क्या 13वीं मंत्री बनाना संवैधानिक सीमा पार रहा?

बिलासपुर हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे समान प्रकृति के केस (NP प्रजापति बनाम राज्य सरकार) की स्थितिपरक रिपोर्ट मांगी है।

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  • Updated On - September 2, 2025 / 03:59 PM IST

बिलासपुर : छत्तीसगढ़ की राजनीति में हाल में हुई एक सामान्य-मिशन मंत्रिमंडल (cabinet) विस्तार ने अचानक संवैधानिक तर्क और न्यायिक दास्तान का रूप ले लिया। केंद्रीय सवाल यह है: क्या प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपना अधिकार सीमा पार कर दिया है?

मामला क्या है?

एक सामाजिक कार्यकर्ता, वासु चक्रवर्ती, ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। उनका तर्क सटीक और गणितीय है: राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या 90 है, यानी — 15 प्रतिशत की सीमा का गणित बताता है कि मुख्यमंत्री सहित 13 मंत्री ही मंत्रिमंडल में हो सकते हैं। लेकिन हाल में हुए विस्तार में मुख्यमंत्री को छोड़कर 13 मंत्री बना दिए गए — यानी कुल संख्या 14, जो संविधान के अनुसार चेहरा मोड़ने जैसा कदम है।

हाईकोर्ट ने क्या कहा?

बिलासपुर हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता से सुप्रीम कोर्ट में चल रहे समान प्रकृति के केस (NP प्रजापति बनाम राज्य सरकार) की स्थितिपरक रिपोर्ट मांगी है। न्यायाधीशों रमेश सिन्हा और विभु दत्ता गुरु की बेंच ने याचिकाकर्ता को दो सप्ताह का समय दिया है ताकि वे वह रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें।

यह विवाद क्यों खामोशी के बाद उभरा?

छत्तीसगढ़ में 15 प्रतिशत कैबिनेट सीमा लंबे समय से लागू है। चाहे डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में हो या भूपेश बघेल के कार्यकाल में, मुख्यमंत्री को छोड़कर मंत्रियों की संख्या 12 रहती आई है। विष्णुदेव साय की सरकार में इसी गणित ने काम किया। लेकिन इस नए विस्तार में हरियाणा मॉडल के आधार पर गणना बदल गई और तीन अतिरिक्त मंत्री, यानी कुल 13 बन गए। प्रश्न उठता है — क्या यह मोड़ सिर्फ संविधान का ट्रिक है या विधिक उल्लंघन?

क्या कहना है इन सबका?

यह सिर्फ नंबरों का खेल नहीं रहा। यह सवाल उस पैमाने का है जो लोकतंत्र और संवैधानिक मर्यादा के बीच खींची गई सीमा को परखता है। यदि कैबिनेट विस्तार संवैधानिक दृष्टि से अनिवार्य नहीं, पर राजनीतिक चालबाजी रही, तो यह चर्चा और भी गहरी होती है।

बहरहाल, अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के केस की रिपोर्ट पर हैं, जो इस याचिका के बहस की दिशा तय करेगी।