नई दिल्ली, 28 जनवरी (आईएएनएस)। सोने (Gold) में निवेश को मुद्रास्फीति के खिलाफ एक विश्वसनीय बचाव माना जाता है, क्योंकि जब वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं तो पैसे का मूल्य घट जाता है, जबकि लंबे समय में सोने का मूल्य बढ़ता है, इसलिए किसी व्यक्ति को संपत्ति की मूल्य की रक्षा करने में मदद मिलती है।
सोने के साथ एक और फायदा यह है कि यह एक अत्यधिक तरल संपत्ति है, जिसे रियल एस्टेट के विपरीत, आवश्यकता पड़ने पर धन जुटाने के लिए आसानी से बाजार में बेचा जा सकता है।
सोना खरीदने से निवेश पोर्टफोलियो में विविधता लाने और किसी व्यक्ति या परिवार के लिए समग्र वित्तीय जोखिम को कम करने में भी मदद मिल सकती है, क्योंकि जब बाजार अस्थिर हो जाता है, तो कीमती धातु की कीमत स्टॉक और बॉन्ड जैसी अन्य परिसंपत्तियों की कीमतों में उतार-चढ़ाव से सीधे जुड़ी़ नहीं होती है।
हालांकि, जबकि सोने का मूल्य लंबे समय में बढ़ता है, इसकी कीमत में कई कारकों के कारण अल्पावधि में उतार-चढ़ाव होता है।
वैश्विक स्तर पर सोने की कीमतों में उतार-चढ़ाव का सीधा असर घरेलू बाजार में सोने की कीमत पर पड़ता है क्योंकि चीन के बाद भारत दुनिया में सोने का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है।
भौतिक आपूर्ति के अलावा, स्थानीय बाजारों में बाजार की भावनाएं भी वैश्विक बाजार से संकेत लेती हैं, जिससे कीमतों में भिन्नता बढ़ जाती है।
आरबीआई सहित विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंक अपने कुल भंडार के एक घटक के रूप में बड़ी मात्रा में सोना खरीदते हैं। वे संतुलन बनाए रखने के लिए कीमती धातु भी बेचते हैं, जिसका बाजार मूल्य पर प्रभाव पड़ता है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर भी भारत में सोने की कीमत पर असर डालती है। जब रुपया मजबूत होता है, तो सोने की कीमत गिर जाती है और इसके विपरीत जब भारतीय मुद्रा कमजोर होती है, तो कीमत बढ़ जाती है।
मुद्रास्फीति और आर्थिक अनिश्चितता के कारण सोने की मांग बढ़ गई है क्योंकि इसे एक सुरक्षित निवेश निवेश माना जाता है, जिससे सोने की कीमतें बढ़ जाती हैं।
कम ब्याज दरें बांड और बैंक एफडी की तुलना में निवेशकों के लिए सोने को अधिक आकर्षक बनाती हैं और बढ़ती मांग के परिणामस्वरूप कीमती धातु की कीमत बढ़ जाती हैं।
इसके विपरीत, उच्च ब्याज दरें इन वित्तीय परिसंपत्तियों को अच्छे निवेश में बदल देती हैं, जिससे सोने की मांग कम हो जाती है और कीमतें कम हो जाती हैं।
आयात प्रतिबंध और सीमा शुल्क से संबंधित सरकारी नीतियां भी भारतीय बाजार में सोने की कीमत को प्रभावित करती हैं।
त्योहारी और शादी के मौसम में मांग बढ़ने पर सोने की कीमतें भी आम तौर पर बढ़ जाती हैं।
इज़राइल-हमास युद्ध जैसी भू-राजनीतिक अनिश्चितता भी सोने की कीमतों पर असर डालती है।
अल्पावधि में सोने की कीमतों को प्रभावित करने वाले इन कारकों को एक अच्छा सौदा पाने के लिए सबसे उपयुक्त समय पर कीमती धातु में निवेश करने के लिए ध्यान में रखा जाना चाहिए।
वर्तमान में भारतीय बाजार में 24 कैरेट (शुद्ध सोने) की कीमत लगभग 6,200 रुपये से 6,500 रुपये प्रति ग्राम है।
जबकि सोना बार, सिक्कों या आभूषणों के रूप में खरीदा जा सकता है, जिसकी शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए अब हॉलमार्क किया जा रहा है।
ये ऑनलाइन निवेश गोल्ड ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड), गोल्ड म्यूचुअल फंड और बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दी जाने वाली गोल्ड बचत योजनाओं में किया जा सकता है।
इन विकल्पों में कीमती धातु पर सीधे कब्ज़ा किए बिना सोना रखने का लाभ है, जो लोगों को अपने धन की सुरक्षा करने की परेशानी से बचाता है।
गोल्ड ईटीएफ ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड योजनाएं हैं जो भौतिक सोने में निवेश करती हैं और स्टॉक एक्सचेंजों में नियमित स्टॉक की तरह कारोबार किया जाता है। निवेशक डीमैट खाते के माध्यम से गोल्ड ईटीएफ की इकाइयां खरीद और बेच सकते हैं, इसमें सोने की सटीक मात्रा का उल्लेख होता है।
गोल्ड सेविंग फंड्स म्यूचुअल फंड योजनाएं हैं, जो गोल्ड ईटीएफ में निवेश करती हैं। गोल्ड ईटीएफ इकाइयों को सीधे खरीदने और बेचने के बजाय, लोग अपने म्यूचुअल फंड निवेश खातों के माध्यम से गोल्ड सेविंग फंड में निवेश कर सकते हैं।
सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (एसजीबी) भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं। इन्हें सोने के ग्राम में अंकित किया जाता है और भौतिक रूप से स्वामित्व के बिना सोने में निवेश करने का अवसर प्रदान किया जाता है। एसजीबी की एक निश्चित अवधि होती है और नकदीकरण के समय निवेशित राशि पर अतिरिक्त ब्याज दर प्रदान की जाती है।
हालांकि, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी अन्य निवेश की तरह, सोने में भी जोखिम होता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बदलाव, भू-राजनीतिक घटनाओं और सरकारी नीतियों के कारण कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है।
इसलिए, निवेश करने से पहले शोध करना और पेशेवर सलाह लेना आवश्यक है।