नई दिल्ली, (आईएएनएस)। विश्व मधुमेह दिवस (diabetes day) से पहले एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि देश में 86 प्रतिशत भारतीय डायबिटीज के कारण अवसाद और चिंता से पीड़ित हैं। इसमें महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (आईडीएफ) द्वारा भारत सहित सात देशों के वैश्विक सर्वेक्षण पर आधारित रिपोर्ट से पता चलता है कि डायबिटीज का रोग मानसिक स्वास्थ्य को पहले की अपेक्षा कहीं अधिक प्रभावित करता है।
मधुमेह रोगियों में मानसिक स्वास्थ्य के प्रभावित होने की सबसे आम वजह जटिलताएं बढ़ने का डर (76 प्रतिशत) है। अन्य कारकों में हर रोज डायबिटीज का प्रबंधन (72 प्रतिशत), स्वास्थ्य सेवा पेशेवर से सहायता प्राप्त करना (65 प्रतिशत), और दवाइयों और आपूर्ति तक पहुंच (61 प्रतिशत) शामिल हैं।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इस आंकड़े ने लैंगिक विभाजन को भी उजागर किया है। मधुमेह से पीड़ित लगभग 90 प्रतिशत महिलाओं ने मानसिक स्वास्थ्य समस्या का अनुभव होने की बात कही, जबकि पुरुषों के मामले में यह आंकड़ा 84 प्रतिशत था।
इसके अलावा, 85 प्रतिशत डायबिटीज रोगियों ने कहा कि वे डायबिटीज बर्नआउट का अनुभव करते हैं यानि इसे नियंत्रित करते-करते उनमें मानसिक थकान होने लगी है।
इनमें से 73 प्रतिशत ने माना कि इस तनाव या थकान के कारण उन्होंने कभी न कभी अपना नियमित उपचार बीच में ही रोक दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 80 प्रतिशत ने अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से अपने भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अधिक सहायता की मांग की है।
सर्वेक्षण से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर मधुमेह से पीड़ित 77 प्रतिशत लोगों ने अपने मधुमेह के कारण चिंता और अवसाद का अनुभव किया है।
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अध्यक्ष प्रोफेसर पीटर श्वार्ज ने कहा, “डायबिटीज शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करती है। देखभाल अक्सर केवल शुगर लेवल कम करने पर केंद्रित होती है, जिससे कई लोग परेशान हो जाते हैं।”
उन्होंने डायबिटीज के मरीजों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए रक्त शर्करा से परे देखने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सर्वेक्षण में भारत, ब्राजील, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और अमेरिका सहित सात देशों के 1,880 व्यक्ति शामिल थे।
–आईएएनएस
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