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य में कांग्रेस आपसी गुटबाजी और खींचतान के कारण कमजोर हुई है। लगातार हार के बावजूद भी कांग्रेस के नेता सीख लेने को तैयार नहीं है। अब तो गुटबाजी और विवाद पार्टी के लिए रोग का रूप ले चुके हैं। सवाल एक ही है क्या कांग्रेस इससे खुद को बाहर निकल पाएगी या और ग्रसित हो जाएगी।

यह भी पढ़ें : कांग्रेस के ‘सियासी शिगूफे’ पर डिप्टी CM अरूण साव का Master स्ट्रोक! दिए निगम चुनाव में ‘बदलाव’ के बड़े संकेत

यह भी पढ़ें :Chhattisgarh : मंत्रियों के जिलों के ‘प्रभार’ बदले! इन्हें मिला अतिरिक्त प्रभार

यह भी पढ़ें :Hello…मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े बोल रही हूं!…फिर क्या, तत्काल निपटीं समस्याएं..