गजेंद्र, खुशवंत और राजेश को मंत्री क्यों बनाया? जानिए जातीय संतुलन और चुनावी रणनीति

यह विस्तार सिर्फ पद भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति और जातीय संतुलन की सोच है।

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  • Publish Date - August 20, 2025 / 10:58 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार (BJP government) ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करते हुए बुधवार को तीन नए चेहरों को शामिल किया। दुर्ग से विधायक गजेंद्र यादव, आरंग से गुरु खुशवंत साहेब, और अंबिकापुर से राजेश अग्रवाल ने राजभवन में मंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही अब मुख्यमंत्री समेत कुल 14 मंत्री बन चुके हैं।

यह विस्तार सिर्फ पद भरने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति और जातीय संतुलन की सोच है।

गजेंद्र यादव: OBC और बिहार कनेक्शन

दुर्ग विधायक गजेंद्र यादव की संघ से गहरी नजदीकी है। उनके पिता बिसराराम यादव संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी रहे हैं। गजेंद्र की नियुक्ति के पीछे OBC वोट बैंक को साधना और साथ ही बिहार में बीजेपी के लिए सकारात्मक संदेश देना है। बिहार की जातीय जनगणना में यादवों की आबादी 14.26% है, और बीजेपी अब इस वर्ग को प्रतिनिधित्व देकर राष्ट्रीय स्तर पर पकड़ मजबूत करना चाहती है।

गुरु खुशवंत साहेब: SC वोट बैंक और सतनामी प्रभाव

आरंग से विधायक खुशवंत साहेब, संत गुरु बालदास के उत्तराधिकारी हैं और सतनामी समाज में प्रभावशाली चेहरा हैं। 2013 में इनके समर्थन से बीजेपी को फायदा हुआ, जबकि 2018 में इनके कांग्रेस समर्थन से नुकसान। ऐसे में बीजेपी ने मिशन 2028 को ध्यान में रखते हुए इन्हें कैबिनेट में जगह दी है, ताकि दलित समाज की नाराजगी दूर हो।

राजेश अग्रवाल: वैश्य समाज और नई पीढ़ी को मौका

अंबिकापुर से पहली बार विधायक बने राजेश अग्रवाल ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव को हराया। वे वैश्य समुदाय से आते हैं। रायपुर सांसद बनने के बाद ब्रिजमोहन अग्रवाल के मंत्री पद से हटने पर वैश्य प्रतिनिधित्व खत्म हो गया था। राजेश को मंत्री बनाकर बीजेपी ने व्यापारी समाज को साधने और साथ ही युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने का संदेश दिया है।

 किन दिग्गजों को किया गया बाहर?

बीजेपी ने इस बार कई पुराने दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल से दूर रखा। इनमें पुन्नूलाल मोहिले, अमर अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत, विक्रम उसेंडी, धरमलाल कौशिक और लता उसेंडी जैसे नाम शामिल हैं। इन नेताओं ने दिल्ली तक दौड़ लगाई, लेकिन बीजेपी ने नई पीढ़ी और आगामी चुनावों की तैयारी को प्राथमिकता दी।