नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय बाजार में अमेरिकी डॉलर (American dollar) की मजबूती के बीच भारतीय रुपया एक बार फिर दबाव में आ गया है। डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंचते हुए 91 के आंकड़े को पार कर गया। यह अब तक का सबसे कमजोर स्तर माना जा रहा है जिससे आयात महंगा होने और महंगाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
विदेशी मुद्रा बाजार में कारोबार के दौरान रुपये में लगातार गिरावट देखी गई। विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक स्तर पर डॉलर की मांग बढ़ने और अमेरिका में ब्याज दरों को लेकर सख्त रुख के चलते उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं पर दबाव बना हुआ है। इसका सीधा असर रुपये पर भी पड़ा है।
इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में उतार चढ़ाव और विदेशी निवेशकों की बिकवाली ने भी रुपये को कमजोर किया है। विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार भारतीय बाजार से पूंजी निकाल रहे हैं जिससे रुपये की स्थिति और बिगड़ी है।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपये की कमजोरी से आयात आधारित वस्तुएं महंगी हो सकती हैं। खासकर कच्चा तेल और इलेक्ट्रॉनिक सामान की कीमतों पर इसका असर पड़ने की संभावना है। हालांकि निर्यातकों के लिए कमजोर रुपया कुछ हद तक फायदेमंद साबित हो सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका पर भी बाजार की नजर बनी हुई है। माना जा रहा है कि केंद्रीय बैंक जरूरत पड़ने पर मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है ताकि रुपये में अत्यधिक उतार चढ़ाव को रोका जा सके। फिलहाल बाजार की दिशा वैश्विक संकेतों और डॉलर की चाल पर निर्भर बनी हुई है।