सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राज्यपाल बिल रोक नहीं सकते, मंजूरी-वापसी-राष्ट्रपति को भेजने के तीन ही विकल्प
By : dineshakula, Last Updated : November 20, 2025 | 11:51 am
By : dineshakula, Last Updated : November 20, 2025 | 11:51 am
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा बिलों को मंजूरी देने में हो रही देरी पर अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यपालों के पास विधानसभाओं से पास बिलों को अनिश्चित समय तक रोक कर रखने की शक्ति नहीं है। उन्हें तीन संवैधानिक विकल्पों में से किसी एक पर फैसला करना होगा—या तो बिल मंजूर करें, या दोबारा विचार के लिए विधानसभा को लौटाएं, या फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजें।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती, और न ही अदालत डीम्ड असेंट लागू कर सकती है। आसान भाषा में डीम्ड असेंट का मतलब यह होता है कि अगर कोई जवाब नहीं दिया गया तो बिल को मान लिया जाता है कि मंजूरी दे दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सिद्धांत को अदालत लागू नहीं कर सकती।
CJI बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि—
सभी मामलों में कोर्ट गवर्नर और राष्ट्रपति को निर्देश नहीं देगा। निर्णय परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
गवर्नर तीन विकल्पों—मंजूरी, राष्ट्रपति के लिए रिजर्व या विधानसभा को लौटाने—का उपयोग अपनी समझ से करते हैं।
कोर्ट बिल की मेरिट में नहीं जाएगा, लेकिन बिना वजह लंबे समय तक देरी होने पर सीमित हस्तक्षेप कर सकता है।
गवर्नर और राष्ट्रपति के फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में सीमित तौर पर ही आ सकते हैं।
आर्टिकल 142 के तहत भी गवर्नर और राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों में बदलाव नहीं किया जा सकता।
बिल के स्टेज पर लिए गए निर्णय पूरी तरह न्यायसंगत नहीं माने जातें, इसलिए कोर्ट उन्हें बदल नहीं सकता।
इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की जगह CJI बीआर गवई की अगुआई वाली संविधान पीठ ने की। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पीएस नरसिम्हा और एएस चंद्रचूड़कर शामिल थे। सुनवाई 19 अगस्त से शुरू हुई थी।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। वहीं विपक्ष शासित राज्यों—तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना, पंजाब और हिमाचल प्रदेश—ने राज्यपालों द्वारा देरी पर आपत्ति उठाते हुए केंद्र का विरोध किया।