नई दिल्ली, 1 जून (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने चेताया है कि यदि हर साधु, गुरु और अन्य धार्मिक हस्तियों को सार्वजनिक जमीन पर पूजा स्थल (Places of worship for religious figures on public land) बनाने की अनुमति दी गई तो इसके गंभीर परिणाम होंगे और व्यापक जनहित खतरे में पड़ जाएगा।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, “हमारे देश में विभिन्न जगहों पर हजारों साधु, बाबा, फकीर, गुरु हैं और यदि सभी को सार्वजनिक जमीन पर एक पूजा स्थल या समाधि बनाने तथा निहित स्वार्थ वाले समूहों को निजी लाभ के लिए उसका इस्तेमाल जारी रखने की अनुमति दी जाए तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे तथा व्यापक जनहित खतरे में पड़ जायेगा।”
याचिका महंत नागा बाबा भोला गिरि द्वारा उनके उत्तराधिकारी के माध्यम से दायर की गई थी। इसमें अदालत से जिला मजिस्ट्रेट को निगम बोध घाट पर जमीन उपलब्ध कराने का आदेश देने का आग्रह किया गया था। याचिकाकर्ता ने दिल्ली विशेष कानून अधिनियम द्वारा तय की गई वर्ष 2006 की समय सीमा से पहले भूमि पर स्वामित्व होने का दावा किया था।
अदालत ने पाया कि याचिका में तथ्य नहीं है और जिला मजिस्ट्रेट पहले ही अनुरोध खारिज कर चुके हैं।
उन्होंने भूमि के शहरीकरण और संबंधित राजस्व रिकॉर्ड की अनुपलब्धता का हवाला देते हुए अनुरोध अस्वीकार किया था।
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि याचिकाकर्ता का जमीन पर कब्जा निस्संदेह अवैध था क्योंकि “इस तथ्य से कि 30 साल या उससे ज्यादा समय तक किसी जमीन पर उन्होंने खेती की थी, उन्हें उस जमीन पर कानूनी अधिकार, स्वामित्व या उस पर कब्जा जारी रखने का कारण नहीं मिल जाता”।
अदालत ने इस बात को भी रेखांकित किया कि वहां लोगों की श्रद्धा होने या पूजा-प्रार्थना करने का कोई इतिहास नहीं है।
अदालत ने उस स्थल पर ढांचा गिराने की धार्मिक मामलों की समिति की लंबित जांच के तर्क को भी खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि वह एक निजी स्थल था और वहां आम लोगों की श्रद्धा जैसी बात नहीं थी।
न्यायमूर्ति शर्मा ने नागा साधुओं से अपेक्षा के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा, “नागा साधु भगवान शिव के भक्त होते हैं। उन्हें सांसरिक मोह से विमुक्त जीवन जीना होता है। इसलिए, अपने नाम पर संपत्ति का स्वामित्व चाहना उनके विश्वास और व्यवहार के खिलाफ है।”