छत्तीसगढ़। (reservation bill) आरक्षण बिल के विधानसभा में पारित होने के बाद अब विधेयक पर अभी राज्यपाल ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। उल्टा भूपेश सरकार से ही 10 सालों की एक लंबी चौड़ी फेहरिस्त भेजकर जवाब मांग लिया है। इसको लेकर कांग्रेस और बीजेपी में सियासत शुरू हो गई है। आरक्षण को लेकर मचे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) ने राज्यपाल के विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की है। बता दें, राज्यपाल ने मीडिया से कहा था कि वो फौरन हस्ताक्षर करेंगी। अब स्टैंड बदला जा रहा है। मुख्यमंत्री ने इस बात पर भी आपत्ति दर्ज कराई है कि विधानसभा से पारित किए जाने के बाद भी प्रस्ताव पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
महासमुंद जिले के तीन दिन प्रवास के बाद आज रायपुर लौटे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने एयरपोर्ट पर आरक्षण बिल के सवाल पर मीडिया से कहा कि उन्हें वो अधिकार ही नहीं। राजभवन के विधिक सलाहकार हैं, गलत सलाह दे रहे हैं । पहले राज्यपाल ने कहा था कि जैसे ही विधानसभा से प्रस्ताव आएगा मैं हस्ताक्षर करूंगी। आरक्षण किसी एक वर्ग के लिए नहीं होता है। सारे नियम होते हैं क्या राजभवन को पता नहीं, विधानसभा से बड़ा है क्या कोई विभाग।
भूपेश बघेल ने तीखे अंदाज में कहा, विधानसभा से पारित होने के बाद किसी विभाग से जानकारी नहीं लनी जाती। भाजपा के लोगों के इशारों पर राजभवन का खेल हो रहा है। राज्यपाल की ओर से स्टैंड बदलता जा रहा है। फिर कहती हैं कि केवल आदिवासियों के लिए बोली थी, आरक्षण सिर्फ उनका नहीं सभी वर्गों का है। आरक्षण की पूरी प्रक्रिया होती है।
अपने बयान के दौरान मुख्यमंत्री ने ये भी बताया कि विधानसभा की सारी कार्रवाई एक स्पीकर के जरिए राजभवन में ट्रांसमीट की जाती है। वहां बैठे-बैठे अफसर या राज्यपाल पूरी कार्रवाई को सुन सकते हैं। सीएम ने कहा- विधानसभा की कार्यवाही सीधा राजभवन में सुनाई देती है। वहां स्पीकर लगा रहता है, क्या जब आरक्षण प्रस्ताव पारित हुआ तो सारी प्रकिया के बारे में जानकारी नहीं थी राजभवन को। भाजपा की कठपुतली की तरह राजभवन के अधिकारी उनके निर्देशों पर काम कर रहे हैं। ये प्रदेश के हित में नहीं है।
२ दिसंबर को मंत्रियों ने विधानसभा में पास किया गया आरक्षण का प्रस्ताव राज्यपाल को दिया। उनके हस्ताक्षर के बाद प्रदेश में नई आरक्षण व्यवस्था लागू होगी। मगर अब राजभवन ने राज्य सरकार से वो आधार पूछा है, जिसके अनुसार ७६ प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था बनाई गई। बता दें कि २ दिसंबर को विशेष सत्र में आरक्षण विधेयक पारित होने के बाद से राज्यपाल विधि विशेषज्ञों से इस संबंध में चर्चा कर रहीं थी। उन्होंने हस्ताक्षर करने से पहले राज्य सरकार से १० बिंदुओं पर जानकारी मांगी है। राजभवन सचिवालय की मानें तो इन १० सवालों के जवाब आने के बाद ही आरक्षण विधेयक पर आगे कोई कार्रवाई हो सकेगी।