नई दिल्ली। देश में सरकारी स्कूलों (government school) की स्थिति को लेकर चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, भारत में कुल 10.13 लाख सरकारी स्कूलों में से 5,149 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है। इन शून्य नामांकन वाले स्कूलों में से करीब 70 प्रतिशत अकेले तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में हैं।
लोकसभा में लिखित जवाब में सरकार ने बताया कि 2024-25 शैक्षणिक सत्र में 10 से कम या शून्य नामांकन वाले सरकारी स्कूलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। वर्ष 2022-23 में ऐसे स्कूलों की संख्या 52,309 थी, जो अब बढ़कर 65,054 हो गई है। यह देश के कुल सरकारी स्कूलों का लगभग 6.42 प्रतिशत है।
आंकड़ों के अनुसार, तेलंगाना में 2,081 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां कोई भी छात्र नहीं पढ़ रहा है, जबकि पश्चिम बंगाल में यह संख्या 1,571 है। तेलंगाना का नलगोंडा जिला सबसे ऊपर है, जहां 315 सरकारी स्कूलों में एक भी छात्र नहीं है। इसके अलावा महबूबाबाद में 167 और वारंगल में 135 स्कूल पूरी तरह खाली हैं। पश्चिम बंगाल में कोलकाता के 211 और पूर्वी मिदनापुर के 177 सरकारी स्कूलों में शून्य नामांकन दर्ज किया गया है।
इन खाली या बेहद कम नामांकन वाले स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे स्कूलों में कुल 1.44 लाख शिक्षक नियुक्त हैं। पश्चिम बंगाल में 27,348 शिक्षक ऐसे स्कूलों में कार्यरत हैं, जहां औसतन प्रति स्कूल चार शिक्षक हैं। बिहार में भी 730 ऐसे स्कूल हैं, जहां 3,600 शिक्षक तैनात हैं।
शिक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि शिक्षकों की नियुक्ति और संसाधनों का प्रबंधन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार ने राज्यों को सलाह दी है कि शून्य या कम नामांकन वाले स्कूलों को लेकर प्रभावी रणनीति बनाई जाए, ताकि शिक्षा व्यवस्था को बेहतर किया जा सके।