आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, जिन्होंने अपनी कलम से जीती दुनिया, भक्तिकाल के साहित्य को दी नई दिशा
By : hashtagu, Last Updated : August 19, 2024 | 11:46 am
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, आलोचक, और निबंधकार थे। उनका जन्म 19 अगस्त 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया में हुआ था। उन्होंने अपनी कलम के जरिए हिंदी साहित्य को नई दिशा देने का काम किया। उन्होंने ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’, ‘अनामदास का पोथा’, ‘अशोक के फूल’, ‘चारु चंद्रलेख’, ‘कबीर’, ‘सूर साहित्य’, ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘हिन्दी साहित्य का आदिकाल’ और ‘नाथ संप्रदाय’ समेत कई रचनाएं लिखीं।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर पर भी शोध किया था और भक्तिकाल के साहित्य को नई दिशा दी थी। उनकी लेखनी में भारतीय संस्कृति और परंपराओं की झलक मिलती है। वह हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं के विद्वान थे।
हजारी प्रसाद द्विवेदी लिखते हैं, “मनुष्य की पशुता को जितनी बार भी काट दो, वह मरना नहीं जानती।” उनकी लिखी ये लाइन मानव व्यक्तित्व के बारे में उनकी समझ की गहराई को बखूबी बयां करती है।
यही नहीं, उन्होंने “शब्दों के भी भाग्य होते हैं”, “कभी-कभी निकम्मी आदतों से भी आराम मिलता है”, “सारे मानव-समाज को सुंदर बनाने की साधना का ही नाम साहित्य है”, “अतीत ही वर्तमान को जन्म देता है। उसके दोष-गुण से वर्तमान प्रभावित रहता है”, जैसी पंक्तियां लिखीं।
हजारी प्रसाद द्विवेदी की शिक्षा की बात करें तो उन्होंने शुरुआती दिनों में ब्रह्मचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन किया था। इसके बाद वह काशी आये, यहां उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पढ़ाई की थी। उन्होंने ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की थी। इस दौरान वह गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के साहित्य से काफी प्रभावित थे। यहीं से उनकी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में लिखने में रुचि बढ़ी। हिंदी साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
हजारी प्रसाद द्विवेदी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी और पंजाब यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष भी रहे। उन्हें साल 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हिंदी साहित्य के महान लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 19 मई 1979 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।