सिटम की अजब कहानी : 3 साल पहले हुआ करोड़ों का घोटाला जांच में आरोप सिद्ध पर कार्रवाई नहीं

डोंगरगढ़ वन विभाग में जो घोटाला हुआ, वह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि सरकारी तंत्र की उदासीनता और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें भी उजागर करता है.

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  • Updated On - May 18, 2025 / 06:57 PM IST

डोंगरगढ़। डोंगरगढ़ वन विभाग (Dongargarh Forest Department)में जो घोटाला हुआ, वह न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि सरकारी तंत्र की उदासीनता और भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें भी उजागर करता है. मामला तीन साल पुराना है, जांच में फर्जीवाड़ा(fraud) साबित हो चुका है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि अब तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

साल 2021 में बोरतलाव और कटेमा गांव के जंगलों में बांस रोपण, फेंसिंग और मिट्टी भराई जैसे कार्यों के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये जारी किए थे. कागजों में काम पूरे हो गए, मजदूरों को भुगतान भी दिखा दिया गया. लेकिन जब जांच हुई, तो मामला पूरी तरह फर्जी निकला।

जिन ग्रामीणों के नाम पर मजदूरी दिखाई गई थी, उनमें से कई तो कभी वन विभाग के किसी काम में शामिल ही नहीं हुए थे. कुछ तो स्कूल के छात्र थे, कुछ महिलाएं गर्भवती थीं. किसी ने गड्ढा नहीं खोदा, न बांस लगाया, फिर भी उनके खातों में पैसे भेजे गए. बाद में विभागीय कर्मचारियों ने ग्रामीणों से पैसे निकलवाकर खुद रख लिए, और उन्हें दो-चार सौ रुपये पकड़ाकर चलता कर दिया.

शिकायत के बाद 3 साल तक फाइल दबाए रखने के बाद जब आखिरकार जांच हुई. तहसीलदार मुकेश ठाकुर को जांच अधिकारी नियुक्त किया गया. उनकी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि यह पूरा मामला फर्जी है. काम नहीं हुए, भुगतान हुआ और पैसे गबन कर लिए गए. गांव वालों के बयान भी रिकॉर्ड में दर्ज हैं, जिन्होंने माना कि उनके खातों से जबरन पैसे निकलवाए गए.

इतना कुछ सामने आने के बावजूद न तो किसी अफसर पर कार्रवाई हुई, न किसी कर्मचारी को निलंबित किया गया. शिकायतकर्ता 3 साल से रायपुर से लेकर दिल्ली तक गुहार लगा रहा है, लेकिन सिस्टम पूरी तरह खामोश है.

जब इस मामले पर वन विभाग की एसडीओ पूर्णिमा राजपूत से सवाल किया गया, तो उन्होंने कोई जवाब देने से इनकार कर दिया. शायद इसलिए, क्योंकि जवाब देने से कई बड़े अधिकारियों और नेताओं की कुर्सियां हिल सकती हैं.

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब घोटाला साबित हो चुका है, जांच रिपोर्ट आ चुकी है, गवाह भी सामने हैं – तो कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? क्या इसमें बड़े अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की मिलीभगत है? या फिर खुद सिस्टम दोषियों को बचा रहा है?

डोंगरगढ़ का यह मामला सिर्फ एक घोटाले की कहानी नहीं है, यह सरकारी तंत्र की लाचारी और भ्रष्टाचार की पोल खोलता आईना है, जहां जांच सिर्फ कागजी कार्रवाई बनकर रह जाती है, और इंसाफ अगली फाइल के पन्नों में दबा रह जाता है.

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