नई दिल्ली, 9 मई (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने मंगलवार को कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा कर्नाटक (Karnataka) में मुस्लिम आरक्षण (Muslim Reservation) के संबंध में दिए गए बयान के बारे में अदालत को सूचित किए जाने के बाद सार्वजनिक बयान नहीं दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए एक बयान का हवाला दिया।
पीठ ने कहा कि अदालत इस तरह के राजनीतिकरण की अनुमति नहीं दे सकती, जब हम मामले की सुनवाई कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, जब मामला विचाराधीन है और शीर्ष अदालत के समक्ष है तो इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए। कर्नाटक सरकार (Karnataka Government) का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि कोई भी धर्म-आधारित आरक्षण असंवैधानिक है। कथित तौर पर गृह मंत्री ने मुस्लिम आरक्षण को संविधान के खिलाफ बताया है। मेहता ने इस तरह के एक बयान के बारे में कोई जानकारी होने से इनकार किया।
दवे ने तर्क दिया कि वह अदालत के समक्ष मंत्री के बयान को रिकॉर्ड पर ला सकते हैं। पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अदालत का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है और इस पर सार्वजनिक बयान नहीं दिया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत Supreme Court ने मेहता का बयान दर्ज किया कि मुसलमानों को 4 प्रतिशत आरक्षण खत्म करने के राज्य सरकार के 27 मार्च के फैसले पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
दलीलों के बाद पीठ ने मामले की सुनवाई जुलाई तक के लिए टाल दी।
याचिकाकर्ताओं, जिनमें एल गुलाम रसूल और अन्य शामिल हैं, ने तर्क दिया है कि ईडब्ल्यूएस लिस्ट में मुस्लिम समुदाय को शामिल करना गैरकानूनी है।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कर्नाटक सरकार द्वारा मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत ओबीसी कोटे को खत्म करने और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) श्रेणी के तहत रखने के तरीके के खिलाफ कुछ कड़ी टिप्पणियां की थीं, जिसमें कहा गया था कि निर्णय लेने की प्रक्रिया का आधार अत्यधिक अस्थिर और त्रुटिपूर्ण है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार का फैसला प्रथम दृष्टि गलत धारणा पर आधारित था और इसे गलत ठहराया गया क्योंकि यह एक आयोग की अंतरिम रिपोर्ट पर आधारित है। याचिकाकर्ताओं ने मुस्लिम कोटे को खत्म करने के कर्नाटक सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया।