रायपुर। नक्सलियों को लेकर एक बार फिर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती (Shankaracharya Swami Nischalananda Saraswati) ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा, पक्ष और विपक्ष के राजनेता नक्सलियों (politician naxalites) को प्रश्रय(आश्रय) देना बंद करें, उनसे अपना हाथ खींच लें। इसके बाद कोई नक्सली बचे तो मुझे बताएं। हम समस्या दूर कर देंगे। इस बात के साथ निश्चलानंद सरस्वती ने बड़ा दावा किया कि देश के पक्ष और विपक्ष के नेता नक्सलियों का साथ देते हैं।
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा- हिंदुओं को शिक्षा और सेवा के नाम पर अल्पसंख्यक बनाया जा रहा है ये तो शोषण है। शंकराचार्य ने दावा किया है कि रोम में ईसा मसीह की वैष्णव तिलक वाली प्रतिमा है, जिसे ढंककर रखा गया है। हिंदुओं को ईसाई बनाने वालों को देखना चाहिए और सारे ईसाई फिर वैष्णव हो जाएं।
इस सवाल के जवाब में शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने उत्तर प्रदेश सरकार का उदाहरण देते हुए कहा- उत्तरप्रदेश में भी तो जुलूस निकले, कहीं उन्माद या हिंसा नहीं हुई। वहां अपना घर भरने वाले सीएम नहीं है, संत समाज से आते हैं। हम जानते हैं उन्हें (योगी आदित्यनाथ)। जहां उन्माद हुआ, वहां उन्मादियों को पराश्रय दिय गया, इस वजह से बाकि जगहों पर विवाद हुए, शासन की शिथिलता, CM की अदूरदर्शिता और सत्ता के लालच की वजह से विवाद हुए।
शंकराचार्य ने कहा-राजनेता आज के फूट डालो राज करो यही सोच रखते हैं। सवर्ण और असवर्ण के नाम पर, आदिवासी और आगंतुक के नाम पर देश को गड्ढ़े में डाल दिया। इनकी बुद्धि पर तरस आता है। विदेशियों की कूट नीति है दूर रहो इससे। आदिवासियों के पूर्वज कौन थे, आदिवासियों का भी तो गोत्र है, ऋषि की संतान हुए या नहीं। वनवासी कौन नहीं है, गुुरुकुल वन में होते थे, राजा भी वन में निवास करते थे कि नहीं, ऋषि वन में रहते थे, सब तो वनवासी ही थे।
देश के विकास को लेकर शंकराचार्य ने कहा- विश्व को 13 प्रकार के व्यापारी चला रहे हैं। राजनेता उन्हें सिर्फ ठेका देने की क्षमता रखते हैं । भारत को देशी-विदेश कंपनियां चला रही है, देश एक दिन दिशाहीन व्यापार तंत्र के नीचे आ जा जाएगा। विकास के नाम पर पृथ्वी धरती के स्त्रोत जल वायू उर्जा क्षुब्द हो गए। चंद्रमा की सतह तक धंस रही है। इन्हें विकास का अर्थ नहीं पता। महानगर महायंत्रों का प्रयोग करके बना, महानगरों में शुद्ध मिट्टी, शुद्ध प्रकाश, हवा, आकाश, शुद्ध मनोभाव, मुस्कान नहीं मिलते।