नई दिल्ली, 2 जुलाई (आईएएनएस) |भारत इस समय दो सबसे प्रमुख बीमारियों की चपेेट में हैं। जीवनशैली में हुए बदलाव के कारण टाइप 2 मधुमेह (diabetes) और उच्च रक्तचाप के मामलाें में भारी वृद्धि हुई हैं। वहीं, मोटापे के बढ़ते मामलों ने देश में चिंता बढ़ा दी है।
द लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड हेपेटोलॉजी में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, पिछले दो दशकों के दौरान भारत में अधिक वजन और मोटापे का प्रसार दोगुना हो गया है, जिससे रोगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
मोटापे में वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब लाखों भारतीय घर में बने पारंपरिक आहार को छोड़कर वसायुक्त खाद्य पदार्थों और चीनी युक्त पेय पदार्थों की ओर रुख कर रहे हैं।
मध्यम आय और निम्न आय वाले देशों में भी मोटापा एक प्रमुख चिंता है, मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी बीमारियों से मोटापे का सीधा संबंध है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में जबरदस्त प्रगति की है, लेकिन मोटापे को गंभीरता से नहीं लिया। भारत को इस पर काम करना चहिए।
अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि सार्वजनिक स्वास्थ्य निकायों का लक्ष्य एक स्वस्थ वजन प्राप्त करना होना चाहिए। जो संक्रामक रोगों को कम कर सकेे।
2016-2021 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 20 प्रतिशत भारतीय आबादी मोटापे से ग्रस्त है, जिसमें 5 प्रतिशत गंभीर रूप से मोटापे से ग्रस्त हैं। बचपन से ही मोटापे के मामलाें में तेज वृद्धि पाई गई है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 135 मिलियन मोटे लोग हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञ भारत में खान-पान की आदतों में बदलाव को मोटापे का जिम्मेदार मानते हैं। भारत में युवाओं का आहार अधिक पश्चिमी हो गया है। फास्ट फूड पर अधिक निर्भरता बढ़ गई हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन खाद्य पदार्थों में अक्सर उच्च स्तर की कैलोरी, चीनी और वसा शामिल होती है जो वजन बढ़ने और मोटापे का कारण बन सकती है।
हैदराबाद में अमोर अस्पताल के प्रबंध निदेशक डा. किशोर बी. रेड्डी के अनुसार हमारे समाज के आधुनिकीकरण और शहरीकरण ने हमारे जीवन में कुछ अवांछित बदलाव किए हैं।
हम देखते हैं कि अधिक से अधिक लोग ऊर्जा से भरपूर और वसा से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, लेकिन शारीरिक गतिविधियों में उल्लेखनीय कमी आई है। डॉ. रेड्डी ने कहा कि इससे लोगों का वजन बढ़ रहा है। मोटे व्यक्ति और परिवार न केवल अपनी स्वास्थ्य देखभाल पर बल्कि परिवहन जैसी कुछ साधारण जरूरतों पर भी अधिक खर्च करते हैं।
कई खाद्य पदार्थों में पाई जाने वाली शर्करा की बढ़ती खपत को अधिक वजन और मोटापे से जोड़ा गया है, जो वैश्विक आबादी के लगभग 40 प्रतिशत और लाखों बच्चों को प्रभावित करता है। चीनी के सेवन और मधुमेह बढ़ने के संबंध को पहचानना जरुरी हैं।
वही,एचसीजी हॉस्पिटल्स अहमदाबाद के वरिष्ठ सलाहकार चिकित्सक और मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. मनोज विठलानी ने आईएएनएस को बताया कि एक समय साधारण मानी जाने वाली चीनी हमारे शरीर के ग्लूकोज विनियमन के नाजुक संतुलन को बाधित कर सकती है, जिससे व्यक्ति बीमारी का शिकार हो सकते हैं।
इस साल मार्च में विश्व मोटापा दिवस के अवसर पर एक चिंताजनक वैश्विक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी। उसमें कहा गया था कि मोटापे की रोकथाम को लेकर कदम नहीं उठाए गए, तो भारत में 2035 तक लड़कों और लड़कियों के मोटापे में 9.1 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि होने की संभावना है।
वर्ल्ड ओबेसिटी फेडरेशन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 में लड़कों में मोटापे का खतरा 3 प्रतिशत था, लेकिन 2035 तक जोखिम 12 प्रतिशत बढ़ जाएगा। वही लड़कियों के लिए जोखिम 2020 में 2 प्रतिशत था, लेकिन 2035 में यह बढ़कर 7 फीसदी 12 प्रतिशत हो जाएगा।