छत्तीसगढ़। राजधानी के बीचोबीच बने (skywalk) स्कॉईवॉक के आधे-अधूरे निर्माण की जांच EOW और ACB से कराने का निर्णय शासन ने लिया है। क्योंकि इसमें प्रथामिक रूप से अनियमितता और ठेकेदारों को अनुचित लाभ देने का अंदेशा व्यक्त किया गया है।
गौरतलब है कि इसके निर्माण के औचित्य के सवाल पर उस समय भी सियासत बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था। उस समय भी सवाल था कि इतनी ऊंचाई पर स्काईवॉक बनाने का कोई मतलब नहीं था। बहरहाल, इस पर कई बार राजनीतिक और गैर राजनीतिक क्षेत्रों के लोगों ने अपने-अपने मत दिए थे। बता दें, इसका निर्माण भाजपा के शासनकाल में लोकनिर्माण विभाग ने कराया था।
उस समय लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद उसके बनाए जाने के औचित्य पर सवाल उठे थे। कुछ माह तक यह मुद्दा चला। फिर जैसे-जैसे समय बीता वैसे-वैसे इसके औचित्य के सवाल भी गुम हो गया। इसके इस्तेमाल करने पर बहस चली थी, जो कुछ दिनों बाद वह भी शांत हो गया।
इधर बीच फिर चुनावी साल आने से पूर्व फिर एक बार स्कॉईवॉक में हुई अनियमितता का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है। अब आशंका व्यक्त की जा रही है। इसके निर्माण में किस तरह की अनियमितता बरती गई है। ऐसे में जांच होने के बाद ही पता चलेगा। इसके निर्माण में अनियमितताएं बरती गई हैं, उस पर जो प्रथम द्ष्टया आशंकाएं व्यक्त की गई हैं। लिहाजा एक बार फिर स्कॉईवॉक का भूत सियासत के गलियारे में दौड़ेगा।
गौरतलब है कि कुछ समय पहले ही कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन सौंपकर इस संबंध में जांच करवाने की मांग की थी। वहीं भाजपा सरकार में लोक निर्माण विभाग के मंत्री रहे राजेश मूणत ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर न्यायाधीश से इसकी जांच करवाने का सुझाव सरकार को दिया था।
कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह की तरफ से सीएम बघेल को सौंपे गए ज्ञापन में स्काई वॉक में भ्रष्टाचार और अनियमितता को लेकर ८ बिंदुओं पर जानकारी दी गई थी। इसमें तत्कालीन भाजपा सरकार के पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत पर स्काई वॉक के नाम पर प्रशासनिक प्रक्रिया को दरकिनार करके ठेकदार को फायदा दिलावाने का आरोप है।
यह भी जानना जरुरी है कि राजधानी रायपुर के शास्त्री चौक से लगी मुख्य सड़कों पर अधूरे पड़े स्काईवॉक की उपयोगिता को लेकर भी सरकार असंजस में रही। इस पर फैसला लेने के संबंध में कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक सत्य नारायण शर्मा की अध्यक्षता में २२ सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। जिसमे शामिल पीडब्ल्यूडी के अफसर और विशेषज्ञ सर्वसम्मति से स्काईवॉक को नहीं तोड़ने का फैसला लिया था। सभी सदस्यों ने माना था कि स्काईवॉक में अब तक लगभग ४५ करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। ३१ करोड़ रुपए और खर्च करके इसे पूर्ण किया जा सकता है। बहरहाल स्काई वाक आज भी जस की तस अवस्था में खड़ा है।
प्रथम दृष्ट्या प्रकरण में पाए गई निम्नानुसार अनियमितताएं स्पष्ट हो रही हैं –
७७ करोड़ की परियोजना का जान बूझकर २ बार में प्राक्कलन तैयार किया गया ताकि पीएफआईसी से मंजूरी की आवश्यकता न रहे। इसके माध्यम से किसी भी परियोजना के जन हित के संबंध में परीक्षण किया जाता है, जो कि स्काई वाक निर्माण प्रकरण में नहीं किया गया है।
1-विधानसभा निर्वाचन २०१८ की अधिसूचना जारी रहने के दौरान ही लोक निर्माण विभाग द्वारा पुनरीक्षण प्रस्ताव तैयार कर ०५ दिसम्बर २०१८ को वित्त विभाग को भेजा गया, जो आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन है। स्पष्ट है यह कार्य विभाग के पदाधिकारियों एवं ठेकेदार को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया है।
2-लोक निर्माण विभाग द्वारा स्काई वाक निर्माण की प्रथम निविदा ०४ फरवरी २०१७ को जारी की गयी तथा निविदा प्रस्तुत करने हेतु मात्र १५ दिनों का समय दिया गया। ०४ फरवरी तक प्रकरण में वित्त विभाग से प्रशासकीय स्वीकृति भी प्राप्त नहीं हुई थी। १५ दिनों मात्र की निविदा हेतु कोई आवश्यकता और औचित्य नहीं दर्शाया गया है, न सक्षम स्वीकृति प्राप्त की गई है।